विशद कुमार
वर्तमान लाक डाऊन ने गरीबों पर चारों तरफ से कोहराम मचा दिया है। जहाँ एक तरफ देश के हर प्रमुख शहर से अप्रवासी मजदूर अपने बाल बच्चों के साथ जैसे तैसे पैदल पाँव अपने घरों की ओर कूच कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ गाँवों में जगलाल भुईयां सरीखे गरीब परिवार हैं जिनकी 6 वर्षीय बच्ची भूख से तड़पकर मर गई। इस भूमिहीन परिवार के पास न राशन कार्ड है न रोजगार कार्ड। सिर्फ यही नहीं सरकारों के लाख लोभ लुभावन घोषणाओं के बावजूद पूरे लाक डाऊन अवधि में इस परिवार को आपदा राहत कोष से कोई खाद्यान्न मिला, न डीलर ने इनको किसी प्रकार का राशन दिया और न ही प्रखण्ड प्रशासन ने इस परिवार के बारे कोई सुधि ली। जबकि प्रखण्ड प्रशासन को डोंकी पंचायत से ऐसे 36 परिवारों की सूचि 15 दिन पहले ही सौंपी गई है जो खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं।
घटना लातेहार जिले के मनिका प्रखण्ड अन्तर्गत डोंकी पंचायत, हेसातु गाँव का है। इस गाँव में करीब 35 भुईयाँ परिवार हैं जो पूरी तरह भूमिहीन परिवार हैं। लगभग 110 परिवारों वाले इस गाँव में अन्य परिवारों में खेरवार, साव और कुछ घर कुम्हार परिवार हैं। उन्हीं दलित परिवारों में से जगलाल भुईयां का परिवार भी है। उनके 8 बच्चे क्रमशः रीता कुमारी (13 वर्ष), गीता कुमारी (12 वर्ष), अखिलेश भुईयाँ (10 वर्ष), मिथुन भुईयाँ (8 वर्ष), निमनी कुमारी (5 वर्ष, अब मृत), रूपन्ती कुमारी (3 वर्ष), मीना कुमारी (2 वर्ष) और चम्पा कुमारी (4 माह) थे। जगलाल अपने 2 बच्चों के साथ लातेहार शहर के निकट सुखलकट्ठा में ईंटा पाथने का काम कर अपने परिवार को किसी तरह पाल रहे थे। घटना के पहले होली के समय वे 15 किलो अनाज लेकर घर आये थे। इसके बाद आज सुबह वह अपनी बच्ची की मौत की खबर सुनकर घर पहुँचे। लेकिन वह अभागा पिता अपनी मृत बच्ची की एक झलक भी नहीं देख पाये। क्योंकि ग्रामीणों ने पहले ही लाश को दफना दिया था।
घटना के संबंध में बच्ची की माँ ने बताया कि पिछले करीब पाँच दिनों से घर में खाना नहीं बन रहा था और परिवार के सभी सदस्य खाली पेट रहने, सोने को मजबूर थे। उसके पहले वह गाँव में इधर-उधर से मांग कर खाना जुटा रही थी, लेकिन बाद में वो लोग भी खाद्यान्न देने में असक्षम थे. घटना के दिन सुबह बच्ची बिल्कुल सामान्य थी। दोपहर साढे़ बारह बजे के करीब वो अन्य 4-5 अन्य बच्चों साथ नदी में नहाने गई थी। उधर से आने के बाद उसे हल्का बुखार आ रहा था, फिर वह उल्टी भी की थी। बाद में फिर से वह ठीक हो गयी थी। लेकिन शाम को अचानक बेहोश हो गई। आस-पास के लोगों ने फरका (मिरगी बीमारी) समझकर घरेलू इलाज करना शुरू किया। जब तक लोग मनिका अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ी, मोटर साईकिल की व्यवस्था में लगे थे। तब तक बच्ची की जान जा चुकी थी। गाँव की सहिया दीदी भी इस बात को स्वीकारती हैं कि इनके घर में अनाज नहीं था। नरेगा सहायता केन्द्र के ज्याँ द्रेज, पचाठी सिंह और दिलीप रजक ने घर के अन्दर का मुआयना किया, जिसमें उन्होंने देखा कि अनाज का एक दाना घर में नहीं था। हाँ, घटना के बाद आनन-फानन में मनिका अंचलाधिकारी कल रात आठ बजे पीड़ित परिवार को 8 पैकट में 40 किलो चावल और पाँच हजार रूपये दिये हैं। वही अनाज घर में मिला।
