दैनिक जागरण, लखनऊ के खंभा पत्रकार राजू मिश्र को जन्मदिन मुबारक हो

2
207
परम श्रद्धेय राजू मिश्रा जी शख्सियत को इस तस्वीर से समझा जा सकता है। 90 के दशक में जब मुझे लखनऊ में निवास की समस्या आई तो मिश्रा जी तुरंत मेरे सिर पर ऐसे ही हाथ फेरा था।
श्रद्धेय राजू मिश्रा जी स्नेह-आशीर्वाद मुझे भी मिल चुका है। स्वर्गीय विनोद शुक्ल से नौकरी मांगने गया था, सबसे पहले भेंट हुई राजू मिश्रा जी से। चाय पिलाई और तरकीब बताई। बाद में, नौकरी मिलने के बाद कदम-कदम पर संरक्षण दिया, बहुत कुछ सिखाया। उन्हें कामता प्रसाद का प्रणाम। 
पेश है साथी नावेद शिकोह का इस विषयक वृतांतः
..राजू बन गया जागरण मैंन
लखनऊ दैनिक जागरण की हाफ सेंचुरी के क़िस्सों में दो नाम बार-बार आते हैं। संपादक विनोद शुक्ला और राजू मिश्र। अखबार की डेस्क सेवाएं देने वाले पुराने से पुराने पत्रकार गुमनामी के अंधेरों में गुम रहते हैं। लेकिन राजू मिश्र अपवाद हैं जो अधिकांश समय डेस्क पर रहने के बाद भी पत्रकारिता जगत में विख्यात हैं। इसकी एक वजह नहीं वुजुहात (कई कारण) हैं। दैनिक जागरण में खास कर तत्कालीन संपादक स्वर्गीय विनोद शुक्ला के ज़माने में एक धारणा थी कि यहां कोई ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाता था।
कम उम्र में बांदा में आज अखबार से पत्रकारिता शुरू करने वाले राजू मिश्र ने 1985 में लखनऊ दैनिक जागरण ज्वाइन किया ओर फिर यहीं के होकर रह गए। करीब चार दशक तक जागरण में नौकरी करने वाले ये पहले शख्स हैं।‌ दैनिक जागरण की बादशाहत का मतलब ये नहीं कि इस अखबार ने बिना संघर्ष, खूबियों और क्रिएटिविटी के अपना रुतबा बरकरार रखा। इसके सामने भी खूब प्रतिद्वंद्वी अखबार आते रहे। इस मुकाबले में राजू की क्रिएटिविटी अखबार का हथियार बनी। उन्होंने “शहर अपना शहर” में लखनऊ की नज़ाकत,नफासत,तहज़ीब, खूबियों, अदब, कला-संस्कृति, धर्म-अध्यात्म, अंदाज-ओ-अदाओं, खूबियों और हर हुनर को समेट कर पेश करने की कल्पना को साकार किया। योगेश प्रवीन और उर्मिल कुमार थपलियाल को भी मौका दिया। हर हफ्ते केपी सक्सेना से उनकी बातचीत का पाठक बेसब्री से इंतजार करते थे।
नब्बे के दशक में शुरू हुआ जागरण का “शहर अपना शहर” परिशिष्ट करीब दो दशक तक कामयाबी का मील का पत्थर साबित हुआ।
राजू डेस्क के ही जादूगर नहीं रहे, इनकी रिपोर्टिंग ने भी क़यामतें ढाई हैं। मुबंई प्रेस क्लब के प्रसिद्ध राष्ट्रीय सम्मान “रेड इंक” को हासिल करने वाले राजू मिश्रा पहले हिन्दी पत्रकार हैं। ये सम्मान उन्हें बुंदेलखंड की हकीकत बयां करने वाली विशेष रिपोर्टिंग के लिए दिया गया था। भारत सरकार का प्रतिष्ठित वाटर अवार्ड भी उन्हें मिल चुका है।
एक समय था जब आसाराम बापू को भगवान का अवतार मानने वालों की करोड़ों भक्तों की तादाद बढ़ती ही जा रही थी। लखनऊ में उनके आगमन की खबरें भक्तों के दिलों की धड़कने बढ़ा रही थी। उस वक्त राजू मिश्रा ने आसाराम को अप्रत्यक्ष रूप से रावण जैसा बताने वाली उनकी अस्ल असलियत बया़ं करती खोजी खबर लिखी। राजू की उस वक्त जान बच गई, वजह ये थी जागरण जैसे ताकतवर अखबार ने उन्हें पूरा प्रोटेक्शन दिया।
राजू मिश्र के नाम से मशहूर इस अद्भुत पत्रकार का अस्ल नाम राज नारायण मिश्र है।
भगवान के अवतार आसाराम का सबसे पहले असली चेहरा दिखाकर जनजागरण करने वाले राजू इन खूबियों के कारण जागरण मैन बन गए। आज इनका जन्मदिन है।
मंगलकामनाएं
– नवेद शिकोह

2 COMMENTS

  1. वाह 👌👌 बहुत खूब किस्से सुना आपने भाई साहब राजू मिश्रा जी के जीवन के। वास्तव में राजू मिश्रा जी एक बहुत ही महान व्यक्ति हैं, जो निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति को आगे बढ़ाने में विश्वास रखते हैं। भाई साहब को जन्म दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं 🙏💐💐🎂🎂

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here