संजय चौधरी छपरा विश्वविद्यालय में बिना पीएचडी उपाधि के ही फर्जीवाड़ा करते हुए नीतीश-सुशील मोदी राज में वर्ष 2009 में प्रिंसिपल बन गए थे। जबकि इस तथ्य से आप भी वाकिफ होंगे कि डिग्री कॉलेज का प्रिंसिपल बनने के लिए पीएचडी की उपाधि न्यूनतम पात्रता होती है। छपरा विश्वविद्यालय द्वारा गठित जांच कमेटी ने इस मामले में उन्हें दोषी भी करार दिया। मामला खुलता देख अपनी राजनीतिक पहुंच के बल पर वर्ष 2015 में संजय चौधरी ने भागलपुर विश्वविद्यालय में अपना स्थानांतरण करा लिया।
आपको घटना की वास्तविक वजह से अवगत कराना हम अपना जरूरी फर्ज मानते हैं। इस घटना के पीछे विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के आरोपी टीएनबी कॉलेज भागलपुर के प्रिंसिपल संजय चौधरी हैं, जिनके खिलाफ हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र महतो पिछले समय से ही आवाज बुलंद करते रहे हैं। संजय चौधरी छपरा विश्वविद्यालय में बिना पीएचडी उपाधि के ही फर्जीवाड़ा करते हुए नीतीश-सुशील मोदी राज में वर्ष 2009 में प्रिंसिपल बन गए थे। जबकि इस तथ्य से आप भी वाकिफ होंगे कि डिग्री कॉलेज का प्रिंसिपल बनने के लिए पीएचडी की उपाधि न्यूनतम पात्रता होती है। छपरा विश्वविद्यालय द्वारा गठित जांच कमेटी ने इस मामले में उन्हें दोषी भी करार दिया। मामला खुलता देख अपनी राजनीतिक पहुंच के बल पर वर्ष 2015 में संजय चौधरी ने भागलपुर विश्वविद्यालय में अपना स्थानांतरण करा लिया। यहां आने पर भी इनका कुकर्म जारी रहा और दो कॉलेजों में प्रिंसिपल रहते हुए इन्होंने भ्रष्टाचार में लाखों की हेराफेरी की, जिसकी पुष्टि भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा गठित जांच कमिटी की जांच में भी हो चुकी है। डॉ. योगेन्द्र इन कमिटियों के सदस्य भी रहे हैं। इस भ्र्ष्टाचार की शिकायत राज्य के महामहिम राज्यपाल से भी की गई है किंतु संजय चौधरी का राजनीतिक रसूख देखिये कि इसके बाद भी पिछले दिनों ये विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति तक बनाये गए थे। डॉ. योगेन्द्र ने उस वक्त भी एक भ्रष्ट व्यक्ति को कुलपति का प्रभार दिए जाने का मुखर होकर विरोध किया था। किंतु आपकी पार्टी की छात्र इकाई उस वक्त भी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए थी। आपको उनसे पूछना चाहिए कि इस चुप्पी की वजह क्या थी!
आपको लग सकता है कि यहां संजय चौधरी के मामले का बेवजह क्यों जिक्र किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि इस घटना के तार संजय चौधरी से गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं। बिहार बंदी के दरम्यान अंग क्रांति सेना नामक एक स्थानीय संगठन ने, जो आरक्षण व सामाजिक न्याय का घनघोर विरोधी रहा है और सवर्ण आरक्षण के समर्थन में मुखर होकर जुलूस तक निकालता रहा है, बिहार बन्द को समर्थन देते हुए पूर्व साजिश के तहत छात्र राजद के साथ शामिल हो गया और हिंदी विभाग को जान-बूझकर टारगेट किया गया। यह संगठन उन्हीं भ्रष्टाचार के दोषी प्रिंसिपल संजय चौधरी के लिए जातिवादी गठजोड़ के आधार पर काम करता है। इस संगठन के नेता के उकसावे में आकर आपके दल के छात्र नेताओं ने हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष और शिक्षक से संजय चौधरी के खिलाफ आवाज उठाने का बदला चुकाने में साथ दिया है। उन नेताओं की पिछले दिनों की एक्टिविटी से साफ जाहिर होता कि सम्भवतः इन्हें भी संजय चौधरी ने मैनेज कर लिया है। यदि ये छात्र नेता आपके दल और सामाजिक न्याय के सच्चे सिपाही होते तो संजय चौधरी के संगीन मामले को आपसे विधानसभा में उठाने के लिए जरूर कहते। यह भ्रष्टाचार मुक्त बिहार बनाने का दावा करने वाली राज्य सरकार को एक्सपोज करने के लिहाज से भी एक और जरूरी व गम्भीर मुद्दा था। किंतु शिक्षण संस्थानों में व्याप्त ऐसे संगीन भ्र्ष्टाचार के दोषी के खिलाफ आंदोलन के बजाय छात्र राजद की भागलपुर विश्वविद्यालय इकाई ने मौन समर्थन देने का रास्ता चुनते हुए इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले पर ही हमला बोल दिया है।