वाराणसीः भेलूपुरा के थाना प्रभारी राजेश सिंह बड़ी कुशलता-सफाई और सरोकार के साथ पब्लिक डीलिंग करते हैं। गहन मानवीय संवेदना वाले इस अफसर को गुजरे दिनों का लाल सलाम।
श्रीमान जी, वंदना चौबे की जिस अर्जी पर प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसका बेतुकापन देखिए। सुश्री वंदना चौबे ने अपने आवेदन में लिखा हैः हमारा मोर्चा नामक वेब पोर्टल पर प्रतिष्ठित लोगों और बुद्धिजीवियों के विरुद्ध अश्लील, अपमानजनक, लैंगिक, जातिसूचक और नक्सली जैसे धमकी भरे पोस्ट लिखता है।
श्रीमान राजेश सिंह जी बस आपकी जानकारी के लिए निवेदन करना चाहूँगा कि वंदना चौबे प्रतिष्ठित लोगों और बुद्धिजीवियों की ठेकेदार नहीं हैं और न ही उनके पास स्व-विवेक से मामले का संज्ञान लेने का हक है। वह हाई कोर्ट नहीं हैं। उन्होंने इस तरह की बेतुकी शिकायत पर प्राथमिकी कैसे दर्ज की।
सुश्री वंदना चौबे ने अपनी शिकायत में बेहद मूर्खतापूर्ण बात कही है कि उनका चरित्र हनन किया जा रहा है। जिस स्त्री को मैं इतना करीब से जानता हूँ और जिसको लेकर मेरे मन में पर्याप्त आदर की भावना है, उसके प्रति मेरी कलम बेअंदाज कैसे हो सकती है। टाइपो-एरर और आवेश में किए गए लेखन को पहली फुर्सत में मैं दुरुस्त कर देता हूँ।
श्रीमान जी अगर वंदना चौबे सार्वजनिक जीवन में हैं तो मीडिया में उनकी आलोचना क्यों नहीं हो सकती है? वह प्रगतिशील लेखक संघ की वाराणसी की सचिव हैं। कम्युनिस्टों में दिन-रात भाजपा को फासिस्ट पार्टी बताने का रिवाज है, लेकिन प्राथमिकी की भाषा देखी जाएः योगी-मोदी की शान में कसीदे गढ़े गए हैं। दोमुंहेपन, मौकापरस्ती, कैरियरिज्म, अहंकेंद्रिता, व्यक्तिवाद, आत्मधर्माभिमानिता और मावनद्वेष की आलोचना करना चरित्र-हनन कैसे हो गया।
श्रीमान जी, मैं अगर सारे जमाने के साथ खराब व्यवहार कर रहा हूँ, धमकी दे रहा हूँ, ब्लैकमेल कर रहा हूँ तो यह वंदना चौबे की चिंता कैसे हो गई। उन्हें उनके किस मित्र, परिचित या लेखक ने अपनी ओर से उन्हें प्राथमिकी दर्ज कराने का अधिकार दिया है। क्या कोई भी ऐसे ही किसी की ओर से प्राथमिकी दर्ज करा सकता है?
वंदना चौबे ने 4 जुलाई की अपनी पोस्ट, महिला आयोग को की गई शिकायत और 1090 पर की गई शिकायत की बात भी अपनी अर्जी में लिखी है। तो श्रीमान जी मैं आपको बताना चाहूँगा कि हमारा मोर्चा पर किए गए लेखन की शिकायत 1090 पर नहीं की जाती। राष्ट्रीय महिला आयोग में वह क्यों गई थी, इसका कारण खुद वंदना चौबे से बेहतर कौन जानेगा।
अलग-अलग राजकीय संस्थाएं-संगठन क्यों बने हैं, इसे कानून में विधिवत और स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया गया है। सुश्री वंदना चौबे सरकारी मशीनरी को अपने मनोनुकूल ऐक्टिवेट करना चाहती थीं। चूँकि जो मूल बात थी, उसका स्पष्ट उल्लेख करने से उन्हें बचना था, इसलिए जमकर फ्रॉड का सहारा लिया है।
सुश्री वंदना चौबे निहायत किताबी और आदर्शवादी स्त्री हैं, जिन्हें वास्तविक दुनिया का कोई ठोस अनुभव नहीं। इस नुक्ते को यूँ समझेंः ACP ऑफिस के एक कांस्टेबल ने अपनी पुलिसिया इंस्टिक्ट के हिसाब से पूछ लिया कि मोहतरमा आप महिला आयोग गई हैं तो क्या कामता प्रसाद यौन-बढ़त ले रहे थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से इन्कार किया और मुझे इज्जत बख्शी।
