दुनिया के मजदूरो, एक हो! पूँजीवाद मुर्दाबाद!! वैज्ञानिक समाजवाद जिंदाबाद!!!
असंगठित क्षेत्र के मजदूर साथियों के नाम –
साथियो!
आठ घंटे काम, आठ घण्टे आराम और आठ घंटे मनोरंजन का नारा उस समय का है जब मशीनें आज जितनी उन्नत नहीं थीं। आज जब विज्ञान-टेक्नोलॉजी में बेहिसाब उन्नति हो चुकी है तो काम के घंटों को घटा कर छह घंटे की मांग की जानी चाहिए लेकिन देखने में इसके उलटा आ रहा है। चूँकि बढ़ती मंहगाई के कारण वास्तविक मज़दूरी कम होती जा रही है इसलिए हम मज़दूर जिंदगी की गाड़ी ठेलने के लिए खुद ही काम को ठेके पर लेते हैं और 10-12 घंटे की हाड़तोड़ मेहनत करते हैं और नींद के लिए शराब का सहारा लेकर अपनी सेहत चौपट करते हैं।
असंगठित क्षेत्र के मजदूरों में राजमिस्त्री, शटरिंग मिस्त्री, पेंटर, बढ़ई, प्लंबर, बिजली मिस्त्री, बेलदार, हेल्पर इत्यादि निर्माण मजदूर भी आते हैं। हम सभी लोग काम की तलाश में शहरों के विभिन्न चौक-चौराहों पर खड़े रहते हैं।
मजदूर साथियों!
एक तो हमें बढ़ती महँगाई के हिसाब से उचित मजदूरी नहीं दी जाती है और ऊपर से कभी-कभी मालिक या ठेकेदार हमसे काम करवा कर हमें मजदूरी तक नहीं देता है। बकाया रुपया बार-बार मांगने पर हमारे साथ बदसलूकी और मार-पीट की जाती है। साथियों, सरकार के सामने अपनी माँगों को असरदार ढंग से रखने और मालिक-ठेकेदार से अपनी पूरी मज़दूरी प्राप्त करने के लिए आइए यूनियन बनाएं और उत्तर प्रदेश निर्माण व असंगठित मज़दूर यूनियन से लोगों को जोड़ें। एकता के दम पर ही मज़दूर-राज कायम किया जा सकता है।
बताते चलें कि एक के बाद एक आने वाली सरकारें पूँजीपतियों को लाभ प्रदान करने के लिए सरपट गति से निजीकरण करती रही हैं। केंद्र व प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकारें बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, बेघरी आदि की ओर जनता का ध्यान न जाए इसलिए हमेशा बात-बेबात हिंदू-मुसलमान करती रहती हैं। स्वास्थ्य-शिक्षा की हालत तब तक नहीं सुधर सकती जब तक कि निजी अस्पताल और निजी स्कूल रहेंगे। और सच तो यह है कि मज़दूर वर्ग जब तक राजकाज को अपने हाथों में नहीं लेता तब तक पूँजीपति वर्ग मुनाफे की अंधी हवस के वशीभूत होकर मानव-जीवन के सभी क्षेत्रों का कबाड़ा करता रहेगा।
पूँजीपति वर्ग की मुनाफे की अंधी हवस का ही नतीजा है कि जिन क्षेत्रों में कभी नियमित रोजगार मिला करते थे आज वे सब निजी क्षेत्र के हवाले किए जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। बिजली विभाग हो या दूरसंचार विभाग हर जगह ठेकाकरण का बोलबाला है। तकनीकी शिक्षा प्राप्त नौजवानों को 10-12 हजार पर खटाया जा रहा है। स्टोर चाहे जियो के हों या एयरटेल के या फिर चाहे मॉल ही क्यों न हों, औसत वेतन 10-12 हजार ही है। जब मज़दूरों का वेतन ही इतना कम है और वे कुछ खरीद ही नहीं सकते तो छोटी-मोटी दुकानें भी आखिर चलें तो चलें कैसे?
साथियों!
इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार के सामने हम एकजुट होकर निम्नलिखित माँगें रखते हैः
1. मजदूरों के काम के घंटे 8 की जगह पर 6 करो और उनकी दिहाड़ी कम से कम एक हजार रुपये करो।
2. खुद मज़दूर द्वारा ठेके पर काम लेकर 10-12 घंटे काम करने के बढ़ते चलन पर रोक लगाओ।
3. बारिश-कड़ाके की ठंड के मौसम में लेबर-चौराहों के आसपास सभी सुविधाओं से युक्त रैन-बसेरे का निर्माण करो, जिसमें पानी-बढ़िया शौचालय और रात के खाने का इंतजाम हो।
4. मजदूरों को काम नहीं मिलने की दशा में 15 हजार रुपये मासिक बेरोजगारी भत्ता दो और मज़दूरों के पंजीकरण के लिए सघन अभियान चलाओ।
5. सभी मजदूरों के लिए ‘सस्ते भोजनालय’ की व्यवस्था करो, ताकि मजदूर भूखों मरने के लिए विवश न हों।
6. 60 साल से अधिक उम्र के और काम करने में अक्षम मजदूरों के लिए समुचित पेंशन की व्यवस्था करो!
7. स्थापित मजदूर चौकों पर पेय जल, स्वच्छ शौचालय, प्राथमिक उपचार, विश्राम की उचित सुविधा सुनिश्चित करो।
8. स्त्री मज़दूरों को प्राथमिकता के आधार पर मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं में काम दो और उन्हें सभी जगहों पर पुरुष मज़दूरों के बराबर मज़दूरी दिलाने की व्यवस्था करो।
क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ-
उत्तर प्रदेश निर्माण व असंगठित मजदूर यूनियन