1 नवंबर 2025 को 03:36 pm बजे
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डीएनए टेस्ट के लिए सोनिया ने राहुल का ब्लड नहीं दिया था - जानिए इस वाहियात दुष्प्रचार की असलियत

डीएनए टेस्ट के लिए सोनिया ने राहुल का ब्लड नहीं दिया था - जानिए इस वाहियात दुष्प्रचार की असलियत

राजीव गांधी पंचायती राज संगठन के अमेठी जिला अध्यक्ष श्री कर्णवीर सिंह की कलम से

आम जनता के विभिन्न हिस्सों को भाषा, धर्म, क्षेत्र, नस्ल, जाति, अगड़े-पिछड़े आदि-आदि के नाम पर लड़ाते रहने वाले RSS के संघी-फासिस्ट टोले का एक कुत्सा-प्रचार बहुत से लोगों ने सुना होगा कि राहुल गाँधी अपने पिता यानि कि स्वर्गीय राजीव गाँधी के पुत्र ही नहीं हैं और उनकी माँ सोनिया गाँधी दुश्चरित्र महिला हैं।
आइए, इसे समझते हैं और संघी टोले के घिनौने प्रचार अभियान पर लानत भेजते हैं।

सोशल मीडिया पर फैली अनेक झूठी कहानियों में एक यह भी है कि—राजीव गांधी की मृत्यु के बाद उनकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए राहुल गांधी का डीएनए मांगा गया था, जिसे सोनिया गांधी ने देने से इनकार कर दिया। इस अफवाह का आशय स्पष्ट है—कि राहुल गांधी राजीव गांधी के पुत्र नहीं हैं, और सोनिया गांधी इस तथ्य को छिपाना चाहती थीं।

दरअसल, यह कोई नई बात नहीं है। संघी मानसिकता वाले समूहों की पुरानी परंपरा रही है कि वे जिनसे वैचारिक या राजनीतिक रूप से मुकाबला नहीं कर पाते, उनके चरित्र पर कीचड़ उछालते हैं। अवैध संबंधों और दुष्चरित्रता की मनगढ़ंत कहानियाँ गढ़ना, उन्हें सैकड़ों लोगों के मुख से एक ही समय में कहलवाना—यह उनकी परिचित रणनीति है।

पहचान में कभी संकट ही नहीं था

डीएनए टेस्ट तभी किया जाता है जब पहचान संदिग्ध हो—जैसे किसी अज्ञात शव, कंकाल या विसरा के मामले में। परंतु राजीव गांधी की स्थिति वैसी नहीं थी। 21 मई 1991 की उस दर्दनाक रात, श्रीपेरंबदूर में हुए बम विस्फोट में उनका सिर और छाती क्षतिग्रस्त अवश्य हुए, परंतु धड़ अक्षुण्ण था। उनके कपड़े, जूते (लोट्टो ब्रांड) और घड़ी देखकर तमिलनाडु कांग्रेस नेता जी.के. मूपनार और मार्गथम चंद्रशेखर ने तुरंत पहचान की थी। मार्गथम चंद्रशेखर की रोती हुई तस्वीरें और राजीव का धड़—अगले ही क्षण टीवी चैनलों और अख़बारों में दिखने लगे थे।

जब पहचान में कोई संदेह ही नहीं था, तो डीएनए जांच का प्रश्न कैसे उठ सकता है?

कुछ लोगों ने यह तर्क देने की कोशिश की कि शरीर के विभिन्न हिस्सों का मिलान करने के लिए राहुल गांधी का डीएनए आवश्यक था। यह तर्क विज्ञान की सामान्य समझ के भी खिलाफ है। किसी शव के पहचाने गए हिस्से से ही डीएनए सैंपल लेकर शेष अवशेषों का मिलान किया जा सकता है—इसके लिए परिजनों के सैंपल की कोई आवश्यकता नहीं होती।

वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सच्चाई

अब ज़रा तकनीकी तथ्य देखिए—डीएनए प्रोफाइलिंग की खोज 1984-85 में हुई थी। लेकिन इसे एक प्रयोगात्मक खोज से व्यवहारिक फॉरेंसिक तकनीक बनने में लगभग दो दशक लगे। भारत में पहली डीएनए परीक्षण प्रयोगशाला 1997 में स्थापित हुई, और 2000 के बाद ही जांच सुविधाएं व्यवस्थित रूप से उपलब्ध हो सकीं। वर्ष 1991 में भारत में डीएनए परीक्षण की कोई व्यवस्था ही नहीं थी।

निष्कर्ष

इस प्रकार, “राजीव गांधी की पहचान के लिए राहुल गांधी का डीएनए मांगा गया” — यह पूरी तरह झूठी और दुर्भावनापूर्ण अफवाह है। इसका कोई तथ्यात्मक या वैज्ञानिक आधार नहीं है। दुखद यह है कि कुछ लोग किसी मृत व्यक्ति के सम्मान तक का ख़याल नहीं रखते और राजनीतिक लाभ के लिए असत्य फैलाने से भी परहेज़ नहीं करते।

यह केवल अफवाह नहीं, बल्कि एक मृत्युपरांत अपमान है — और समाज के विवेक के लिए एक गंभीर चुनौती भी।