मनरेगा कर्मियों की राज्यव्यापी हड़ताल पर शिक्षा मंत्री का आश्वासन सरकार और संघ के बीच मध्यस्थता का काम करेंगे

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  • विशद कुमार

झारखंड में मनरेगा कर्मियों की अपनी 5 सूत्री माँगों को लेकर 27 जुलाई शुरू हुई अनिश्चित कालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर सरकार द्वारा अभी तक कोई सार्थक पहल नहीं हो सकी है, जिसके परिणाम स्वरूप राज्य के मनरेगा मजदूरों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। आंकड़े बताते हैं कि मनरेगा मजदूरों की संख्या अब आधी रह गई है। अगर हड़ताल आगे भी इसी तरह बरकरार रही तो जहां मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों के रूकने से राज्य का विकास प्रभावित होगा, वहीं इस कोरोना काल में मजदूरों का एकमात्र सहारा बना मनरेगा अर्थहीन हो जाएगा और मजदूरों में भुखमरी का संकट विकराल रूप धारण कर लेगा। शायद इस संकट का आभास राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हो चुका है अत: उनके निर्देश पर 5 अगस्त को राज्य के शिक्षा सह मद्य निषेध मंत्री जगरनाथ महतो ने झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों को बोकारो जिला स्थित भंडारीदह अपने आवास पर बुलाया और उनकी समस्याओं के निदान का आश्वासन दिया।

सचिव जॉन पीटर बागे ने बताया कि मंत्री जी ने कहा कि हमारी मांगे जायज है। मांगों को पूरा करने के लिए सरकार और संघ के बीच मध्यस्थता का काम करेंगे। बागे ने बताया कि  संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिरुद्ध पांडेय के नेतृत्व प्रदेश कमिटी के अन्य पदाधिकारी और बोकारो जिला कमिटी के सदस्यों और   मंत्री जगरनाथ महतो के बीच अनिश्चितकालीन हड़ताल और पांच सूत्री मांगों पर विस्तृत चर्चा हुई। अवसर पर मंत्री ने कहा कि जल्द ही आपकी वार्ता विभागीय मंत्री से मेरी उपस्थिति में होगी। सरकार आपकी समस्याओं से अवगत है, कोरोना काल के चलते थोड़ा विलंब हो रहा है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिरुद्ध पांडेय ने कहा कि विभागीय मंत्री और विभागीय सचिव के साथ लिखित वार्ता के बाद ही संघ आगे का निर्णय लेगा।

उक्त वार्ता में राज्य कमिटी के पदाधिकारियों सहित राज्य कमिटी के सदस्यों में दीपक कुमार महतो, महेश सोरेन, नन्हे परवेज़, संजय प्रामाणिक, विनोद विश्वकर्मा, लतीफ अंसारी, संतोष कुमार, विश्वनाथ महतो, लालचंद महतो, गौतम प्रसाद, सुनील चन्द्र दास, रामेश्वर महतो, ईश्वर साव आदि उपस्थित थे।

बता दें कि झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ द्वारा पिछले 12 जून व 17 जून 2020 को सरकार से मनरेगा कर्मियों की समस्याओं को लेकर वार्ता की पहल की गई थी, परंतु सरकार की ओर कोई पहल नहीं हुई। 19 जून को मनरेगा आयुक्त से मनरेगा कर्मचारी संघ से वार्ता तो हुई मगर वार्ता विफल रही। अंततोगत्वा मनरेगा कर्मचारी संघ ने 27 जुलाई से अनिश्चित कालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है।

उल्लेखनीय है कि विगत 4 महीनों से अन्य विभागों तथा निजी क्षेत्रों में विनिर्माण कार्य बन्द होने से श्रमिकों को मिलने वाला काम और मजदूरी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूर रोजगार की एक नई उम्मीद के साथ मनरेगा योजनाओं की ओर रूख करने लगे थे। ऐसे में ज्योंही सरकार ने 20 अप्रैल से मनरेगा योजनाओं में कुछेक सुरक्षा मानकों के साथ काम कराने संबंधी अधिसूचना जारी की, कि मजदूर बड़े पैमाने पर मनरेगा योजनाओं में मजदूरी करने को निकल पड़े थे।

