15 सितंबर 2025 को 07:31 am बजे
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बारिश में और बाद में भी पशुओं की देखभाल कैसे करें, बता रहे हैं बीएचयू के पशु चिकित्सक डॉ. विपिन मौर्य

बारिश में और बाद में भी पशुओं की देखभाल कैसे करें, बता रहे हैं बीएचयू के पशु चिकित्सक डॉ. विपिन मौर्य

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पशु न केवल दूध, मांस और अंडे का स्रोत हैं, बल्कि किसान की आर्थिक रीढ़ भी हैं। बरसात का मौसम किसानों और पशुपालकों के लिए वरदान भी है और चुनौती भी। जहां एक ओर हरियाली और चारे की प्रचुरता पशुओं के लिए लाभकारी होती है, वहीं दूसरी ओर इस मौसम में गीलापन, नमी और गंदगी के कारण कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण है कि बरसात के मौसम में पशुओं का विशेष प्रबंधन आवश्यक हो जाता है। ऐसे में पशुपालकों को सावधानी बरतनी बहुत ज़रूरी है।

बरसात में फैलने वाले प्रमुख रोग

बारिश के दिनों में संक्रमण और परजीवी रोग सबसे बड़ी समस्या बन जाते हैं।

संक्रामक रोग

खुरपका-मुंहपका (FMD): यह रोग गाय, भैंस और बकरियों में पाया जाता है। इसमें मुंह, जीभ और पैरों में छाले पड़ जाते हैं जिससे पशु चारा-पानी छोड़ देता है और दूध उत्पादन प्रभावित होता है।

गलघोटू (Haemorrhagic Septicaemia): इस रोग में अचानक तेज बुखार, सांस लेने में कठिनाई और गले में सूजन दिखाई देती है। यह बरसात के दिनों का सबसे खतरनाक रोग है और कई बार पशुओं की मृत्यु भी कर देता है।

लंगड़ा बुखार (Black Quarter/BQ): यह खासकर 6 महीने से 2 साल की उम्र के पशुओं को प्रभावित करता है। अचानक तेज बुखार, सूजन और लंगड़ापन इसकी मुख्य पहचान है।

न्यूमोनिया: बरसात में ठंडी हवाओं और नमी से बछड़ों व छोटे पशुओं में यह रोग अधिक होता है। खांसी, तेज सांस और बुखार इसके लक्षण हैं।

परजीवी रोग

बरसात में प्राय: परजीवियों की संख्या तेजी से बढ़ जाती है। इससे पशुओं को कई शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

परजीवियों के प्रकार

आंतरिक परजीवी (Internal Parasites): जैसे पेट के कीड़े, कृमि आदि।

बबेसिओसिस: यह रोग किलनी के माध्यम से फैलता है। इसमें बुखार, कमजोरी और पेशाब में खून आने जैसी समस्या होती है।

थैलेरिओसिस: यह भी टिक से फैलता है और खासकर क्रॉसब्रेड गायों को प्रभावित करता है। इसमें तेज बुखार, ग्रंथियों में सूजन और दूध की कमी दिखाई देती है।

बाह्य परजीवी (External Parasites): जैसे चीचड़, खलील, जूं आदि।

लक्षण

• पशु में सुस्ती और कमजोरी
• खून की कमी (एनीमिया)
• दूध उत्पादन में गिरावट
• पाचन समस्या, पेट दर्द और पतला गोबर

उपचार

• पशुचिकित्सक की सलाह से पशु के वजन के अनुसार परजीवीनाशक दवा नियमित रूप से दो बार पिलाना चाहिए।

बचाव

• पशुओं को तालाब और गड्ढों के किनारे न लेकर जाएं।
• तालाब किनारे की घास न खिलाएं क्योंकि इसमें कीड़ों के लार्वा होते हैं।

खाज-खुजली और त्वचा रोग

बरसात में पशुओं में खाज-खुजली की शिकायत अधिक होती है।

• इसका कारण पशुशाला में गंदगी और नमी है।
• इसमें पशु की त्वचा मोटी, रूखी होकर झड़ने लगती है और खुजलाने पर बाल झड़ जाते हैं।
• कई बार जीवाणु संक्रमण से घाव में दुर्गंध आने लगती है।

उपचार

• पशुचिकित्सक की सलाह से दवा या लेप का उपयोग करें।
• पशुशाला की सफाई और कीटनाशक छिड़काव करें।

चीचड़ (Ticks) की समस्या

• बरसात में चीचड़ तेजी से बढ़ते हैं और पशुओं का खून चूसते हैं।
• इनसे बबेसिओसिस और थैलेरिओसिस जैसे घातक रोग फैलते हैं।

उपचार और बचाव

• पशुचिकित्सक की सलाह से कीटनाशक दवा पशु के ऊपर लगाएं।
• पशुशाला और बाड़े में भी कीटनाशक का छिड़काव करें।

संक्रमण का खतरा

बरसात में बीमार पशु न केवल स्वयं प्रभावित होता है बल्कि उसकी लार, मल-मूत्र और नाक से निकला स्राव मिट्टी और पानी को भी संक्रमित कर देता है। जब अन्य स्वस्थ पशु इसके संपर्क में आते हैं तो उनमें भी रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए रोगी पशु को अलग रखना आवश्यक है।

बरसात के मौसम में पशु प्रबंधन की सावधानियां

1. पशुशाला का रख-रखाव

✓ बारिश से पहले छत की मरम्मत कर लें ताकि पानी टपके नहीं।
✓ खिड़कियां खुली रखें ताकि हवा आती-जाती रहे।
✓ उमस और गर्मी से बचाने के लिए पंखों का प्रयोग करें।
✓ पशुशाला में पानी एकत्रित न होने दें ताकि मच्छर और कीड़े न पनपें।