आप ही सोचिए इनके स्त्रीद्वेष के नैरेटिव को भारत जैसे बंद-सामंती समाज में कितने लोग समझेंगे। इस मासूमियत पर कौन न मर जाए, ऐ खुदा। मैं ठहरा घाघ पत्रकार, मेरे जवाबी लेखन के आगे एकदम से बेचारी साबित हुईं और हो रही हैं। एक बार मैंने इनसे मजाक में कहा था आपने जेएनयू से पीएचडी की है लेकिन मुझे तो कम्युनिस्टों ने पाला है और मैं आपसे ज्यादा तेज-शातिर हूँ।
श्रीमान जी, वंदना चौबे मार्क्सवादी होने के नाम पर एक बदनुमा दाग हैं। झूठ-फरेब-चालबाजी इनके खून में है। अपनी अंतरात्मा को गवाह मानकर वंदना चौबे खुद से पूछें कि 4 जुलाई की फेसबुक पोस्ट लिखने की प्रेरणा उन्हें कहाँ से मिली, महिला आयोग वह क्यों गईं? मुझे अब सुश्री वंदना चौबे से दोबारा लिखकर सार्वजनिक रूप से माफी नहीं माँगनी, इसलिए मैं बस हिंट दे रहा हूँ कि वह आत्मालोचना करें और अपने व्यवहार को तर्कसंगत बनाएं।
सुश्री वंदना चौबे ने पैंतरेबाजी के तहत अलग-अलग एजेंसियों का उपयोग किया। पुलिस में उनके द्वारा लिखवाई गई मौजूदा प्राथमिकी भी वाहियात-अर्थहीन विवरण से अधिक कुछ नहीं है।
मैं भाकपा-माले (लिबरेशन) का प्राथमिक सदस्य रहा हूं और राजनीतिक आलोचना करते हुए उसकी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे चुका हूँ। मुझे उसके महिला संगठन ऐपवा की राजनीतिक आलोचना करने का नैतिक हक है। वैसे भी प्रेस को आलोचना करने की आजादी है। इसी प्रकार संजय श्रीवास्तव-नरेंद्र कुमार से भी मेरा सांगठनिक रिश्ता रहा है। हम लोग मर्द हैं, एक दूसरे को मारे-पीटें, गरियाएं या फिर एक-दूसरे का तमाशा बनाएं, वंदना चौबे के पेट में मरोड़ काहे उठ रही है। क्या उन्हें संजय श्रीवास्तव या नरेंद्र कुमार ने अधिकृत किया है कि आप जाइए और हमारी ओर से थाने में प्रार्थना-पत्र दे आइए। राजेश कुमार सिंह की मोटी बुद्धि में यह बात क्यों नहीं आई कि रक्त संबंधी ही एक दूसरे की ओर से इस तरह की शिकायत दर्ज करवा सकता है।
वंदना चौबे ने यह भी लिखा है कि 4 जुलाई की उनकी पोस्ट साइबर सेल में शिकायत करने का आधार रही है, जिसे वह डिलीट नहीं करेंगी और जिसे डिलीट करवाने के लिए मैंने पुलिस कमिश्नर को प्रार्थना-पत्र दिया है।
वंदना चौबे नामक मानव-द्वेषी स्त्री का तर्कतंत्र बिल्कुल भी काम नहीं करता। फेसबुक पोस्ट डिलीट करने का यह अर्थ तो कदापि नहीं होगा कि उनके पास से साक्ष्य मिट जाएंगे। साक्ष्यों को वह अपने गूगल-ड्राइव पर सहेज कर रख सकती हैं। मूल बात यह है कि अपने मनमानेपन के लिए सुश्री वंदना चौबे लंगड़े तर्क गढ़ रही हैं। वह स्त्री हैं और मैं उनका पर्याप्त से भी पर्याप्त आदर करता हूँ तो अब मैं कह ही नहीं रहा हूँ कि वह अपनी फेसबुक पोस्ट डिलीट करें। मैं हार गया क्योंकि मैं उनके लॉजिक-सिस्टम को ऐ्क्टिवेट नहीं कर पाया। मैंने उन्हें हजारों ईमेल लिखें हैं, आज तक सिर्फ दो-तीन का ही जवाब दिया है। हे भगवान कितनी तो जटिल हैं और तुर्रा यह कि मार्क्सवादी हैं। जबकि इनका तर्क और विज्ञान से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं। यह मानववादी नहीं वरन मानवद्वेषी हैं। मैं 30 वर्षों से लिख-पढ़ रहा हूँ और 27 वर्षों से अलग-अलग मार्क्सवादी ग्रुपों से जुड़ा रहा हूँ। मेरे बारे में प्रचारित कर रही हैं कि मैं इनका पीछा कर रहा हूँ। अपनी आत्मा की गवाही मानें और खुद से पूछें कि मुझसे ज्यादा शालीन व्यक्ति कभी इन्हें अपनी जिंदगी में भेंटाया है।
प्रार्थी
कामता प्रसाद
9996865069
थाना बड़ागाँव