एएनआई : सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि देश में COVID- 19 की स्थिति नियंत्रण में है, और सरकार द्वारा उठाये गये कदमों के सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। इसलिये, रैपिड टेस्ट किट का उपयोग अभी के लिये स्थगित कर दिया गया है।
ट्विटर पर कुछ प्रतिक्रियाएं :
√ यह बोलो कि मिली नहीं अभी तक रैपिड किट चाइना से।
√ नहीं-नहीं… यह उन्हें मिल तो गया था, पर उनमें ख़राबी पायी गयी, इसलिये लौटा रहे हैं।
√ ऐसा लगता है जय शाह के साथ टेस्ट किट सप्लाई की डील जम नहीं पायी है। हमें जय शाह से अपील करना चाहिये कि वह देशहित में थोड़ा जल्दी कदम उठाये, वरना बहुत सारे लोग मारे जायेंगे।
√ सदी का सबसे भद्दा मज़ाक।
√ कोरोना की रफ़्तार देखिये :
10 हज़ार से 15 हज़ार– 5 दिन में
15 हज़ार से 20 हज़ार– 3.5 दिन में
20 हज़ार से 25 हज़ार– 2.5 दिन में
25 हज़ार से 50 हज़ार– ख़बर आती होगी
सब तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, सिवाय कोरोना के! तभी तो सरकार कह रही है कि स्थिति नियंत्रण में है, और सरकार द्वारा लिये गये निर्णयों के सकारात्मक परिणाम आये हैं!
√ यह वैदिक विज्ञान है प्यारे!
√ स्थिति इसलिये नियंत्रण में है, क्योंकि उन्होंने बेहद कम टेस्ट किये हैं। जितना कम टेस्ट करेंगे, उतने कम मरीज़ मिलेंगे। सीधी बात!
√ असल में वे यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि हम और रैपिड टेस्ट किट्स अफ़ोर्ड नहीं कर सकते, या कि वे ख़राब हैं, पर यह कहना कि स्थिति नियंत्रण में है… यह हमें और आम लोगों को बेवकूफ़ बनाने का एक तरीक़ा है, जिन्हें इस बात की भनक तक नहीं है कि वास्तव में देश में चल क्या रहा है।
√ यह क्यों नहीं कहते कि कुछ इन्तज़ाम नहीं कर पा रहे तो लॉकडाउन उठाने का चोर दरवाज़ा तलाश कर रहे हो! सच्चाई यह है कि वास्तविक तथ्य और आंकड़े छिपाने में सारा ज़ोर लगाने के बावज़ूद महामारी का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है, और नोटबंदी की तरह सरकार देश की आम जनता को ‘रामभरोसे’ छोड़ने की तैयारी कर चुकी है।
√ लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद से टेस्ट केवल 24 गुणा बढ़े, जबकि संक्रमित मरीज़ों की संख्या 49 गुणा बढ़ गयी। न टेस्ट हुए, न मरीज़ों की पहचान हुई, और नतीज़ा यह हुआ कि वायरस के संक्रमण की रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार आंकड़ों के साथ आंखमिचौली खेल रही है, जिसने हालात को बेहद ख़तरनाक बना दिया है। लोगों का जीवन ख़तरे में है और देश एक अनपढ़ और मूर्ख को चुनने की क़ीमत चुका रहा है।
√ या तो इनको कोई जानकारी नहीं है, या ये झूठ फैला रहे हैं। जो भी हो पर यह बेहद ख़तरनाक होता जा रहा है।
√ जोकरों के शासन में और किस बात की उम्मीद की जा सकती है? केवल मज़ाक और मज़ाक।
√ हर वह मामला जिसे इन्होंने हाथ में लिया है, सबका कबाड़ा हो गया। इन पर बिल्कुल भरोसा मत करना।
√ इस ट्वीट को सम्भाल कर रखो। यह आगे चल कर उनके गले की हड्डी बन जायेगा।
√ जब सरकार कह रही है कि स्थिति नियंत्रण में है तो हमें इस बात पर ज़्यादा नहीं दिमाग़ चलाना चाहिये कि अब भी लाखों लोग किसी तरह अपने गांव-घर लौटने के लिये जूझ रहे हैं, और सड़कों पर मर जा रहे हैं।
√ सीधी बात है कि सरकार और उसका आईसीएमआर टेस्ट बढ़ाने के लिये ज़रूरी ढांचे का विकास कर पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। जब लॉकडाउन के बावज़ूद हर दिन संक्रमण के 1000 से 1700 नये मामले आ रहे हैं, तो हम कैसे मान लें कि स्थिति नियंत्रण में है?
√ सारे मंत्री बिलों में छिपे हुए हैं। इनके हाथ-पांव फूल रहे हैं कि चमकता गुजरात दूसरे स्थान पर पहुंच गया है और जल्दी ही भारत का वुहान बन जायेगा। गुजरात मॉडल की हवा निकल चुकी है।
√ असल बात यही है कि सरकार की औकात ही नहीं है रैपिड टेस्टिंग करने की। सरकार ने पहले चीन से घटिया सस्ता माल ख़रीद लिया, और अब जब वह किसी काम नहीं आ रहा, तो बहाने बना रही है।
√ पहले ही विधायक और मीडिया को ख़रीदने में सरकार ने सारे पैसे फूंक दिये, अब महाराष्ट्र में विधायकों को ख़रीदने लायक ही पैसे बचे हुए हैं। सरकार उसे टेस्टिंग किट ख़रीदने में बर्बाद नहीं कर सकती। आप नहीं समझना चाहते तो मत समझिये।
प्रस्तुति- राजेश चन्द्र,
राजेश चन्द्र विगत पच्चीस वर्षों से रंगकर्म, समीक्षा, पत्रकारिता और अनुवाद के क्षेत्र में सक्रिय हैं और वर्तमान में समकालीन रंगमंच पत्रिका के प्रकाशक और संपादक हैं।