जो ब्राह्मण गुणयुक्त हो उसे पूज सकते हैं क्या?

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कल संत कवि रैदास का जन्मदिवस था । जाति विशेष के आम जन में इस दिन को लेकर बहुत उत्साह होता है ; जो रैलियों , कीर्तनों , सत्संगो एवम भंडारों के माध्यम से व्यक्त होता रहता है । एक बुद्धिजीवी तबका भी है जो मायावती जी की तरह कहीं शामिल हो या न लेकिन सोशल मीडिया के दायित्वों के निर्वहन में पूरी ईमानदारी से काम करता है । कल पूरा दिन अलग अलग प्रकार के बुद्धिजीवियों की पोस्ट देखी । सबने रैदास के जन्मदिन को सेलिब्रेट किया । मैं सेलिब्रेट नहीं कर सका क्यों कि मजदूरी करता हूं तो दिन भर समय मिलता ही नहीं है । दूसरी बात जन्मदिन का भी क्या मनाना है । खैर हम एक जरूरी बात पर आते हैं ।
रैदास के जन्मदिन को मनाने के लिए अधिकतर कलम योद्धाओं ने एक ऐसे दोहे का इस्तेमाल किया है जो घोर जातिवादी दोहा है । दोहा इस प्रकार है —-
रैदास भामन मत पूजिए जो होवे गुणहीन ।
पूजिए चरण चंडाल के जो हो गुण परवीन ।।
यदि थोड़ा सा भी जातिगत हितों से हटकर सोचने की क्षमता आप के साथ है तो शायद आप मेरी बात समझ पाएं ।
इस दोहे में ऐसे ब्रह्मण की पूजा करने से मना किया गया है जो गुणहीन हो । सवाल उठता है कि जो ब्राह्मण गुणयुक्त हो उसे पूज सकते हैं क्या ?
दूसरा इसमें कहा गया है कि जो चंडाल गुण युक्त हो उसके चरण भी पूजा योग्य हैं । बल्कि चरण पूजने का ही जिक्र है । सवाल उठता है कि रैदास की नजर में गुणसमपन्न होने के बाद भी कोई व्यक्ति चंडाल ही क्यों रहता है ?
रैदास गुणों के बहाने दो जातियों पर बात करते हैं ब्राह्मण और चंडाल। इस तरह रैदास दो जातियों को एक दूसरे के सामने योद्धाओं की तरह खड़ा कर देते हैं । ऐसा युद्ध जो कि वर्तमान में भीषण रूप धारण कर चुका है । यह तो समानता की बात नहीं हुई । इस दोहे के माध्यम से आस्था और भक्ति की अफीम से होने वाली कमाई को ब्रह्मण वर्ग से चंडाल वर्ग की ओर ट्रांसफर किया गया । जिस आबादी को मनुवाद से लड़ाई के लिए खड़ा करना चाहिए था रैदास ने उस मेहनतकश दलित आबादी को चांडाली मनुवाद में फंसा दिया । आस्था और पूजा आप ब्रह्मण की करें या चंडाल की क्या फर्क पड़ता है ? बुनियादी सरंचना तो वही रहती है ।
भामण ही क्यों ? उस समय तो राजाओं की और देवताओं की भी पूजा होती थी । रैदास ब्राह्मणों को टारगेट करते हैं । सामंतवाद और मनुवाद को नहीं । इस तरह कह सकते हैं कि यह दोहा मनुवाद को मजबूती से स्थापित करने का काम करता है ।
एक अन्य जगह पर रैदास खुद को चमार लिखते हैं । इस से यही साबित होता है की रैदास जातिवाद के समर्थक थे । यह जातिवाद का चांडाली संस्करण है ।यही काम दलित विमर्श कर रहा है ।। मोहन भागवत का हालिया बयान जोड़ कर पढ़ें ।
रवि प्रकाश

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