पंजाब यूनिवर्सिटी पर पंजाब का अधिकार बहाल करो
31 अक्टूबर 2020 को पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ की सर्वोच्च संस्था सीनेट का कार्यकाल खत्म हो रहा है। जानकारी के अनुसार यूजीसी ने यूनिवर्सिटी को पत्र भेजा है कि नई शिक्षा नीति के मुताबिक सीनेट व सिंडीकेट नहीं बनेगा बल्कि बोर्ड ऑफ गवर्नर्ज़ बनेगा, जिसके सदस्य चुने नहीं जाएंगे बल्कि केंद्र सरकार द्वारा नामज़द किए जाएंगे।
यदि ऐसा होता है तो पंजाब यूनिवर्सिटी केंद्र सरकार व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सीधे निंयत्रण में आ जाएगी। इस तरह केंद्र सरकार इसे पंजाब से छीनकर अपने हाथ में ले लेगी। पंजाबी बोली व तहज़ीब के लिए काम करने वाली यह यूनिवर्सिटी केंद्र सरकार के मुताबिक चलेगी जो ‘हिंदू, हिंदी व हिंदोस्तान’ की मुद्दई है और सब राष्ट्रों, क्षेत्रीय भाषाओं को कुचलने की नीति पर चलती है। इससे जुड़े (एफिलिएटेड) पंजाब के करीब 200 कॉलेज बेसहारा हो जाएंगे या फिर केंद्र के मुताबिक चलेंगे। पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन (ललकार) केंद्र सरकार के इस फ़ैसले की कड़ी निंदा करती है और इसे राज्य यूनिवर्सिटी का दर्जा देकर पूरी तरह पंजाब के हवाले करने की माँग करती है।
वास्तव में भारत के शासकों की हमेशा से कोशिश रही है कि यहाँ मौजूद विभिन्न राष्ट्रों को ज़बरन एक राष्ट्र में तब्दील कर दिया जाए। इसी नीति के तहत राष्ट्र स्तर पर प्रशासनिक इकाइयां (राज्य) बनाने व विभिन्न राष्ट्रीय भाषाओं को मान्यता देना कभी भी केंद्र की इच्छा नहीं रही बल्कि ज़बरन ज़्यादा से ज़्यादा केंद्रीकरण ही इसका मक़सद रहा है। जी.एस.टी., तीन कृषि क़ानून और प्रस्तावित बिजली बिल भी राज्यों की खुदमुख्तियारी छीनकर अंधाधुंध केंद्रीकरण की ओर बढ़ते कदम हैं।
जब भाषा के आधार पर अलग पंजाबी राज्य की माँग उठी तब भी केंद्र सरकार ने साज़िश के तहत कई पंजाबी बोलने वाले इलाके हरियाणा, हिमाचल में छोड़ दिए। रिपेरियन सिद्धांत के विपरीत पंजाब के पानी का अनुचित बंटवारा किया गया और पंजाब से इसकी राजधानी चंडीगढ़ छीनकर इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।
पंजाब यूनिवर्सिटी को इस तरह केंद्र के मातहत करना भी चंडीगढ़ पर पंजाब की दावेदारी को और खोखला करना है क्योंकि माना जा रहा है कि पंजाब यूनिवर्सिटी पंजाब और चंडीगढ़ की आखिरी कड़ी है। इस तरह यह फ़ैसला (और नई शिक्षा नीति भी) केंद्रीकरण की नीतियों का हिस्सा है। केंद्र का बस चले तो राज्यों की क्षेत्रीय खुदमुख्तियारी छीनकर, विधान सभाओं को भंग करके यह पूरे भारत को केंद्र शासित प्रदेश बना दे।
1966 में पंजाब के विभाजन के बाद इसे हिमाचल, हरियाणा और पंजाब की संयुक्त यूनिवर्सिटी बनाया गया। हिमाचल व हरियाणा द्वारा अपनी यूनिवर्सिटियाँ खोले जाने के कारण अब इससे सिर्फ पंजाब के कॉलेज ही जुड़े हुए रह गए हैं। इन कारणों के चलते इस यूनिवर्सिटी पर पंजाब का हक बनता है और इसे स्टेट यूनिवर्सिटी का दर्जा देकर पंजाब को सौंपना चाहिए। हम पंजाब यूनिवर्सिटी के सभी विद्यार्थियों, अध्यापकों, मुलाज़िमों, और समूचे पंजाब हितैषियों को निमंत्रण देते हैं कि केंद्र सरकार के इस फ़ैसले का एकजुट होकर विरोध करें।
पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन (ललकार)
98887-89421