कॉ. विनोद मिश्र को श्रद्धांजलिस्वरूप उनके अपने ही लेख को पढ़ने का आग्रह कर रहे हैं कॉ. रामजी राय

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मेरे सपनों का भारत
विनोद मिश्र
राजनीति के अतिरिक्त, जो मेरे ख्याल से समाज की जटिलताओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है, खगोलशास्त्र (कास्मोलॉजी) में मुझे बड़ी दिलचस्पी है, जहां ब्रह्मांड अनंत दिक्काल में प्रकट होता है; जहां आकाशगंगाएं ब्रह्मांड की सतत विलुप्त होती सरहदों में एक दूसरे से तेजी से दूर चली जाती हैं; जहां तारे अस्तित्व में आते हैं, चमकते हैं और विस्पफोट के साथ मृत्यु का वरण करते हैं और जहां बिलकुल साफ-साफ गति वस्तु के अस्तित्व की प्रणाली है.
गति, अर्थात् परिवर्तन और रूपांतर – हमेशा निम्नतर स्तर से उच्चतर स्तर की ओर – प्रसंगवश मानव समाज के अस्तित्व की भी प्रणाली है. कोई विचार परम नहीं होता, कोई समाज पूर्ण नहीं होता. जब-जब किसी समाज को किसी परम विचार का मूर्तरूप माना गया तब-तब उसकी गहराइयों से उठे भूकंप के झटकों ने उसकी बुनियाद को हिलाकर रख दिया है. और तब चारों ओर फैली निराशा के घुप्प अंधेरे के बीच नए सपने खिलखिला उठे हैं. कुछ सपने कभी सच नहीं होते, क्योंकि वे मानव मस्तिष्क – ‘अपने-आपमें मस्तिष्क’ – की बेलगाम मौज होते हैं. जो थोड़े-से सपने साकार होते हैं वे मूलतः मानव मस्तिष्क – ‘खुद अपने लिए मस्तिष्क’ – की अमूर्त कृतियां होते हैं. तथापि सपने चाहे बेलगाम हों या सत्याभासी, वे मानव उद्यम का स्रोत रहे हैं – संभवतः मानवता की उत्पत्ति के समय से ही.
मेरे सपनों का भारत निस्संदेह एक अखंड भारत है जहां एक पाकिस्तानी मुसलमान को अपने विवर्तन की जड़ें तलाशने के लिए किसी ‘वीसा’ (ठहरने का अनुमति पत्र) की आवश्यकता नहीं होगी; जहां, इसी तरह, किसी भारतीय के लिए महान सिंधुघाटी सभ्यता विदेश में स्थित नहीं होगी; और जहां बंगाली हिंदू शरणार्थी अंततः ढाका की कड़वी स्मृतियों के आंसू पोंछ लेंगे और बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में विदेशी कहकर चूहों की तरह नहीं खदेड़ा जाएगा.
क्या मेरी आवाज भाजपा की आवाज से मिलती-जुलती लगती है? लेकिन भाजपा तो भारत के मुस्लिम पाकिस्तान और हिंदू भारत – अलबत्ता उतना ‘विशुद्ध’ नहीं – में महाविभाजन पर फली-फूली. चूंकि भाजपा इस विभाजन को तमाम विनाशकारी नतीजों के साथ चरम बिंदु तक पहुंचा रही है इसलिए इन तीनों देशों में महान विचारक यकीनन पैदा होंगे और वे इन तीनों के भ्रातृत्वपूर्ण पुनरेकीकरण के लिए जनमत तैयार करेंगे. निश्चिंत रहिए, वो दिन भाजपा जैसी ताकतों के लिए कयामत का दिन होगा.
मेरे सपनों के भारत में गंगा और कावेरी तथा सिंधु और ब्रह्मपुत्र एक दूसरे में मुक्त भाव से मिलेंगे और सुबह की सफेदी महान भारतीय संगीत के धुनों की जुगलबंदी के साथ छाएगी. और तब कोई राजनेता अपने विवरणों को ‘भारत की पुनर्खोज’ में संकलित करेगा.
मेरे सपनों का भारत राष्ट्रों के समुदाय में एक ऐसे देश के रूप में उभरेगा जिससे कमजोर से कमजोर पड़ोसी को भी डर नहीं होगा और जिसे दुनिया का सबसे ताकतवर देश भी धमका नहीं सकेगा, न ब्लैकमेल कर सकेगा. आर्थिक ताकत का मामला हो या ओलंपिक की पदक तालिका हो, मेरा देश दुनिया के पहले पांच देशों में होगा.
