एक कम्युनिस्ट नामधारी जंतु की फेसबुक वॉल पर यह तस्वीर मिली। अब आप ही बताइए कि इन सभी को अगर मिला दिया जाए तो क्या इनकी संख्या एक करोड़ से अधिक होगी। नहीं न। जबकि हमारे देश की आबादी तकरीबन डेढ़ अरब है। तात्पर्य यह निकला कि एक अरब 49 करोड़ आबादी के साथ हमारे अंतरविरोध धुर-दुश्मनाना हैं ही नहीं।
तो भइया, फिर क्यों मनुस्मृति दहन के नाम पर थाने वालों का जीना हराम किए रहते हो। दरोगा से थानेदार बनने के लिए अगर कोई खुशामद करता है और उसके धतकरम आपको अच्छे नहीं लगते तो यह क्यों नहीं सोचते कि न्यूज-एडिटर बनने के लिए पत्रकार महोदय बनिए की कितनी लल्लो-चप्पो करते होंगे।
पुलिस वाले भइया हमारे धुर-दुश्मन नहीं हैं। यह कम्युनिस्ट नामधारी जंतुओं की विफलता है कि वे प्रशासनिक अमले के सभी संस्तरों को अपना दुश्मन बनाए बैठे हैं। उल्लू के पट्ठों-हथियानंदनों को बेवजह यूनिवर्सिटी कैंपसों में धँसाकर रखने वाले कम्युनिस्ट नेताओं को सोचना होगा कि ऐसे सफेद हाथियों को मजदूर आबादी के बीच क्यों नहीं भेजा जाए?
सभी को साफ पीने का पानी मिले। समान और निःशुल्क शिक्षा, शुरू से लेकर अंत तक। माने एक भी शिक्षण संस्थान निजी हाथों में नहीं होना चाहिए और यही बात स्वास्थ्य-आवास और परिवहन पर भी लागू होनी चाहिए। जब सभी हाथों को काम देना सरकार की जिम्मेदारी होगी तो इधर से उधर जाने-आने पर यानि कि परिवहन के साधनों पर आने वाला खर्च भी सरकार को ही उठाना होगा।
13 अक्टूबर 2025 को 02:01 pm बजे
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पुलिस वाले भइया जनता के मित्र हैं, शत्रु नहीं... काहे थानेदार का जीना हराम करते हो भई
