बेघरी की आशंका को महसूस करते सर्व सेवा संघ के रहिवासियों की पीड़ा

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कामता प्रसाद, कार्यकारी संपादक

वाराणसीः यहाँ स्थित सर्व सेवा संघ के रहवासियों के सामने बेघरी की आशंका गहराती जा रही है। घटनाक्रम तेजी से बदलता जा रहा है। मैंने शुक्रवार 21 जुलाई को सर्व सेवा संघ के परिसर में प्रदर्शन कर रहे लोगों से मुलाकात की-बातचीत की। चूँकि यह मसला लंबे समय से सार्वजनिक चर्चा का विषय बना हुआ है और मीडिया में इस बाबत पर्याप्त जानकारी पहले से ही मौजूद है तो यहाँ मैं बस बेघरी के मानवीय संकट और अपने परिचित परिवेश से उजड़ने के दर्द को शब्द देने तक सीमित रहने जा रहा हूँ।
हमारा मोर्चा इस मामले में इतनी देर से हस्तक्षेप करने क्यों जा रहा है, जबकि ताजी सूचना के अनुसार परिसर में पुलिस दाखिल हो चुकी है और कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। तो बता दूँ कि हालांकि मैं गाँधीवादी नहीं हूँ और न ही सत्य को लेकर मेरा अपना कोई आग्रह है। लेकिन मेरी मोटी बुद्धि में भी तो यह बात समझ में आती ही है कि अगर आपको किसी का दिल जीतना है तो सच बोलने-लिखने के सिवाय कोई दूसरा उपाय नहीं है।
तो सच यह है कि कल ही मेरी नजर फेसबुक पर साझा किए गए बुजुर्ग साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी के वीडियो पर पड़ी, जिसमें वह अपनी पत्नी को यादकर फफककर रो पड़े थे, जिस पर एक परम-सनकी, मानव-द्वेषी, पाषाण-हृदय लाल बंदरिया पितृसत्ता को लेकर विमर्श चलाना चाह रही थी। मुझे लगा कि यह तो हद की भी हद हो गई। दुनिया को अगर खूबसूरत बनाना है तो हमें बच्चे के खिलौने की भी परवाह करनी होगी और उसे बचाने के लिए जिद भी दिखानी होगी और लड़ना भी पड़ेगा। सर्व सेवा संघ के निवासियों की अपने परिवेश को लेकर कसक, पीड़ा और छटपटाहट को मैं तदनुभूति (Empathy) के स्तर पर महसूस कर रहा हूँ। पत्रकार के रूप में मेरी संवेदनाएं उनके साथ हैं। 
किशोर बच्चों समेत दूसरे तमाम मुद्दों पर निरंतर सक्रिय रहने वाली गाँधीवादी कार्यकर्ता सुश्री जागृति राही उलाहना देते हुए कहने लगीं कि ह्यूमन राइट्स के पुरोधा सब केवल झुग्गियों के लिए लड़ते हैं। चंदाजीवी-सड़कछाप आंदोलनपंथियों को लेकर सुश्री राही की यह टिप्पणी मुझे आहत कर गई। मैं तो मिर्जा गालिब और मोहन राकेश का प्रशंसक रहा हूँ, जो मनुष्य-मात्र की पीड़ा के अनुपम चितेरे रहे हैं।
बस बताते चलें कि सर्व सेवा संघ के परिसर में ही मुनीजा खान भी रहती हैं, जो कि नाम से ही जाहिर है मुस्लिम हैं और सुश्री राही भी, जिन्होंने प्रेम विवाह किया था और जिनके पति क्षत्रिय हैं। लब्बोलुबाब यह कि जाति-धर्म समेत दूसरे तमाम दकियानूसी बंधनों से परे हटकर यहाँ बसने वाले परिवार प्यार-मोहब्बत और भाईचारे के साथ रहते आए हैं। ब्राह्मण परिवार में जन्मीं सुश्री राही के पति श्री संजय सिंह होम्योपैथी के गहरे जानकार हैं और अरक्षित-वंचित, दबी-कुचली आबादी को होम्योपैथी चिकित्सा से निरंतर लाभान्वित करते रहते हैं।
अब जबकि बेघरी का संकट उनके सामने एकदम से सुस्पष्ट हो चला है तो श्री संजय सिंह जी के चेहरे पर पीड़ा के स्पष्ट भाव देखे जा सकते हैं। वीडियो देखा जाएः

वरिष्ठ गाँधीवादी रामधीरज ने भी बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी है, उनको भी सुना जाएः

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