मेरे सपनों का भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा जिसकी आधारशिला ‘सर्वधर्म समभाव’ की जगह ‘सर्वधर्म विवर्जिते’ का उसूल होगी. किसी की व्यक्तिगत धार्मिक आस्थाओं में हस्तक्षेप किए बगैर राज्य वैज्ञानिक व तार्किक विश्व दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करेगा.
यह कहना बिलकुल सही है कि धर्म अपने परिवेश के समक्ष मनुष्य की असहायता की अभिव्यक्ति है. लिहाजा इसका उन्मूलन भौतिक व आध्यात्मिक जीवनदशाओं में आमूल परिवर्तन की मांग करता है जहां मनुष्य अपने परिवेश पर आधिपत्य कायम करने के लिए खड़ा हो सके. भारत में जब कभी अनुदार दार्शनिक विचार प्रणालियां जनता पर पहाड़ बनकर लद गई हैं, तब-तब यहां हमेशा सुधार आंदोलनों का उदय हुआ है. इस प्रकार मैं वैज्ञानिक विचारों के पुनरुत्थान का सपना देखता हूं, जहां भगवान के रूप में पराया बन गया मानव-सार मनुष्य फिर वापस पा सकेगा. मानव मस्तिष्क के इस महान रूपांतरण के साथ-साथ एक सामाजिक क्रांति होगी जहां संपत्ति के उत्पादक अपने उत्पादों के मालिक भी होंगे.
मेरे सपनों के भारत में प्रतिनिधि सभाओं में महिलाएं 50 फीसदी होंगी. प्रेम विवाह रिवाज बन जायेगा और तलाक देना सहज होगा. बच्चे तंगहाली से अनभिज्ञ होंगे और उनकी देखभाल की जिम्मेवारी माता-पिता से ज्यादा राज्य पर होगी.
मेरे सपनों के भारत में अछूतों को हरिजन कहकर गौरवान्वित करने का अंत हो जाएगा और दलित नाम की कोई श्रेणी न रहेगी. जातियां विघटित होकर वर्गों का रूप ले लेंगी और उनके हर सदस्य की अपनी व्यक्तिगत पहचान होगी.
मेरे सपनों के भारत के हर शहर में एक कहवाघर होगा जहां ठंढी काफी की घूंटें भरते-भरते बुद्धिजीवी गर्मागर्म बहसें करेंगे. वहां कुछ वेदनाविदग्ध व्यक्ति धुएं के छल्लों के बीच अपनी प्रेयसियों के प्रतिरूप तलाशेंगे तो कई अतृप्त हृदय कला व साहित्य की विविध रचनाओं से मंत्रमुग्ध हो उठेंगे. जबकि कला व साहित्य की किसी भी रचना पर राज्य की ओर से कोई सेंसर नहीं लगेगा. वहां तमाम सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान सख्ती से मना रहेगा – बेशक, कहवाघरों को छोड़कर.
मेरे प्रारंभिक विषय पर लौटते हुए, मेरा सपना है कि भारतीय अंतरिक्ष यान गहरे आकाश को भेदता हुआ उड़ता चलेगा तथा भारतीय वैज्ञानिक व गणितज्ञ प्रकृति की मौलिक शक्तियों को एक अखंड समग्र में समेटने के समीकरण हल करेंगे.
अंततः, मेरे तमाम सपनों की मां मातृभूमि है, जिसके हर नागरिक की राजनीतिक मुक्ति को सबसे ज्यादा कीमती समझा जाएगा; जहां असहमति की वैधता होगी और जिस व्यवस्था में थ्येन आनमेन को नैतिक रूप से शक्तिशाली राजनेता और जन-मिलिशिया की निहत्थी शक्तियां निपटाएंगी.
मेरे सपनों का भारत भारतीय समाज में कार्यरत बुनियादी प्रक्रियाओं पर आधारित है जिसे साकार करने के लिए मेरे जैसे बहुतेरे लोगों ने अपने खून की अंतिम बूंद तक बहाने की शपथ ले रखी है.
कामरेड विनोद मिश्र को लाल सलाम!
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