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  • आशा लाइब्रेरी की चार छात्राओं को मिला स्कूल ऑफ प्रोग्रामिंग, पुणे में प्रवेश

    आशा लाइब्रेरी की चार छात्राओं को मिला स्कूल ऑफ प्रोग्रामिंग, पुणे में प्रवेश

    चयनित्र छात्राएं प्रसन्नचित्त मुद्रा में।

    दो वर्षीय पाठ्यक्रम के लिए मिलेगी 100 प्रतिशत छात्रवृत्ति

    चौबेपुर, वाराणसी: "बेटियां पढ़ें, आगे बढ़ें" के स्लोगन के साथ क्षेत्र के भंदहां कला, कैथी ग्राम में सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट द्वारा बालिकाओं के लिए नि:शुल्क संचालित आशा लाइब्रेरी की चार छात्राओं का चयन शत-प्रतिशत छात्रवृत्ति के साथ पुणे स्थित स्कूल ऑफ प्रोग्रामिंग में दो वर्षीय पाठ्यक्रम हेतु हुआ है। यह संस्थान नवगुरुकुल फाउंडेशन द्वारा संचालित है।

    चयनित छात्राओं को बधाई देते हुए आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पांडेय ने बताया कि इन छात्राओं के चयन के लिए कई स्तर की परीक्षा और साक्षात्कार आयोजित किए गए, जिसमें आशा लाइब्रेरी की लगभग दो दर्जन छात्राओं ने भाग लिया। अंतिम रूप से अंशिका यादव, अन्नू, रिया पाल और आंचल निषाद का चयन हुआ। ये चारों छात्राएं आगामी 27 अगस्त को पुणे रवाना होंगी। चयन प्रक्रिया को पूर्ण कराने के लिए आशा ट्रस्ट के दो वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रदीप सिंह एवं सौरभ चंद्र इनके साथ जाएंगे।

    सौरभ चंद्र ने बताया कि दो वर्षीय पाठ्यक्रम की अवधि तक इन छात्राओं के अध्ययन, छात्रावास, भोजन, लैपटॉप आदि की व्यवस्था नवगुरुकुल फाउंडेशन द्वारा ही की जाएगी। पाठ्यक्रम पूर्ण होने के पश्चात इन छात्राओं को निजी क्षेत्र में सेवा हेतु कैंपस सिलेक्शन की सुविधा भी प्रदान की जाएगी।

    इस चयन से आशा लाइब्रेरी की छात्राओं में अत्यधिक उत्साह है और वे अगले वर्ष इस चयन प्रक्रिया में भाग लेने के लिए संकल्पित हो रही हैं।

  • स्वतंत्रता दिवस पर जन मित्र न्यास ने चलाया शिक्षा जागरूकता अभियान

    स्वतंत्रता दिवस पर जन मित्र न्यास ने चलाया शिक्षा जागरूकता अभियान

    अभियान में हिस्सा लेते लोग।

    वाराणसीः स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जन मित्र न्यास ने अपने शिक्षा प्लस – वयस्क साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत बड़ागाँव ब्लॉक, वाराणसी के ग्राम कठिराँव, बरज़ी, बचऊरा और ठठरा में शिक्षा जागरूकता अभियान चलाया।

    इस कार्यक्रम का उद्देश्य 15 वर्ष से ऊपर के सभी वयस्कों को पढ़ने-लिखने के महत्व से अवगत कराना और उन्हें शिक्षा से जुड़ने के लिए प्रेरित करना था।

    कार्यक्रम के तहत सभी केंद्रों पर ध्वजारोहण, राष्ट्रगान, देशभक्ति गीत, और शिक्षा पर प्रेरणादायक भाषण आयोजित किए गए। स्वयंसेवकों और जनशिक्षकों ने रैली निकालकर गाँव-गाँव में संदेश दिया –

    > "बूढ़ा हो या जवान, शिक्षा सबका अधिकार!"

    "हर उम्र में पढ़ाई, यही है सच्ची आज़ादी!"