बताना जरूरी होगा कि हड़ताल से मुख्यमंत्री द्वारा 4 मई को की गई घोषणा के तहत महत्वकांक्षी 3 योजनाओं सहित कुल 4 लाख 84 हजार 017 योजनाएँ सर्वाधिक प्रभावित हो रही हैं। 4 मई को प्रारंभ की गई योजनाओं में बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर पीतांबर जल समृद्धि योजना और शहीद पोटो हो खेल विकास योजना शामिल है। बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत बागवानी हेतु इस वित्तीय वर्ष में 50 हजार परिवारों की जमीन पर न्यूनतम 1 एकड़ बागवानी लगाने का लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है, जिसमें से अधिकाँश योजनाएँ आम बागवानी की हैं। अगले 15 से 25 दिनों के अन्दर गड्ढों की भराई हेतु आवश्यक सामग्री एवं पौधों की आपूर्ति किया जाना है। इसके साथ ही 10 अगस्त तक पौधों की रोपाई करने पर ही पौधों को इस बरसात में जड़ पकड़ने का मौका मिलेगा अन्यथा काफी मात्रा में पौधे मुरझा सकते हैं।

मनरेगाकर्मी अपने 5 सूत्री माँगों को लेकर हड़ताल पर चले गये हैं। उनकी माँगें हैं कि झारखण्ड राज्य में कार्यरत सभी मनरेगा कर्मियों की सेवा को स्थाई किया जाए। स्थाई किये जाने की तिथि तक पद एवं कोटि के अनुरूप ग्रेड पे के साथ वेतनमान दिया जाए। मनरेगा कर्मियों को 25 लाख का जीवन बीमा एवं 5 लाख का स्वास्थ्य बीमा का लाभ दिया जाए तथा मृत मनरेगा कर्मियों के परिवार को 25 लाख का मुआवजा एवं परिवार के सदस्य को अनुकम्पा के आधार पर सरकारी नौकरी दी जाए। मनरेगा कर्मियों को भी मातृत्व / पितृत्व अवकाश, अर्जित अवकाश, चिकित्सा अवकाश आदि का प्रावधान किया जाए। उनकी तीसरी माँग है कि अनियमितता के आरोप में मनरेगा कर्मियों को सीधे बर्खास्त करने के बजाए सरकारी कर्मचारियों की तरह कार्रवाई की जाए तथा अभी तक बर्खास्त कर्मियों को बिना शर्त सेवा में वापस लिया जाए। चौथा मनरेगा कर्मियों को सीमित उप समाहर्ता की परीक्षा में बैठने का अवसर दिया जाए तथा राज्य के समस्त नियुक्तियों में मनरेगा कर्मचारियों को उम्र सीमा में सेवाकाल की अवधि के बराबर छूट एवं रिक्त पदों में 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। आखरी माँग हैं कि बिहार की तर्ज पर मनरेगा को स्वतंत्र इकाई घोषित करते हुए मनरेगा कर्मियों को इनके क्रियान्वयन की सम्पूर्ण जिम्मेवारी दी जाए।

उल्लेखनीय है कि राज्यभर में मनरेगा कर्मियों के 1499 पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं। कई प्रखण्डों में प्रखण्ड कार्यक्रम जैसे महत्वपूर्ण पद रिक्त हैं। एक-एक ग्राम रोजगार सेवक 2-2 पंचायतों की जिम्मेवारी निभा रहे हैं। सरकार की इस कदर उदासीनता की वजह से मनरेगा कर्मी कई दफा अत्यंत दबाव में कार्य करते हैं। दूसरी तरफ इन अनुबंध कर्मियों का मानदेय भी न्यूनतम साढ़े सात हजार से लेकर 20 हजार के बीच है। राज्य के लगभग 5 हजार मनरेगा कर्मियों पर 52 लाख पंजीकृत मजदूर निर्भर हैं।

संघ के प्रदेश सचिव जॉन पीटर बागे कहते हें कि ”राज्य के अधिकारी सरकार को बरगलाने का काम करते रहे हैं। कुछेक अधिकारी मंत्री एवं मुख्यमंत्री महोदय को मनरेगा कर्मियों के विषय में हमेशा दिग्भ्रमित करते रहते हैं। दरअसल ऐसे अधिकारी झारखंड के युवाओं का भला होते नहीं देखना चाहते हैं। लेकिन मनरेगा कर्मी एकजुट है इनकी मंशा को कभी सफल नहीं होने देंगे। मनरेगा कर्मियों को हड़ताल से वापस आने के लिए अधिकारियों ने तमाम हथकंडों को अपनाया है, लेकिन हम मांगे पूरी होने तक हड़ताल पर डटे रहेंगे।”

बता दें कि सामान्य दिनों में पूरे झारखंड में 7 लाख तक मजदूर कार्यरत रहते थे, किंतु यह आंकड़ा 2 दिनों में ही खिसक कर 3 लाख पर आ गया था। यह आंकड़ा प्रतिदिन 70 हजार से 1 लाख तक घटने का अनुमान है। यद्यपि सरकार के अधिकारियों के आदेश पर वैकल्पिक तौर पर मनरेगा में काम करने के लिए अन्य विभागों के पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रतिनियुक्त किया गया है, लेकिन किसी भी पैरामीटर में अपेक्षाकृत प्रगति नहीं हुई है।

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