संपादकीय टिप्पणीः लिखने-पढ़ने की दुनिया में लेफ्ट की माला जपने वाली औरतों का दबदबा है, शेष को भगवा ब्रिगेड से जुड़ा बताकर उन्हें तिरस्कृत किया जाता है। इन दिनों हम आम-सहज स्त्रियों के लेखन को अपलोड करना चाह रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि मंशा किसी को चिढ़ाना नहीं है, अवचेतन में शायद यह चाहत बनी हुई है कि संवाद का पुल बने। देखते हैं कि धरती पर कोई भली स्त्री है भी या सब की सब परम दुष्ट हैं और बस अपनी ओर ध्यान खींचना चाहती हैं।
———————————
पितृपक्ष यह समय होता है अपनें दिवंगत पूर्वजों यानी पितरों को याद करने का, उन्हें तृप्त करने का,उनकी पूजा करने का
हमारे पितर साल भर इस समय की प्रतीक्षा करते हैं जब उनके परिजन,प्रियजन उनके लिए तर्पण अर्पण और पिंडदान करते हैैं
जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु होती है उसका पिंडदान श्राद्ध उसी तिथि को किया जाता है,जिनके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका तर्पण श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।
क्योंकि मृत्यु वाली तिथि पर अपने परिजनों और प्रियजनों द्वारा किए गए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान पितर जहां भी जिस भी लोक में जिस स्वरूप में होते हैं वे उसे उसी स्वरूप में ग्रहण कर लेते हैं तृप्त होकर अपने परिजनों को आशीर्वाद देते हैं
कहते हैं कि आत्मा का कोई रंग नहीं होता,जीवन के उस पार की दुनिया रंग विहीन होती है शायद इसीलिए श्राद्ध में सफेद वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है।
पितरों की दिशा दक्षिण बताई जाती है इसलिए दक्षिण की ओर मुख करके ही श्राद्ध कर्म किए जाते है
विज्ञान का तर्क देने वाले कुछ लोग कहते है कि देह की मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता शरीर से अलग आत्मा का कोई वजूद नहीं होता
लेकिन आध्यात्म कहता है कि मृत्यु के बाद देह भले ही मिट्टी में मिल जाए लेकिन आत्मा किसी न किसी आयाम में मौजूद रहती है
आत्मा का कभी विनाश नहीं होता कोई अग्नि,जल,वायु इसे नष्ट नहीं कर सकते
कुछ लोग ये भी कहतै है कि मृत्यु के बाद ,शरीर समाप्त हो जाता है फिर आत्मा को कपड़े,भोजन जल इन सब वस्तुओं की क्या जरूरत
पितृपक्ष जैसे आयोजन आडम्बर होते हैं व्यर्थ के कर्मकांड होते हैं
चलिए थोड़ी देर के लिए मान लिया तो भी क्या ये सच नहीं कि कुछ कर्मकांड हमें भावनात्मक रुप से मजबूत करते है हमें लय में ले आते है हमे एक दूसरे से जोडते हैं
यही कर्मकांड है जो हमारे भागमभाग , व्यस्त जिंदगी से थोड़ा समय निकाल कर उन पूर्वजों को याद करने का मौका देते है वरना कौन याद करता है अपने पूर्वजों को
जब हम अपनी उलझी ज़िन्दगी से थोडा समय निकाल कर अपने पूर्वजों को याद करते है तो वे खुश होते है तृप्त होते है क्योंकि इन दिनों वे हमारे आसपास ही होते है
हम इन दिनों उनसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा भी मांगते है और वे हमें माफ़ कर देते है
इसलिए सारे तर्क़ किनारे करके पितृपक्ष में आप कम से कम रोज थोड़ा सा समय निकाल कर परिवार के साथ बैठकर पितरों के नाम का एक दीप जलाकर उनकी अच्छी बातो का स्मरण करें
हमारे पितर यह देखकर कि उनके अपने उनका आज भी सम्मान कर रहें है उनको याद कर रहें हैं
बहुत खुश होंगे
और हमें उनका आभार व्यक्त करने का अवसर मिलेगा।
इस पितृपक्ष में अपने और संसार के सारे पूर्वजों को नमन।।
शालू शुक्ला
लखनऊ उत्तर प्रदेश