शरद ऋतु में आहार – विहार के पालन से करें रोगों से बचाव

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वैद्य सुशील कुमार दुबे

शरद ऋतु में पित्त के प्रकोप एवं वात के शमन होने से शीत – गरम के कारण शरद ऋतु में अत्यधिक रोग होने की संभावना रहती है इसलिए पूजा और उपवास की परम्परा है। इस ऋतु में भोजन की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे जिससे गरम – ठंडा अर्थात् शीत – गरम मे साम्यावस्था बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हो। इस ऋतु में थोड़ी ही लापरवाही से रोग होने की संभावना प्रबल होती है भोजन खाने से अच्छा पेय पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करें जैसे सूप, फलों का रस, दूध आदि जिससे दोष का प्रकोप न हो और रोगों से बचाव की संभावना अधिक होती हैं।

वैद्य सुधा यादव

आहार
षडरसों में मीठा, कषैला एवं तिक्त रस एवं न ज्यादा गरम न ज्यादा ठंडा खाना अच्छा होता है, इस ऋतु में उत्पन्न फल एवं सब्जियों का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता हैं। फलों में आंवला, अनार, संतरा, नारंगी, नाशपाती, पपीता एवं सब्जियों में गोभी, करैला, लौकी, कद्दू, परवल आदि का सेवन अत्यंत लाभकारी है।
वर्जित – कड़वा, खट्टा, नमकीन, दही, कोल्डड्रिंग्स, फास्ट फूड, मांस, तैलीय भोज्य पदार्थ, धूप एवं क्रोध से बचना चाहिए।

औषधि – पूरे वर्ष बुखार आदि से बचने के लिए आश्विन महीने में 5 तुलसी की पत्ती या तुलसी की टैबलेट के साथ 1 दाना काली मिरिच का सेवन लाभदायक है।
बुखार एवं जोड़ो के दर्द में प्रातः चाय के रूप मे धनियां, जीरा, लौंग, इलाइची एवं तुलसी की चाय बेहद लाभकारी होता है। यदि जोड़ों में दर्द है तो अरंडी/रेड़ की जड़ या पत्ती, हरसिंगार/पारिजात की पत्ती, हल्दी और अजवाइन के साथ मिलाकर चाय के रूप में सेवन करने से लाभकारी होता है।
शीत – गरम से बचाव हेतु प्रकृति में कई औषधियां उपलब्ध है जैसे – गिलोय, पुनर्नवा, केवाच, अरंडी (रेढ़) की पत्ती या तेल, ज्वर अंकुश (लेमन ग्रास), लौंग, धनिया, जीरा और शोठ आदि।

इस ऋतु में पेट साफ करने के लिए त्रिफला चूर्ण या हर्रे चूर्ण ले लेने पर रोगों से बचाव होता है। आयुर्वेद औषधि की दवा चिकित्सक की सलाह पर ही लेंना चाहिए।

वैद्य सुशील कुमार दुबे
9415540732
सहायक आचार्य, क्रिया शारीर विभाग, आयुर्वेद संकाय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
vaidyaskd@bhu.ac.in

सुधा यादव
शोध छात्रा
क्रिया शरीर
आयुर्वेद संकाय, आईएमएस
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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