संपादकीय टिप्पणीः ब्राह्मण खानदान में जन्मा सिद्धार्थ दुबे पहले तो भटककर सीएलआई पहुँचा। सीएलआई बोले तो कम्युनिस्ट लीग ऑफ इंडिया, जिसकी स्थापना रामनाथ ने की थी जो आजमगढ़िया भूमिहार थे। अंबेडकर ने कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को ब्राह्मण लड़कों का झुंड कहा था, तो दुबे जी कम्युनिस्ट बने यह तो स्वाभाविक मालूम पड़ता है लेकिन जब वे पतित होकर दलितवादियों माने दलित बुर्जुआ के यहाँ पत्तल चाटने पहुँचे तो बहुत से लोगों को बुरा लगा। अपनी फेसबुक वॉल पर उन्होंने हमारे माननीय गृहमंत्री जी की आलोचना की है, इससे मेरी भावना आहत हुई है, पुलिस चाहे तो दुबे जी के खिलाफ केस दर्ज कर सकती है, भावना आहत करने का केस। तुलसीदास भी दुबे थे लेकिन उन्होंने ब्राह्मणों को गौरवान्वित किया जबकि रामू कलंकित कर रहे हैं, लानत है ऐसे कुलनाशक पर।
कम्युनिस्टों को खत्म करने के जश्न इतिहास में बहुत बार मनाएं गए हैं- देश की शासक वर्ग माओवादियों के खात्में का जश्न मना रहा। लेकिन फिर वे राख से चिंगारी बन उठ खड़े होते हैं, फिर शोषको-उत्पीड़कों के लिए दावानल भी बन जाते हैं। जब तक दुनिया में अन्याय है, असमानता है, शोषण-उत्पीड़न है, कम्युनिस्ट पैदा होते रहें, मरते रहेंगे, खत्म होते रहेंगे, फिर उठ खड़े होगें। अब तक का यही इतिहास है।
इस देश में माओवादियों के खात्में के जश्न मनाया जा रहा है। सबसे अधिक यह जश्न गोलवरकवादी मना रहे हैं, हालांकि भारतीय शासक वर्ग भी इस जश्न में शामिल है। बहुत सारे उदारवादी और कुछ तथाकथित वामपंथी भी भीतर-भीतर ही सही जश्न मना रहे हैं।
गोलवरकर ने घोषित तौर जिन्हें आरएसएस का सबसे बड़ा दुश्मन घोषित किया था और जिनके खात्में का संकल्प व्यक्त किया था-उसमें कम्युनिस्ट भी थे।
कम्युनिस्ट के तौर माओवादियों के खात्में का जश्न पूरे देश में चल रहा है। भारत में कभी सीपाआई-सीपीएम के लोग कम्युनिस्ट थे, उन्हें तेलंगाना में खत्म करने का जश्न आजाद भारत की नेहरू-पटेल की सरकार ने मनाया था। हजारों कम्युनिस्ट मारे गए थे। सैकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था। लोगों को पेड़ों पर मारकर लटका दिया गया। सबसे अधिक मेहनतकश भूमिहीन मजदूर-किसान मारे गए थे। वे जिन खेतों पर सैकड़ों वर्षों से काम करते थे, उस पर मालिकाना चाहते थे। उन्हें भारतीय सेना और सुरक्षा बलों का इस्तेमाल करके खत्म कर दिया गया।
फिर इस देश में कम्युनिस्ट नक्सली के रूप में सामने आए। उनका भी बड़े पैमाने पर कत्लेआम हुआ। यह काम इंदिरा जी की सरकार ने किया। इसमें कुछ तथाकथित वामपंथी पार्टियां भी उनकी सहयोगी बनीं। महाश्वेती देवी के हजार चौरासिवें की मां और मास्टर साहेब ( जगदीश मास्टर) को आप भूले नहीं होंगे। न ही चारू-जौहर की निर्मम हत्या आप की स्मृति से विस्मृत हुआ होगा। ऐसे हजारों नहीं लाखों लोग मारे गए।
फिर इस देश में काम्यनिस्टों को माओवादी नाम दे दिया गया। जहां सच्चा कम्युनिस्ट होगा, मेहनकश गरीब-गुरबा और आदिवासियों-दलितों के साथ लड़ रहा होगा, उसे माओवादी या अर्बन नक्सल नाम दे दिया जाता है। अबकी बार इनका खात्मा किया गया है। दुख और दर्द के साथ ही यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि हां आप इस बार भी कम्युनिस्टों को खत्म करने में वे फिलहाल सफल हुए हैं।
यह सिर्फ भारत की बात नहीं हैं, दुनिया यदि किसी एक पहचान के नाम पर किसी सबसे अधिक दुनिया के शासकों और शोषकों-उत्पीड़कों ने किसी का कत्लेआम किया है,तो कम्युनिस्ट रहे हैं।
दुनिया के हर कोने में और दुनिया करीब हर देश में लाखों कम्युनिस्ट मारे गए हैं, यातनाएं झेले हैं, फासी पर चढाए गए हैं, जेलों की काल कोठरी में भेजे गए हैं।
दुनिया की धरती कम्युनिस्टों के खून से लाल है। कहीं भी खोदिए उनके खून मिल जाएंगे।
फिर मैं दोहरा रहा हूं, वे फिर उठ खड़े होंगे। वे व्यक्ति नहीं है, इस देश और दुनिया के मेहनतकशों के राज्य के स्वप्न हैं, उम्मीद हैं। वे शोषण-उत्पीड़न और अन्याय-अत्याचार विहीन दुनिया के अगुवा हैं।
स्पार्कटस के वारिसों को कोई खत्म नहीं कर सकता है, वे दुनिया से शोषण-उत्पीड़न और अन्याय-अत्याचार का खात्मा करके ही खत्म होंगे। खत्म क्या होंगे, वे सबकों कम्युनिस्ट बनाकर और खुद उसमें विलीन होकर ही खत्म होंगे।
नोट-सभी वामपंथी कहने वाले लोग कम्युनिस्ट नहीं होते। सरकार को कम्युनिस्ट वामपंथियों से दिक्कत होती है, जो गरीब-गुरबा मेहनतकशों के साथ मिलकर लड़ते-भिड़ते हों या उनका साथ देते हों
