अयोध्याः प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में बहुवचन पत्रिका के पूर्व संपादक अशोक मिश्र के संस्मरणों की पुस्तक ‘अनवरत’ का विमोचन जनमोर्चा सभागार में किया गया। इस अवसर पर ‘विस्मरण के दौर में संस्मरण’ विषय पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि संस्मरण हमारे जीवन और समाज का अभिन्न अंग हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में तमाम चीज़ें छूटती जा रही हैं, जिनको सहेजना ज़रूरी है।
उन्होंने संस्मरणों पर लिखी अपनी पुस्तक का ज़िक्र करते हुए कहा कि जीवन में बहुत से लोगों और जगहों की स्मृतियाँ हमारे पास रहती हैं जो एक थाती की तरह रहती हैं। अशोक मिश्र की पुस्तक का ‘अनवरत’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में जो साहित्यिक संस्मरण हैं वे अत्यंत रोचक हैं। इससे पूर्व आलोचक रघुवंशमणि ने फैजाबाद से संबंध रखने वाले लेखक अशोक मिश्र का परिचय देते हुए कहा कि एक पत्रकार के रूप में उनका जीवन व्यापक अनुभवों से भरा हुआ है।
उन्होने कहा कि अशोक जी का व्यक्तित्व अत्यंत सहज है और वे कथा-लेखन में एक सम्मानित नाम हैं। संस्मरण समय के ख़ास हिस्से को पकड़ते हैं और इस पुस्तक में भी साहित्य से जुड़े महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों को याद किया गया है। अपने आत्मकथ्य में लेखक अशोक मिश्र ने हिंदी में संस्मरण विधा की परंपरा को रेखांकित करते हुए बहुत सी महत्वपूर्ण रचनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मेरी संस्मरण लिखने की शुरुआत फैजाबाद से ही हुई और अपना पहला संस्मरण मैंने अपने शिक्षक के विषय में लिखा था। रवीन्द्र कालिया की कृति ‘ग़ालिब छूटी शराब’ से संस्मरण लिखने का उत्साह जगा। उन्होंने बताया कि मैंने संस्मरणों पर केंद्रित बहुवचन के विशेषांक का संपादन भी किया जिसकी प्रसिद्ध संस्मरण लेखक कांतिकुमार जैन ने प्रशंसा की थी। कवि-प्राध्यापक डॉ विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि आज के संकटग्रस्त समय में स्मृतियों पर भी ख़तरा मंडरा रहा है। मशहूर लेखक मिलान कुन्देरा को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि शक्ति के विरुद्ध मनुष्य का संघर्ष वस्तुतः विस्मृति के विरुद्ध स्मृति का संघर्ष है। उन्होंने कहा कि किसी समाज को नष्ट करने का सबसे आसान तरीका है कि उसकी स्मृति को नष्ट कर दिया जाए। आज का दौर भी इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के विस्मरण का दौर है और ऐसे समय में संस्मरणों का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है।
उन्होंने फैजाबाद के संदर्भ में मेमोयर्स ऑफ़ फैजाबाद पुस्तक का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह सांस्कृतिक इतिहास का दस्तावेज़ है। उन्होंने हिंदी के मूर्धन्य आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी की आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी पर लिखी संस्मरणात्मक पुस्तक ‘व्योमकेश दरवेश का ज़िक्र करते हुए कहा कि संस्मरण हमें एक समय विशेष की यात्रा पर ले जाते हैं। जनमोर्चा की संपादक सुमन गुप्ता ने अशोक जी के साथ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के दिनों को याद करते हुए कहा कि संस्मरण हमारे जीवन को समृद्ध बनाने का काम करते हैं। लेखक और चिंतक आर डी आनंद ने कहा कि बदले हुए दौर में स्मृतियाँ भी बदल रही हैं। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी कि स्मृतियाँ उस तरह से नहीं दर्ज होंगी जैसे उसके पहले की पीढ़ी की होती रही हैं। उन्होंने कहा कि एक विधा के रूप में संस्मरण सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। डॉ नीरज सिन्हा नीर ने कहा कि संस्मरण इतिहास को प्रभावित करते हैं। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संयोजक सत्यभान सिंह जनवादी ने कहा कि संस्मरण हमारे समय का सच्चा आईना होते हैं।
संचालन करते हुए शायर और जलेस के कार्यकारी सचिव मुजम्मिल फ़िदा ने कहा कि यादें हमारी ज़िंदगी की अनमोल धरोहर होती हैं। कार्यक्रम को जलेस के अध्यक्ष मो ज़फ़र, कवि आशाराम जागरथ, सूर्यकांत पांडेय, पूजा श्रीवास्तव, मोतीलाल तिवारी आदि ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में जसवंत अरोड़ा, शहज़ाद रिज़वी, अयोध्या प्रसाद तिवारी, डॉ राजकिशोर, डॉ सी बी भारती, दीपक मिश्र, राजीव श्रीवास्तव, रवींद्र कबीर, ओम प्रकाश रोशन, बृजेश श्रीवास्तव, महावीर पाल, सोनिया कुमारी, अनुश्री यादव सहित कवि-लेखक, संस्कृतिकर्मी और समाजसेवी उपस्थित रहे।
प्रस्तुति
विशाल श्रीवास्तव