बगोदर: 31 जुलाई 2020 तक के लिए राज्य सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन में राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों पर प्रतिबंध को लेकर भाकपा-माले चिंतित हैं. अभी तक कोरोना की रोकथाम में मोदी और हेमंत सरकार प्रर्याप्त तैयारियों में विफल रही हैैं. आपातकालीन सेवाओं और जनजीवन की बुनियादी सुविधाओं के लिए भी जनता को सड़कों पर उतरना पड़ा रहा है. प्रवासी मजदूरों की बड़ी तादाद अनलॉक 2 के दौर में भी रोजगार और जीवन-यापन के लिए आवश्यक आय से वंचित हैं.

मोदी द्वारा बिना तैयारियों के लॉकडाउन का हश्र पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है और कोरोना के विस्फोटक संक्रमण की एक बड़ी वजह यह भी है. हेमंत सरकार को राशन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए कारगर योजनाओं की घोषणा करनी होगी. आज जनता के अंदर यह सवाल बना हुआ है कि मोदी द्वारा घोषित बीस लाख करोड़ कहां खर्च हो रहे हैं जबकि झारखंड के सात लाख रोजगारशुदा लोग लॉकडाउन में रोजगार खोकर तंगी की मार झेल रहे हैं.
हेमंत सरकार को स्पष्ट करना चाहिए इस दौर में मनरेगा की मजदूरी को दो सौ रुपए से भी कम क्यों है. अत्यंत कम मजदूरी की वजह से राज्य में मनरेगा ठेकेदारों और अफसरों की बंदरबांट में खप जा रहा है. अपर्याप्त मजदूरी की वजह से मजदूर मनरेगा से दूर हैं और इस महामारी और बंदी में मनरेगा योजनाएं जेसीबी-पोपलेन से काम कराने वाले ठेकेदारों-अफसरों के मस्टर रोल लूट की श्रोत है, ग्रामीणों के रोजगार की नहीं. लॉकडाउन की क्षतिपूर्ति राशि के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी उनकी मंशा को दर्शाती है. भाकपा माले इन मसलों पर सरकारों से फौरन कदम उठाने की मांग करती है ताकि लॉकडाउन में जनता कोरोना से सुरक्षित रहे और उसे अपनी समस्याओं के लिए सड़कों पर नहीं उतरना पड़े.
मनोज भक्त
सदस्य, पॉलित ब्यूरो, भाकपा-माले