लघुकथाः एकता

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विशद कुमार

भेड़ों का झूंड जा रहा था। दूर खड़ा एक शेर उन्हें जाते देख रहा था और अपने होठों पर जीभ फेर रहा था। अचानक वह भेड़ों के झूंड की ओर दौड़ पड़ा। भेड़ों को लगा कि शेर उन्हीं की ओर आ रहा है, तब वे भागने के बजाय वहीं खड़ी हो गयी और शेर को अपनी ओर आता देखती रहीं। शेर ने उन्हें खड़ा देखा तो थोड़ा विस्मित हुआ और थोड़ा ठिठका। फिर उसे लगा कि ये भेड़ें हैं, उसका क्या बिगाड़ लेगी। अत: वह पुन: दौड़ लगा दी। शेर जैसे ही भेड़ों के करीब पहुंचा, भेड़ों ने उसे चारो ओर से घेर लिया। एक बारगी शेर घबराया, लेकिन खुद का शेर होने के एहसास के बाद वह एक भेड़ को दबोच लिया। वह भेड़ मिमियाने लगी। अपने साथी भेड़ के दबोचे जाने के बाद भेड़े थोड़ी सहमी, मगर पुन: उन्होंने शेर पर हमला बोल दिया। शेर अपने पंजों से उस भेड़ की गर्दन पकड़ कर पटक रखा था, तथा दांतों से उसका पेट फाड़ने की कोशिश कर रहा था। बावजूद बाकी भेड़ें शेर पर हमला करना बंद नहीं किया। भेड़े अपने सींगों से लगातार शेर पर हमला करती रही थीं। अंतत: शेर घायल होकर गिर पड़ा। भेड़ों ने हमला तब तक बंद नहीं किया, जब तक शेर मर नहीं गया। वह भेड़ भी मर चुकी थी, जिसे शेर ने दबोच रखा था। बावजूद अपनी साथी भेड़ की मौत का गम, उन बाकी भेड़ों को शकुन दे रहा था। क्योंकि उन्होंने शेर को मार दिया था। अब उन्हें अपनी एकता और भय से मुक्ति का एहसास हो गया था।

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