19 नवंबर 2025 को 08:22 pm बजे
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भोजपुरी लोक: बाज़ार का 'मर्दानाकरण' और कला का संरक्षण

भोजपुरी लोक: बाज़ार का 'मर्दानाकरण' और कला का संरक्षण

वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के भोजपुरी अध्ययन केन्द्र में चल रही सात दिवसीय कार्यशाला के तीसरे दिन 'भोजपुरी लोकगीत और चित्रकला' के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन चर्चा हुई। इस दौरान विद्वानों ने लोक की बदलती अवधारणा, बाज़ार के प्रभाव और कलाओं के संरक्षण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

लोक का सार्वभौमिकरण और मर्दानाकरण चिंता का विषय: प्रो० आशीष त्रिपाठी

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक प्रो० आशीष त्रिपाठी ने लोक की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "इस बीच लोक का सार्वभौमिकरण और मर्दानाकरण किया जा रहा है। बाज़ार ने इसे अतिमर्दाना बना दिया है। आज लोक की पूरी अवधारणा प्रश्नवाचक चिह्न के घेरे में है।"

प्रो० त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि 1757 ई० के पहले का लोक ही अपने मूल स्वरूप में था, जबकि आज का बना लोक औपनिवेशिक काल का ही एक रूप है। उन्होंने लोक के औपनिवेशिकरण और राष्ट्रीयकरण के ऊपर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया।

भोजपुरी चित्रकला के तीन रूप और गीतों से अटूट संबंध

दृश्य कला संकाय, BHU के प्राध्यापक डॉ० शांतिस्वरूप सिन्हा ने 'भोजपुरी चित्रकला: लोक, प्रकृति और कला' विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने भोजपुरी चित्रों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा:

  • भित्ति चित्र (दीवार पर)
  • भूमि चित्र (ज़मीन पर)
  • कपड़े पर बनाया जाने वाला चित्र

इसके अतिरिक्त, उन्होंने देह पर बनाए जाने वाले चित्र 'गोदना' का भी ज़िक्र किया। डॉ० सिन्हा ने बताया कि इन चित्रों में प्रयोग किए जाने वाले सारे रंग (जैसे चावल का घोल, गेरू, नील, गोबर) प्रकृति प्रदत्त होते हैं। उन्होंने कहा, "यह चित्र मनुष्य तत्व, देव तत्व और प्रकृति तत्व का सम्मिलन हैं। ये चित्र अनगढ़ और अरूप होते हुए भी पूर्ण हैं और इनका भोजपुरी गीतों के साथ अन्योन्याश्रित संबंध है।"

कला के संरक्षण के लिए सामूहिकता ज़रूरी: डॉ० सुशांत कुमार शर्मा

वाराणसी के युवा भोजपुरी कवि डॉ० सुशांत कुमार शर्मा ने लोककलाओं के संरक्षण पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "किसी भी कला के संरक्षण के लिए सामूहिकता आवश्यक होती है। लोकसंगीत, भित्ति चित्र, कोहबर, पिड़िया आदि लोककलाएँ स्मृतियों को बचाने का प्रयास हैं।" उन्होंने भोजपुरी मंगलाचरण में सूर्य, गंगा मईया, हनुमान, पाँचों पांडव और कुलदेवता का ज़िक्र आने की बात बताई।

राम-लक्ष्मण और जटायु का आशुचित्र और गायन

कार्यशाला का एक मुख्य आकर्षण राज्य ललित कला एकेडेमी, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ० सुनील कुमार विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया राम-लक्ष्मण और जटायु का आशुचित्र रहा। इस दौरान डॉ० सुशांत कुमार शर्मा ने अपने भोजपुरी खंडकाव्य 'जटायु' का सुमधुर गायन भी प्रस्तुत किया।

इस परिचर्चा का संचालन पत्रकारिता विभाग के सहायक आचार्य डॉ० धीरेन्द्र कुमार राय ने किया। इस अवसर पर भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो० प्रभाकर सिंह, प्रो० नीरज खरे, डॉ० विवेक कुमार सिंह, डॉ० रविशंकर सोनकर और डॉ० कुमार अम्बरीष चंचल सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।