    इस कार्यक्रम में मेरी टीम के ग्राम पंचायत समन्वयक – अरविंद कुमार और शिवानी पाठक के साथ-साथ जनशिक्षक – अनीता, दीपा, प्रीति, अनीशा, सफिया, हलीमा, शाहिन, तन्नू, बिंदु, ममता, पूनम, प्रियंका, शिवांजलि, निशा, प्रिया, कोमल, खुशबू, ज्योति, स्वप्ना, संध्या, वर्षा का विशेष योगदान रहा।

    साथ ही, ग्रामवासियों का सक्रिय सहयोग इस अभियान को सफल बनाने में अहम रहा।

    यह पूरा कार्यक्रम जन मित्र न्यास की प्रबंध न्यासी – श्रीमती श्रुति नागवंशी और वरिष्ठ सलाहकार – डॉ. लेनिन रघुवंशी के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ।

    इस अवसर पर जन मित्र न्यास के प्रतिनिधियों ने बताया कि शिक्षा प्लस कार्यक्रम का संचालन शिव नादर फाउंडेशन के सहयोग से किया जा रहा है, और इसका लक्ष्य है –

    हर व्यक्ति को साक्षर बनाना, ताकि वह अपने जीवन को बेहतर बना सके और समाज में सक्रिय योगदान दे सके।

    संपर्क:

    रिंकू पांडेय

    Resource Coordinator – जन मित्र न्यास

    फोनः 7738718339

  • नशा उन्मूलन जन चेतना साइकिल यात्रियों का कैथी में अभिनंदन

    नशा उन्मूलन जन चेतना साइकिल यात्रियों का कैथी में अभिनंदन

    साइकिल यात्रियों का स्वागत करते वल्लभाचार्च पांडेय।

    चौबेपुर: देश को नशा मुक्त बनाने के उद्देश्य से निकली जन चेतना साइकिल यात्रा सोमवार को कैथी स्थित सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट के परिसर में पहुँची, जहाँ स्थानीय छात्राओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यात्रियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।

    पंजाब के लुधियाना से चार माह पूर्व प्रारंभ हुई इस यात्रा ने अब तक लगभग 4500 किलोमीटर की दूरी तय की है। यात्रा दल ने पंजाब के सभी जिलों से होते हुए लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, ग्वालियर और अब वाराणसी तक का सफर साइकिल से पूरा किया है।

    आशा ट्रस्ट परिसर में पुस्तकालय की छात्राओं ने पुष्पगुच्छ और तालियों से यात्रियों का अभिनंदन किया। इस अवसर पर संस्था के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा,

    “मोबाइल क्रांति के युग में अनेक युवा दिग्भ्रमित होकर नशे के शिकार हो रहे हैं। यह न केवल उनके लिए, बल्कि समाज और देश के लिए भी अत्यंत खतरनाक है। ऐसे में इस प्रकार की जन जागरूकता यात्राओं का विशेष महत्व है।”

    यात्रा के संयोजक नितीश चोपड़ा ने बताया कि वे और उनके तीन साथी—बिट्टू सिंह, हरपाल सिंह और संदीप सिंह—पढ़ाई पूरी करने के बाद निजी क्षेत्रों में कार्यरत थे। लेकिन पंजाब में युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति और "उड़ता पंजाब" जैसी छवि ने उन्हें उद्वेलित किया।

    “हमने तय किया कि अब समय आ गया है कि हम देशभर में नशा उन्मूलन का संदेश फैलाएँ। यह यात्रा पूरी तरह जन सहयोग से संचालित हो रही है, और लोगों का स्नेह हमें निरंतर प्रेरित कर रहा है। हमें उम्मीद है कि अगले एक वर्ष से अधिक समय तक यह अभियान जारी रहेगा।”

    स्वागत करने वालों में दीन दयाल सिंह, प्रदीप सिंह, मनोज यादव, अनीता देवी, सरोज सिंह सहित आशा पुस्तकालय की दर्जनों छात्राएँ शामिल रहीं।

  • जगसीर सिंह गिल की कलम सेः बापसाहब का रोग और विरासत की जकड़न

    जगसीर सिंह गिल की कलम सेः  बापसाहब का रोग और विरासत की जकड़न

    प्रतीकात्मक चित्र।

    ऐतिहासिक संदर्भ: स्वर्णिम अतीत से वर्तमान पतन तक

    भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन का इतिहास गौरवशाली है। 1940–70 के दशक में पी. सी. जोशी, बी. टी. रणदिवे, ई. एम. एस. नंबूदिरिपाद जैसे नेताओं ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्रतिरोध किया बल्कि किसान-मज़दूर एकता और सांस्कृतिक जागरण की मजबूत नींव भी रखी।

