राजनीतिक बंदियों के रिहाई की मांग को लेकर Inquilabi Chhatra Morcha(ICM), उ.प्र. का बयान

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क्रांतिकारी कवि वरवर राव, डॉ. जी एन साईबाबा, डॉ. शोमा सेन, सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, अरुण फरेरा, महेश राउत, डॉ. आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, वरनन गोंजाल्विस, हेम मिश्रा, प्रशांत राही, विजय तिर्की, पांडु नरोटे, पीआर कासिम, शरजील इमाम, अखिल गोगोई, डॉ. कफील खान समेत सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करो!

उपरोक्त सारे नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। ये वो नाम हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन इंसानियत की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है।

वरवर राव तेलुगू भाषा के क्रांतिकारी कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। इनकी गिनती विश्व स्तर के बुद्धिजीवियों में होती है। वरवर राव पिछले 50 सालों से भारत के मजदूर, किसान, दलित, आदिवासी और उत्पीड़ित जनता की आवाज हैं। आज उनकी उम्र 80 वर्ष हो चुकी है। पिछले 2 सालों से भीमा कोरेगांव हिंसा में उन्हें एक राजनीतिक विद्वेष के तहत फर्जी तरह से फंसाकर अन्य 8 लोगों के साथ जेल में रखा गया है। 2 साल हो चुके हैं लेकिन अभी तक उस केस की सुनवाई भी नहीं शुरू हुई है।

80 वर्षीय वरवर राव की तबियत बहुत खराब है। उनका जीवन खतरे में है। जन दबाव के कारण कल रात जेल प्रशासन के द्वारा उन्हें मुम्बई के जे जे हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है।

दूसरा नाम जिनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है और जिनका जीवन खतरे में है वो हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी भाषा के प्रोफेसर डॉ. जी एन साईबाबा। ये 90% विकलांग हैं और दर्जनों गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। साईबाबा व्हीलचेयर से चलते हैं। उनकी शारीरिक स्थिति से आप जेल के भीतर उनकी स्थिति की वास्तविकता का अंदाजा लगा सकते हैं।

तीसरा नाम असम के किसान नेता और नागरिकता संशोधन अधिनियम(CAA) विरोधी आंदोलनकारी अखिल गोगोई का है। जिनको जेल के अंदर ही कोरोना हो गया है। कोरोना संक्रमण के लिहाज से भी जेल बिल्कुल सुरक्षित जगह नहीं है। परंतु हमारे देश की फासीवादी सरकार और न्यायपालिका इन राजनीतिक बंदियों का जमानत नहीं होने दे रही है। जबकि न्याय के स्थापित मानदंडों के अनुसार जमानत हर विचाराधीन कैदी का अधिकार है।

ऐसे ही शोमा सेन, आनंद तेलतुबंड़े, वरनन गोंजाल्विस, गौतम नवलखा,रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, अरुण फरेरा, हेम मिश्रा, प्रशांत राही, विजय तिर्की, पांडु नरोटे, शरजील इमाम, पीआर कासिम, डॉ. कफील खान और न जाने कितने राजनीतिक बंदी हैं जिन्हें जानबूझकर जेलों में रखा गया है। इनमें से अधिकांश पर यह आरोप है कि ये प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के सदस्य हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार ही किसी प्रतिबंधित पार्टी का सदस्य मात्र होना अपराध नहीं है। हालांकि इन बातों से अलग उपरोक्त सारे नाम देश के प्रतिष्ठित सामाजिक, राजनीतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के हैं।

यह कितना दुखद व आक्रोशित करने वाला है कि आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, अभिनव भारत और बजरंग दल जैसे आतंकवादी संगठनों को खुला घूमने और कार्यवाई करने की छूट है जबकि जनता के हक-हुक़ूक़ की बात करने वाले क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टियों व संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। एक ओर नरेंद्र मोदी, अमित शाह व आदित्यनाथ जैसे जनसंहारों व दंगों के आरोपी सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए हैं तो दूसरी ओर तमाम लोकतंत्रवादी, सामाजिक न्यायवादी और मानवाधिकारवादी कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंसा जा रहा है।

हमारे देश का फासीवादी शासक वर्ग जानबूझकर बदले की भावना से सामाजिक- राजनीतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सबक सिखाने के लिए ऐसा कर रहा है। ताकि इनके लूट, दमन और दलाली के शासन के खिलाफ उठने वाली आवाजों को मौन किया जा सके।

इतना ही नहीं यह बयान लिखे जाने के समय भी सरकार कइयों एक्टिविस्टों को कैद करने की योजना बना रही होगी।

इंक़लाबी छात्र मोर्चा केंद्र व राज्य की फासीवादी सरकारों को ये बता देना चाहता है कि दमन की इंतहां प्रतिरोध की धार को और पैना कर देती है। इसलिए हम तुम्हें चेतावनी देते हैं कि जल्द से जल्द अपने घटिया मंसूबों को बदल दो। वरवर राव, साईबाबा, अखिल गोगोई समेत सभी राजनैतिक बंदियों को शीघ्र- अतिशीघ्र रिहा करो। वरना जब जनसैलाब उमड़ेगा तो तुम्हें छिपने के लिए भी जगह नहीं मिलेगा।

इंक़लाब ज़िंदाबाद!
एग्जेक्यूटिव कमिटी
इंक़लाबी छात्र मोर्चा(ICM), उ.प्र.।
दिनांक- 14 जुलाई 2020

(फेसबुक पोस्ट से साभार)

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