“मित्रों ! हम सभी जानते हैं कि दुःख का मुख्य कारण अज्ञानता है।कई बार सही जानकारी नहीं होने के कारण भी हम दुखी होते हैं।अभी परसों ही अमर कथाकार प्रेमचंद जयंती पर अधिकांश साहित्यकार मित्रों ने उनकी चर्चित कहानी ” पंच परमेश्वर ” में जुम्मन शेख की खाला द्वारा अलगू चौधरी को कहा गया वाक्य ‘ क्या बिगाड़ की डर से ईमान की बात न कहोगे ?’ लिखा था।क्या आज के साहित्यकार मित्र स्वयं अपने ऊपर इसे लागू करते हैं? यह विचारणीय प्रश्न है।
अब आते हैं मूल विषय पर।वर्ष 2020- 21 में मंत्रिमंडल सचिवालय राजभाषा पटना द्वारा पुरस्कार चयन समिति जिन लोगों को शामिल किया था उसके बारे में जान लें।
पुरस्कार चयन समिति के संयोजक माधव कौशिक ( ब्राह्मण ) को संयोजक ( वर्तमान में साहित्य अकादमी का अध्यक्ष ) सदस्य क्रमशः अनामिका ( कवयित्री ) नासिरा शर्मा ( कथाकार) कमल किशोर गोयनका, डॉ शांति जैन ( अब दिवंगत ) और विनोद बंधु ( पत्रकार ,हिंदुस्तान ) को बनाया गया था।सनद रहे कि इस पूरी चयन समिति में सभी सवर्ण जातियों से आने वाले थे।अन्य समुदाय से आने वाला एक भी व्यक्ति इसमें शामिल नहीं था।जिस समय यह चयन समिति बनी थी उस समय डॉ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पद पर थे।उनके ही अनुशंसा पर माधव कौशिक को चयन समिति का संयोजक बनाया गया था।बाद में स्वयं पद मुक्त होने पर माधव कौशिक को उन्होंने उक्त पद पर बैठाने का काम किया।इस काम में बिहार विधान परिषद के एक सदस्य प्रो. डॉ रामवचन राय ने भूमिका निभाई थी।माधव कौशिक ने डॉ विश्वनाथ तिवारी के नाम का चयन डॉ राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान के लिए किया।जब माधव कौशिक साहित्य अकादमी के अध्यक्ष हुए तो उन्होंने अनामिका की पुस्तक ” टोकरी पर दिगंत ” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। यानि कि आप मुझे उपकृत करें और मैं आपको। चुकी विनोद बंधु हिंदुस्तान समाचार पत्र से जुड़े हुए हैं और एक समय में मृणाल पांडे हिंदुस्तान की संपादक हुआ करती थीं।विनोद बंधु ने उनके नाम का चयन कर उन्हें उपकृत करने का काम किया।जिस समय चयन समिति में शामिल सभी लोग पटना के अतिथि गृह में ठहरे हुए थे उस समय मैं भी वहां ही था।कौन लोग किनके लिए लॉबिंग कर रहे थे वह सब मैं देख समझ रहा था।कई नामों पर नासिरा शर्मा सहमत नहीं थीं लेकिन उन्हें समझा बुझा कर सहमत किया गया।उक्त वर्ष के लिए जिन 15लोगों के नामों का चयन किया गया उनमें से 12लेखक सवर्ण जातियों से आते हैं।दलित ,अत्यंत पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग से महज एक एक व्यक्ति का चयन इसलिए किया गया ताकि चयन समिति पर पक्षपात का आरोप नहीं लगे।
आपको बताना चाहेंगे कि जिन्हें जननायक कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार से सम्मानित किया गया वे हैं मृणाल पांडे।जिन्होंने मृणाल पांडे को पढ़ा है उन्हें यह ज्ञात है कि वे पूरी तरह से आरक्षण विरोधी हैं।अब ऐसे लोगों को किस आधार पर जननायक कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार से सम्मानित किया गया? दूसरा उदाहरण,कवि सत्यनारायण को नागार्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।जो लोग नागार्जुन को और उनके साहित्य से परिचित हैं कि वे वामपंथी और प्रगतिशील विचारधारा के कवि थे।सत्यनारायण नागार्जुन के जीवित रहते हुए भी और निधन के बाद भी उनके कटु और स्तरहीन आलोचना करते थे।ऐसी स्थिति में उन्हें किस आधार पर नागार्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
कुछ ऐसे मित्र हैं जो जानकारी के अभाव में मुझे जातिवादी करार देते हैं।ऐसे मित्रों से पूछना चाहते हैं कि आखिर क्या कारण था कि फणीश्वरनाथ रेणु जैसे साहित्यकार को साहित्य अकादमी पुरस्कार/ ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया? जबकि उस समय उनकी कृति ” मैला आंचल” का वैश्विक स्तर पर चर्चा हो चुकी थी।उनके ही समकालीन कवि रामधारी सिंह दिनकर को दोनों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।जबकि उनकी किसी कृति की उतनी ख्याति उस वक्त नहीं थी जितनी रेणु की कृति की।इस पर कौन लिखेगा ? क्या सवर्ण जातियों से आने वाले किसी साहित्यकारों ने इस विषय पर एक भी शब्द लिखने का काम किया है? यदि वे वास्तव में इतने ईमानदार हैं तो?
एक बात और,हमारे समय के महत्वपूर्ण कथाकार चंद्रकिशोर जायसवाल को आखिर क्या वजह है कि इन पुरस्कारों से वंचित रखा गया है? इस पर क्या कोई सवर्ण जातियों से आने वाले साहित्यकार प्रश्न उठायेंगे? शायद नहीं।इसलिए किसी न किसी को तो आगे आना ही होगा।आखिर साहित्यकार कैसा समाज बनाना चाहते हैं? क्या समाज के सभी लोगों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप बराबरी का हक नहीं मिलना चाहिए? मित्रों दुःखी होने के बजाय इस गंभीर विषय पर विचार करने की जरूरत है।”
विनय कुमार सिंह (पत्रकार व समीक्षक )