13 अक्टूबर 2025 को 06:12 pm बजे
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मुखीय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने हेतु दंत-रोग विशेषज्ञ टीपी चतुर्वेदी कर रहे हैं तरह-तरह के जतन

मुखीय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने हेतु दंत-रोग विशेषज्ञ टीपी चतुर्वेदी कर रहे हैं तरह-तरह के जतन

वाराणसीः इंडियन ऑर्थोडॉन्टिक सोसाइटी (IOS) के बनारस ऑर्थोडॉन्टिक स्टडी ग्रुप द्वारा “स्माइल ड्राइव – स्माइलिंग भारत: 2” अभियान के अवसर पर एक विशेष जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मुखीय स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, ऑर्थोडॉन्टिक उपचार के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना और नागरिकों में आत्मविश्वासी व स्वस्थ मुस्कान को प्रोत्साहित करना था।

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यह पहल इंडियन ऑर्थोडॉन्टिक सोसाइटी के राष्ट्रव्यापी “स्माइलिंग भारत अभियान” का हिस्सा है, जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों और किशोरों में समय पर ऑर्थोडॉन्टिक देखभाल के महत्व के बारे में जन-जागरण करना है।

कार्यक्रम के दौरान इंटरएक्टिव सत्र, रोगी शिक्षा गतिविधियाँ, स्माइल अवेयरनेस वार्ताएँ और नि:शुल्क परामर्श आयोजित किए गए। पोस्टर, पुस्तिकाएँ और डिजिटल प्रदर्शन के माध्यम से प्रारंभिक निदान के महत्व और दंत विसंगतियों व जबड़े की असमानताओं को सुधारने में ऑर्थोडॉन्टिस्ट की भूमिका को विस्तार से समझाया गया। प्रतिभागियों को यह संदेश दिया गया कि —

“एक स्वस्थ मुस्कान ही आत्मविश्वास की पहचान है।”

इसी क्रम में आज सुबह अस्सी घाट, वाराणसी से ऑर्थोडॉन्टिक अनुभाग, दंत संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अध्यापक और विद्यार्थियों ने आम लोगों को अभियान के बारे में जानकारी दी।

इस अवसर पर बीएचयू के दंत विज्ञान संकाय के प्रोफेसर डॉ. टी. पी. चतुर्वेदी ने कहा —

“इस स्माइल ड्राइव पहल के माध्यम से हमारा लक्ष्य समाज के हर वर्ग तक पहुँचना है और यह बताना है कि ऑर्थोडॉन्टिक उपचार केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि मौखिक और सामान्य स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।”

उन्होंने बताया कि ऑर्थोडॉन्टिक्स दंत चिकित्सा की एक सुपरस्पेशलिटी शाखा है, जिसमें टेढ़े-मेढ़े, अनियमित दांत, जबड़े और चेहरे की विकृतियों को सुधारा जाता है। इसके विशेषज्ञों को ऑर्थोडॉन्टिस्ट कहा जाता है।

प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि टेढ़े-मेढ़े या अनियमित दांतों व जबड़े की समस्या का कारण मुख्य रूप से वातावरणीय और आनुवांशिकी दोनों होता है। वातावरणीय कारणों में मुंह से सांस लेना, अंगूठा चूसना, कुपोषण, जीभ की बनावट, गलत ढंग से खाना निगलना आदि शामिल हैं। कटे तालू या कटे होंठ के कारण भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है, जिससे बच्चों में खाने में कठिनाई होती है और चेहरे का विकास प्रभावित होता है।

उन्होंने बताया कि यह उपचार 7 से 18 वर्ष की आयु के बीच सबसे प्रभावी रहता है, जिसमें दांतों पर विशेष अप्लायंस या ब्रेसेस लगाकर इलाज किया जाता है। उपचार की अवधि रोगी की स्थिति के अनुसार 6 महीने से 3 साल तक हो सकती है।

इस अवसर पर डॉ. विपुल शर्मा (ईसी सदस्य, IOS), डॉ. दिप्तिमान शुक्ला तथा अन्य स्टडी ग्रुप सदस्यों ने भी अपने विचार और सुझाव साझा किए। कार्यक्रम में छात्रों, शिक्षकों और आम नागरिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

प्रो. चतुर्वेदी के नेतृत्व में किए गए सर्वे में यह सामने आया कि वाराणसी के आसपास लगभग 49% बच्चे ऑर्थोडॉन्टिक समस्या से ग्रस्त हैं, यानी हर दूसरा बच्चा इस दिक्कत से परेशान है। शहरों में यह समस्या ग्रामीण इलाकों की तुलना में अधिक पाई गई। अमेरिका में यह प्रतिशत लगभग 70% तथा यूरोप के कई देशों में 75% तक है। भारत के विभिन्न सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि ऑर्थोडॉन्टिक समस्याओं के कारण बच्चों का चेहरे का विकास बाधित होता है।

इस आयोजन ने “मुस्कान जागरूकता, दंत स्वच्छता और देशभर में ऑर्थोडॉन्टिक सेवाओं की उपलब्धता” के संदेश को सशक्त रूप से आगे बढ़ाया।