    परंतु 1980 के दशक के बाद की कहानी दुखद है। वही नेतृत्व जिसने कभी क्रांति का बिगुल फूंका था, अब संस्थागत सत्ता से चिपक गया। केरल में ई.एम.एस. के बाद उत्तराधिकारी संकट हो या पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु का 2000 में प्रधानमंत्री पद से इनकार – ये सब "अपरिहार्य नेतृत्व" की घातक मानसिकता के प्रमाण हैं।


    2. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण: 'प्रतापी बाप' सिंड्रोम

    लुधियाना की एक पुरानी कहावत है: "प्रतापी बाप के बच्चे बौने रह जाते हैं।" यह कहावत भारतीय वामपंथी नेतृत्व की मानसिकता को समझने की चाबी है।

    फ्रॉयड के कास्ट्रेशन कॉम्प्लेक्स का राजनीतिक रूपांतरण यहाँ स्पष्ट दिखता है। पुराने नेता युवाओं को 'वैचारिक खतरे' के रूप में देखते हैं। उनका गहरा डर है कि नई पीढ़ी उनकी "पवित्र विरासत" को नष्ट कर देगी। परिणामस्वरूप, ओडिपल संघर्ष की स्थिति बनती है जहाँ युवा कैडर "बौने बच्चे" बनकर रह जाते हैं, जिन्हें पितृसत्तात्मक नेतृत्व ने कभी बढ़ने का मौका ही नहीं दिया।

    सत्ता का यह मनोरोग इतना गहरा है कि वे अपनी गलतियों को स्वीकार करने के बजाय "मर्द और घोड़े कभी बूढ़े नहीं होते" वाली मानसिकता अपनाए रहते हैं।


    3. वैचारिक विडंबना: मार्क्सवाद का सामंतीकरण

    यहाँ सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मार्क्स का "इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है" वाला सिद्धांत, भारतीय कम्युनिस्ट नेताओं के हाथों "नेतृत्व संघर्ष" में तब्दील हो गया।

    सामंती प्रवृत्तियों ने पार्टियों को वंशवाद के जाल में फंसा दिया:

    • पश्चिम बंगाल में भरत चटर्जी का अपने पुत्र को सुजीत बसु के ऊपर तवज्जो देना

    • ए. के. गोपालन के बाद उनकी पत्नी सुशीला गोपालन का दशकों तक केंद्रीय भूमिका में बने रहना

    ये उदाहरण दिखाते हैं कि कैसे क्रांतिकारी आदर्श धीरे-धीरे पारिवारिक राजनीति में बदल गए।


    4. संरचनात्मक कारण: जकड़न के मूल तत्व

    समस्या परिणाम ठोस उदाहरण वैचारिक अहंकार नए विचारों को खतरा मानना 1990 के बाद उदारीकरण पर युवाओं के सवाल को "संशोधनवाद" कहकर दबाना संस्थागत कब्ज़ा पदों से चिपके रहना CPI(M) पोलित ब्यूरो सदस्यों का 1990 में 65+ औसत आयु युवाओं पर अविश्वास नई रणनीतियों का विरोध 2007 नंदीग्राम आंदोलन में युवा नेतृत्व को हाशिए पर धकेलना


    5. दुष्परिणाम: महाविनाश की गाथा

    राजनीतिक पतन के आंकड़े:

    • 2004: वाम मोर्चा की 54 लोकसभा सीटें

    • 2024: मात्र 8 सीटें

    वैचारिक अप्रासंगिकता:

    युवाओं द्वारा उठाए गए नए मुद्दे – जेंडर, पर्यावरण, डिजिटल युग का मार्क्सवाद – इन सभी को "गैर-जरूरी" कहकर खारिज कर दिया गया। जेएनयू के छात्र आंदोलनों में दिखने वाली नई चेतना को समझने के बजाय, उसे दबाने की कोशिश की गई।


    6. समाधान: ग्राम्शी का मार्ग

    एंटोनियो ग्राम्शी का "कार्बनिक बुद्धिजीवी" सिद्धांत यहाँ रास्ता दिखाता है:

