

देहरादूनः कोरेंटिन सेंटरों में व्याप्त अव्यवस्था व दुर्दशा के विरोध में वाम/ प्रगतिशील/ जनवादी संगठनों के आह्वान पर राज्यव्यापी प्रतिवाद/ धरना माध्यम से व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने कोरना से निजात पाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतरीन व सुरक्षित बनाए जाने की मांग के साथ कोरेंटिन सेंटरों में हुई अकाल मौतों के लिए सरकार की अव्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते हुए मृतकों के परिजनों को रुपया 10 लाख मुआवजा दिए जाने हेतु उप जिलाधिकारी के व्हाट्सएप माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया –
ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड में कोरोना के प्रभाव से उत्पन्न हालात और उनसे निपटने के सरकारी तौर-तरीके को लेकर प्रदेश की वाम-जनवादी पार्टियां,संगठन और व्यक्ति चंद बातें और मांगें करना चाहते हैं :
नैनीताल जिले के बेतालघाट ब्लॉक में तल्ली सेठी स्थित क्वारंटीन सेंटर में साँप के डसने से चार साल की बच्ची की मौत हो गयी. क्वारंटीन सेंटर में सर्पदंश से मौत की घटना भले ही यह पहली हो,लेकिन क्वारंटीन सेंटरों की दुर्दशा की बातें, आए-दिन सामने आ रही हैं. देहारादून से लेकर सुदूर अस्कोट तक और ऋषिकेश से लेकर गैरसैंण तक क्वारंटीन सेंटर अव्यवस्था और दुर्व्यवस्था के शिकार हैं. हम यह मांग करते हैं क्वारंटीन सेंटर, रिहायशी स्थलों को ही बनाया जाये,जिनमें सभी आवश्यक सुविधाएं और साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था हो. गैर-रिहायशी भवनों जैसे-स्कूल,पंचायत घर आदि को क्वारंटीन सेंटर न बनाया जाये. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाये कि क्वारंटीन सेंटरों में गुणवत्ता युक्त भोजन दिया जाये. बीते दिनों ऋषिकेश में कीड़े युक्त भोजन दिये जाने की बात सामने आई तो गैरसैंण,कपकोट आदि तमाम जगह खाने-पीने की सामग्री और उसे परोसे जाने वाले बर्तनों की गुणवत्ता बेहद खराब पायी गयी. नैनीताल के तल्ली सेठी स्थित क्वारंटीन सेंटर में सर्पदंश से काल-कवलित होने वाली बच्ची के परिजनों को दस लाख रुपया मुआवजा दिया जाये.
गांवों में क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था सरकार द्वारा ग्राम प्रधानों के हवाले कर दी गयी है,जो अधिकार और संसाधन विहीन हैं. क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था का जिम्मा पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन के हाथ में दिया जाना चाहिए.
जिस तेजी से कोरोना का प्रसार उत्तराखंड में रहा है,उससे लगता है कि टेस्टिंग की सुविधाएं बढ़ाए जाने की सख्त जरूरत है. जिला मुख्यालय और ब्लॉक मुखयालयों पर टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु त्वरित व्यवस्थाएं कायम करने की आवश्यकता है.
बड़े पैमाने पर लोग अपने मूल स्थानों को वापस लौट रहे हैं. उनमें से रेड ज़ोन से भी बड़ी तादाद में लोग आ रहे हैं. संक्रमण के फैलाव वाले क्षेत्रों से वापस लौट रहे लोग,इसके लिए उत्तरदाई नहीं है. बल्कि केंद्र सरकार की अदूरदर्शिता इसके लिए जिम्मेदार है,जिसने संक्रमण के अधिक फैलाव तक लोगों को रोके रखा और महीने भर के लॉकडाउन के बाद वापस लौटने की अनुमति दी. यह देखा जा रहा है कि बड़े पैमाने पर प्रवासियों के खिलाफ एक भय और अलगाव का माहौल समाज में बना दिया गया है. सरकारी मशीनरी,प्रशासन और पुलिस के लोग सयास या अनायास बाहर से अपने मूल स्थानों की ओर लौटते लोगों के प्रति भय और घृणा का माहौल बनाने में हिस्सेदार बन रहे हैं. हम यह मांग करते हैं कि बाहर से आने वालों के प्रति सरकारी तंत्र के भयपूर्ण प्रचार अभियान पर तत्काल रोक लगाई जाये. महोदय, इलाज और सुरक्षा की दृष्टि से अलग रखना एक बात है और अलगाव में डालना एकदम दूसरी बात है. वर्तमान में बाहर से लौटने वालों को अलगाव में डालने की कोशिश निरंतर सरकारी स्तर से ही शुरू हो रही है,जो कतई अस्वीकार्य है.