2. साफ-सफाई और रोग नियंत्रण

✓ मल-मूत्र की निकासी का उचित प्रबंध हो।
✓ पशुशाला को रोज फिनाइल या किसी कीटाणुनाशक से साफ करें।
✓ बाड़े के आसपास गंदगी न होने दें और नियमित कीटनाशक छिड़कें।

3. खुराक और पानी की व्यवस्था

• बरसात में गीली और सड़ी घास न खिलाएं।
• पशुओं को तालाब, गड्ढे या जोहड़ का पानी न पिलाएं क्योंकि इनमें कीटनाशक और खरपतवार की दवाइयां मिल सकती हैं।
• हमेशा साफ बाल्टी में ताजा पानी ही पिलाएं।
• अनाज और दाना सूखी जगह पर रखें और अधिक दिनों तक भंडारण न करें।

4. चराई और श्रम

• पशुओं को लगातार बारिश में बाहर चरने न भेजें क्योंकि गीली घास पर कीड़े और कीटाणु चिपके रहते हैं।
• पशुओं को अधिक थकान और बार-बार धूप में लाने से बचाएं।

5. टीकाकरण और रोकथाम

✓ बरसात से पहले पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराएं।
✓ गाय-भैंस में खुरपका-मुंहपका, गलघोटू और लंगड़ा बुखार का टीका बरसात से पूर्व लगाना चाहिए।
✓ भेड़-बकरी में पीपीआर और गलघोटू का टीका आवश्यक है।
✓ पोल्ट्री में रानीखेत रोग और फाउल पॉक्स का टीका बरसात से पहले देना चाहिए।

टीकाकरण तालिका

पशु

प्रमुख रोग

कब टीका लगाएँ

टीकाकरण की आवृत्ति

गाय एवं भैंस

खुरपका-मुंहपका (FMD)

वर्षा ऋतु से पहले (मार्च–अप्रैल) एवं शरद ऋतु (सितंबर–अक्टूबर)

साल में 2 बार

गलघोटू (Haemorrhagic Septicaemia – HS)

मानसून आने से 1 माह पहले (मई–जून)

साल में 1 बार

लंगड़ा बुखार (Black Quarter – BQ)

मानसून से पहले (मई–जून), खासकर 6 महीने–2 साल के पशुओं में

साल में 1 बार

थैलेरिओसिस (Theileriosis)

टिक-प्रभावित क्षेत्रों में (विशेषकर क्रॉसब्रेड गायों में)

पशु चिकित्सक की सलाह से

भेड़ एवं बकरी

पीपीआर (Peste des Petits Ruminants)

मानसून की शुरुआत (जून–जुलाई)

हर 3 साल में 1 बार

गलघोटू (HS)

वर्षा से पहले (मई–जून)

साल में 1 बार

चेचक (Sheep/Goat Pox)

मानसून शुरू होने से पहले

साल में 1 बार

सूअर

Classical Swine Fever (CSF)

बरसात से पहले

साल में 1 बार

मुर्गी (पोल्ट्री)

रानीखेत रोग (Newcastle Disease)

मानसून से पहले

हर 3–4 महीने में एक बार बूस्टर

गम्बोर रोग (Gumboro/IBD)

चूजों में 2–3 सप्ताह की उम्र पर

एक बार

फाउल पॉक्स (Fowl Pox)

मानसून की शुरुआत

साल में 1 बार

टीकाकरण से जुड़े जरूरी सुझाव

✓ हमेशा पशु चिकित्सक की देखरेख में टीकाकरण कराएँ।
✓ बीमार पशु को टीका न लगाएँ।
✓ टीकाकरण के बाद 4–5 घंटे तक पशु को आराम करने दें।
✓ टीके को हमेशा ठंडा (2–8°C) पर रखकर ही उपयोग करें।
✓ टीकाकरण की तारीख नोटबुक/डायरी में लिखें और अगले वर्ष समय पर बूस्टर अवश्य लगवाएँ।

निष्कर्ष

पशुओं का स्वास्थ्य किसान की आर्थिक स्थिति से सीधा जुड़ा होता है। बरसात का मौसम जहां पशुओं के लिए कठिनाइयाँ लाता है, वहीं यदि समय पर सावधानियां बरती जाएं तो रोगों और नुकसान से बचा जा सकता है। बरसात के दिनों में एक बीमार पशु पूरे झुंड को प्रभावित कर सकता है। इसलिए रोगग्रस्त पशु को अलग रखना और पशुचिकित्सक की सलाह पर तुरंत उपचार करना चाहिए। इसी प्रकार बाह्य परजीवियों जैसे चीचड़ और जूं से बचाव के लिए नियमित कीटनाशक छिड़काव और दवा का प्रयोग अनिवार्य है।

स्वच्छता, संतुलित पोषण, समय पर टीकाकरण और रोगों की शीघ्र पहचान ही पशुओं के उत्तम प्रबंधन की कुंजी है। स्वस्थ पशु ही किसान की समृद्धि का आधार हैं और यही ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती की गारंटी भी। यदि रोगों की पहचान, समय पर टीकाकरण और साफ-सफाई की आदतें अपनाई जाएँ, तो पशु स्वस्थ रहेंगे और किसान को आर्थिक नुकसान नहीं होगा। पशुपालकों को चाहिए कि वे स्वच्छता, संतुलित आहार और समय पर टीकाकरण पर विशेष ध्यान दें। यही बरसात के मौसम में पशुओं के उत्तम प्रबंधन की कुंजी है।