झारखण्ड नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि “इस घटना ने सरकारी दावों की पूरी पोल खोल दी है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में ऐसे भूमिहीन दलित परिवारों को स्वतः शामिल करने के प्रावधान के बावजूद इन्हें राशन कार्ड से वंचित रखा गया। सिर्फ यही नहीं गाँव में 5 सदस्यों वाले अन्य भूमिहीन परिवार विनोद भुईयां को सफेद कार्ड (202100010836) थमा दिया गया है। पलामू प्रमण्डल में ऐसे हजारों दलित भूमिहीन परिवार हैं जिनको या तो सफेद कार्ड थमा दिया गया है या जिनके राशन कार्ड हैं ही नहीं। जगलाल भुईयाँ के रोजगार कार्ड (JH-06-004-006-004/59032) को भी 2 सितंबर 2013 को ही प्रशासन ने अन्य कारण बताते हुए निरस्त कर दिया है। गाँव के करीब डेढ़ दर्जन परिवार हैं जिनके रोजगार कार्डों को बिना किसी वैध कारण के 4-5 साल पहले ही निरस्त कर दिया गया है। इतने अभाव वाले गाँव हेसातु व नैहरा में किसी तरह का मनरेगा कार्य नहीं चल रहा है।”
वे आगे कहते हैं कि “सरकार जो ग्राम पंचायत के मुखियाओं के माध्यम से जरूरतमन्द परिवारों को 10 किलो खाद्यान्न देने का ढिंढोरा पीट रही है। वह ऐसे परिवारों के लिए जले में नमक छिड़कने जैसा है। ग्राम पंचायत मुखिया पार्वती देवी का कहना है कि लाक डाऊन शुरू होने के समय 10 हजार रूपये आपदा राहत में सरकार ने दिया था। वह कब का खत्म हो चुका है। इधर सरकार लगातार लाक डाऊन की अवधि लगातार बढ़ा रहीं है] लेकिन आपदा राहत में राशि आवंटित करना तो दूर पंचायत के खाते में जो 13वें वित्त की राशि पड़ी है उसे आपदा राहत मद में उपयोग हेतु 15 दिन पहले प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को मार्गदर्शन हेतु लिखा गया है। उस पर उक्त अधिकारी ने किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया। इसके अतिरिक्त हेसातु गाँव से 36 ऐसे लोगों की सूचि डीलर के सहयोग से प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को सौंपी गई है जो खाद्यान्न संकट का सामना कर रह हैं। लेकिन इसपर भी सरकारी अधिकारी ने किसी तरह की कार्रवाई नहीं की।”
ग्राम पंचायत में जो दीदी किचन चलाया जा रहा है वह भी पंचायत के एक कोने खरबनवा टाँड़ में चलाया जा रहा है, जहाँ पंचायत के जरूरतमंद लोग पहुंच ही नहीं पाएंगे। हेसातु गाँव मे प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन इतनी आबादी होने के बाद भी यहाँ आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार 2010 से ही इस गाँव में आँगनबाड़ी केन्द्र खोलने के लिए जिला प्रशासन को ग्रामीणों ने बच्चों की सूचि के साथ आवेदन दिया है। जो प्रशासनिक कार्रवाई के स्तर पर लंबित है।
हेसातु गाँव के ठीक बगल में पगार और शैलदाग गाँव है जहाँ के राशन डीलर को मार्च महीने के खाद्यान्न की कालाबाजारी के आरोप में जिला प्रशासन ने निलंबित कर दिया है। लेकिन जिला प्रशासन उस डीलर पर आज तक न आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत् प्राथमिकी दर्ज करा पाई और न ही राशन से वंचित परिवारों को खाद्यान्न ही वितरण करवा पा रही है। मनिका के सेमरी गाँव के 175 राशन कार्डधारियों की भी ठीक यही पीड़ा है।
भोजन के अधिकार पर काम कर रहे सामाजिक संगठनों की हमेशा से माँग रही है कि प्रत्येक जरूरतमंद परिवार को राशन कार्ड से जोड़ा जाए, खासकर भूमिहीन दलित, आदिवासी परिवारों को। सभी दालित आदिवासी व दलित गाँव और टोलों में आँगनबाड़ी केन्द्र खोले जाएँ। लोगों को भूखमरी से बचाने के लिए दीदी किचन जैसी व्यवस्था को आंगनबाड़ी तथा विद्यालय के स्तर पर प्रारंभ किया जाए। प्रत्येक गांव एवं टोलों में युद्ध स्तर पर मनरेगा योजनाओं को शुरू किया जाए। सरकार एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली की व्यवस्था करे।