महोदय, ज़ोर देकर यह कहते हुए कि बाहर से लौटने वालों के साथ अलगाव का व्यवहार न किया जाये,यह भी कहना है कि कोरोना की रोकथाम के लिए जो मेडिकल उपाय किए जाने हैं,वे प्रभावी तरीके से किए जाएँ. उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका में दिये गए आदेश में कहा कि सिर्फ थर्मल स्क्रीनिंग ही काफी नहीं है बल्कि रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट भी किए जाने चाहिए. हम यह मांग करते हैं कि राज्य सरकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को लागू करने के लिए समुचित कदम उठाए.
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में लगे हुए डाक्टर,नर्स समेत सभी स्वास्थ्य कर्मियों,आशा,आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों,भोजनमाताओं,पुलिस ,पी.आर.डी.,होमगार्ड आदि को संक्रमण से बचाने के लिए समुचित प्रबंध किए जाएँ. साथ ही विभिन्न प्रदेशों और राज्य के अंदर यात्रियों को लाने-ले जाने वाले वाहन चालकों और परिचालकों के भी स्वास्थ्य रक्षा हेतु समुचित उपाय किए जाएँ.इन सब का निरंतर स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाये.
सब से बड़ी चुनौती स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त करने की है.हम यह मांग करते हैं कि सभी प्राथमिक चिकित्सालयों,सामुदायिक चिकित्सालयों से लेकर सभी सरकारी अस्पतालों में डाक्टर एवं अन्य स्टाफ का पर्याप्त इंतजाम तत्काल प्रभाव से किया जाये. साथ ही प्रदेश में वर्तमान में चिकित्सा सेवाओं की स्थिति पर राज्य सरकार द्वारा श्वेत पत्र जारी किए जाने की मांग हम करते हैं.
चूंकि यह चिकित्सीय आपदा का समय है,इसलिए तमाम निजी अस्पतालों को सरकार आपदा काल के लिए अधिगृहीत करे ।जनहित में अतिशीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा में –दिनांक : 28 मई 2020
नैनीताल जिले के बेतालघाट ब्लॉक में तल्ली सेठी स्थित क्वारंटीन सेंटर में साँप के डसने से चार साल की बच्ची की मौत हो गयी. क्वारंटीन सेंटर में सर्पदंश से मौत की घटना भले ही यह पहली हो,लेकिन क्वारंटीन सेंटरों की दुर्दशा की बातें, आए-दिन सामने आ रही हैं. देहारादून से लेकर सुदूर अस्कोट तक और ऋषिकेश से लेकर गैरसैंण तक क्वारंटीन सेंटर अव्यवस्था और दुर्व्यवस्था के शिकार हैं. हम यह मांग करते हैं क्वारंटीन सेंटर, रिहायशी स्थलों को ही बनाया जाये,जिनमें सभी आवश्यक सुविधाएं और साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था हो. गैर-रिहायशी भवनों जैसे-स्कूल,पंचायत घर आदि को क्वारंटीन सेंटर न बनाया जाये. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाये कि क्वारंटीन सेंटरों में गुणवत्ता युक्त भोजन दिया जाये. बीते दिनों ऋषिकेश में कीड़े युक्त भोजन दिये जाने की बात सामने आई तो गैरसैंण,कपकोट आदि तमाम जगह खाने-पीने की सामग्री और उसे परोसे जाने वाले बर्तनों की गुणवत्ता बेहद खराब पायी गयी. नैनीताल के तल्ली सेठी स्थित क्वारंटीन सेंटर में सर्पदंश से काल-कवलित होने वाली बच्ची के परिजनों को दस लाख रुपया मुआवजा दिया जाये.