    "पुराने बुद्धिजीवियों का काम नई पीढ़ी को सशक्त बनाना है, उन पर अधिकार जमाना नहीं।"

    सकारात्मक उदाहरण:

    • केरल 2021: वाम डेमोक्रेटिक फ्रंट ने 25 युवा उम्मीदवार उतारे, 73% जीते

    • वर्गीज कुरियन का मॉडल: 90 की आयु में अमूल की कमान युवाओं को सौंपना

    आवश्यक बदलाव:

    पुराने नेताओं को मार्गदर्शक (Mentors) बनना होगा, नियंत्रक (Controllers) नहीं। विरासत का पुनर्निर्माण करना होगा, उसकी जड़ पूजा नहीं।


    निष्कर्ष: आत्मसमर्पण या पुनर्जन्म?

    भारतीय कम्युनिज़्म आज एक चौराहे पर खड़ा है। या तो "शानदार इतिहास" के भावुक संग्रह में दब जाना है, या फिर जीवंत भविष्य की ओर कदम बढ़ाना है।

    लेनिन की चेतावनी आज भी प्रासंगिक है:

    "क्रांतियाँ तब मर जाती हैं जब वे अपने बच्चों को खाने लगती हैं।"

    पुरानी पीढ़ी का योगदान तभी सार्थक है जब वह स्वेच्छा से रास्ता छोड़े – "जबरन रिटायरमेंट" का इंतज़ार नहीं करे।

    बर्तोल्त ब्रेश्ट की यह पंक्ति हमारे लिए आईना है:

    "जो नए खून को रोकता है, वह इतिहास की लाश बन जाता है।"

    सवाल यह है: क्या भारतीय वामपंथ इस सच को स्वीकार करके खुद को पुनर्जीवित करेगा, या फिर अपने ही हाथों मरने का रास्ता चुनेगा?


  • जीएसटी की विभिन्न धाराओं पर अधिवक्ताओं ने डाला प्रकाश

    जीएसटी की विभिन्न धाराओं पर अधिवक्ताओं ने डाला प्रकाश

    टैक्स एडवोकेट्स को संबोधित करते श्री मिथिलेश कुमार शुक्ल

    वाराणसीः विगत 26 जुलाई 2025 को पूर्वान्ह में सोनभद्र में टैक्स एडवोकेट्स एसोसिएशन के सोनभद्र इकाई द्वारा रॉबर्ट्सगंज सोनभद्र में आयोजित GST सेमिनार में बतौर #मुख्य अतिथि#प्रतिभाग करने का अवसर मिला। कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न जिलों के अधिवक्ता प्रतिनिधियों ने भाग लिया। Gst में धारा 67,68 व 73 ,74 व धारा 74 A पर कानपुर व गाज़ियाबाद के वक्ताओं ने प्रकाश डाला

    इसके पश्चात सोनभद्र में निर्माणाधीन #कार्यालय भवन के निर्माण की प्रगति की समीक्षा की तथा सोनभद्र के SGST अधिकारियो के साथ बैठक की।

हमारा मोर्चा के संचालक और कार्यकारी संपादक कामता प्रसाद Next.js पर वेबसाइट बनाने का काम करते हैं और यही उनकी आजीविका का जरिया है। हमारा मोर्चा को बनाने के लिए उन्होंने HTML, CSS और JavaScript सीखी। फिर Tailwind CSS, React.js, Node.js पर हाथ साफ किया और Next.js 15 की जमकर प्रैक्टिस की और अभी भी कर ही रहे हैं। इस तरह से इंडस्ट्री स्टैंडर्ड पर खुद को खरा उतारने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। चूँकि कामता प्रसाद हिंदी-अंग्रेजी के अलावा उर्दू भी जानते हैं तो कांटेंट राइटिंग में भी आप उनसे मदद ले सकते हैं। बस, आम लोगों की जानकारी के लिए, नेक्स्ट.जेएस पर बनी वेबसाइट वर्सेल पर मुफ्त में होस्ट हो सकती है वर्ना बाजार में ठग बैठे हैं और हर साल आपसे पैसा वसूलेंगे, जबकि मैं सिर्फ एक बार पारिश्रमिक लूँगा और ताला-कुंजी सब आपके हवाले कर दूँगा।

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