जीवन के रंग
तुलसी को जानना अपने इतिहास और मूल्यों को जानना हैः वशिष्ठ अनूप
कार्यक्रम में उपस्थित विद्वत-जन।
वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में आज रामचंद्र शुक्ल सभागार में तुलसी जयंती समारोह हर्षोल्लास से संपन्न हुआ। विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी के संरक्षण और मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ गोस्वामी तुलसीदास और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। इस अवसर पर सभी विद्वानों को तुलसी का पौधा और रामचरित मानस की प्रति भेंटकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. वशिष्ठ अनूप ने कहा, "तुलसी को जानना अपने इतिहास, संस्कृति और मानवीय मूल्यों को जानना है।" उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने अवधी जैसी लोकभाषा में काव्य रचना कर जनमानस को सीधे जोड़ने का कार्य किया। वे "स्वांत: सुखाय" लिखते थे पर उनकी रचनाएँ "सर्व हिताय" बन जाती हैं। तुलसी विनम्रता, मर्यादा, और प्रेम के प्रतीक हैं, और उनकी व्यंग्यात्मक शैली आज भी प्रासंगिक है। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि बनारस जल्दी किसी से छूटता नहीं है। उन्होंने अपनी कविता "कविता क्या है प्रेमिल संवेदना है" का पाठ किया। उन्होंने कहा कि साहित्य युगधर्म है और तुलसीदास की रचनाएँ सर्वजन हिताय रची गईं। "सुरसरि सम सब कहँ हित होई" जैसी पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने तुलसी की समन्वयवादी दृष्टि को रेखांकित किया। तुलसी विशेषज्ञ श्री निवास पांडेय ने रामचरित मानस के प्रथम श्लोक का पाठ कर बताया कि तुलसी की रचना को पढ़ने के लिए सही दृष्टि आवश्यक है। उन्होंने कहा कि "जहाँ जहाँ अंतर्विरोध है, वह तुलसी के नहीं, उनके युग के हैं।" प्रो. श्रद्धा सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि रामचरित मानस ने तुलसी को जनप्रिय बनाया क्योंकि उसमें राम मानव स्वरूप में उपस्थित हैं। उन्होंने मानस के कई प्रसंग सुनाकर तुलसीदास के समन्वयवादी स्वरूप को दर्शाया। डॉ. प्रीति त्रिपाठी ने तुलसी को अपनी वैचारिक यात्रा की "प्राथमिक इकाई" बताते हुए कहा कि मानस में राम सामान्य मनुष्य के रूप में भी हैं, जिनमें भौतिकता का त्याग और उदात्तता का समावेश है। उन्होंने कहा कि "तुलसी को समझने के लिए उनकी रचना से गुजरना होता है।" सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में कुलगीत गायन दिव्या शुक्ला, स्मिता पांडेय और आकांक्षा मिश्रा ने किया। रुद्राष्टकम् का सस्वर पाठ कुलदीप पांडेय और यश मिश्रा ने किया। दिव्या शुक्ला द्वारा प्रस्तुत भजन "ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया" को खूब सराहा गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सत्यप्रकाश पॉल ने किया और धन्यवाद ज्ञापन अजीत प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो. आशीष त्रिपाठी, डॉ. किंग्सन पटेल, डॉ. अशोक ज्योति, विजय चंद्र त्रिपाठी सहित अनेक शिक्षकगण एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। प्रस्तुति: दिव्या शुक्ला