गांवों में क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था सरकार द्वारा ग्राम प्रधानों के हवाले कर दी गयी है,जो अधिकार और संसाधन विहीन हैं. क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था का जिम्मा पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन के हाथ में दिया जाना चाहिए.
जिस तेजी से कोरोना का प्रसार उत्तराखंड में रहा है,उससे लगता है कि टेस्टिंग की सुविधाएं बढ़ाए जाने की सख्त जरूरत है. जिला मुख्यालय और ब्लॉक मुखयालयों पर टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु त्वरित व्यवस्थाएं कायम करने की आवश्यकता है.
बड़े पैमाने पर लोग अपने मूल स्थानों को वापस लौट रहे हैं. उनमें से रेड ज़ोन से भी बड़ी तादाद में लोग आ रहे हैं. संक्रमण के फैलाव वाले क्षेत्रों से वापस लौट रहे लोग,इसके लिए उत्तरदाई नहीं है. बल्कि केंद्र सरकार की अदूरदर्शिता इसके लिए जिम्मेदार है,जिसने संक्रमण के अधिक फैलाव तक लोगों को रोके रखा और महीने भर के लॉकडाउन के बाद वापस लौटने की अनुमति दी. यह देखा जा रहा है कि बड़े पैमाने पर प्रवासियों के खिलाफ एक भय और अलगाव का माहौल समाज में बना दिया गया है. सरकारी मशीनरी,प्रशासन और पुलिस के लोग सयास या अनायास बाहर से अपने मूल स्थानों की ओर लौटते लोगों के प्रति भय और घृणा का माहौल बनाने में हिस्सेदार बन रहे हैं. हम यह मांग करते हैं कि बाहर से आने वालों के प्रति सरकारी तंत्र के भयपूर्ण प्रचार अभियान पर तत्काल रोक लगाई जाये. महोदय, इलाज और सुरक्षा की दृष्टि से अलग रखना एक बात है और अलगाव में डालना एकदम दूसरी बात है. वर्तमान में बाहर से लौटने वालों को अलगाव में डालने की कोशिश निरंतर सरकारी स्तर से ही शुरू हो रही है,जो कतई अस्वीकार्य है.
महोदय, ज़ोर देकर यह कहते हुए कि बाहर से लौटने वालों के साथ अलगाव का व्यवहार न किया जाये,यह भी कहना है कि कोरोना की रोकथाम के लिए जो मेडिकल उपाय किए जाने हैं,वे प्रभावी तरीके से किए जाएँ. उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका में दिये गए आदेश में कहा कि सिर्फ थर्मल स्क्रीनिंग ही काफी नहीं है बल्कि रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट भी किए जाने चाहिए. हम यह मांग करते हैं कि राज्य सरकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को लागू करने के लिए समुचित कदम उठाए.
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में लगे हुए डाक्टर,नर्स समेत सभी स्वास्थ्य कर्मियों,आशा,आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों,भोजनमाताओं,पुलिस
सब से बड़ी चुनौती स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त करने की है.हम यह मांग करते हैं कि सभी प्राथमिक चिकित्सालयों,सामुदायिक चिकित्सालयों से लेकर सभी सरकारी अस्पतालों में डाक्टर एवं अन्य स्टाफ का पर्याप्त इंतजाम तत्काल प्रभाव से किया जाये. साथ ही प्रदेश में वर्तमान में चिकित्सा सेवाओं की स्थिति पर राज्य सरकार द्वारा श्वेत पत्र जारी किए जाने की मांग हम करते हैं.
चूंकि यह चिकित्सीय आपदा का समय है,इसलिए तमाम निजी अस्पतालों को सरकार आपदा काल के लिए अधिगृहीत करे ।जनहित में अतिशीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा में –दिनांक : 28 मई 2020
आनन्द सिंह नेगी
राज्य कमेटी सदस्य
भाकपा (माले)
उत्तराखण्ड
मो. 9410305100