हमारा मोर्चा की फेसबुक वॉल सेः अठन्निहा मिसिर की हरकतें बता रही हैं कि गिरने की कोई हद नहीं होती। ई महाशय अब वाकई दलित-अबला की तलाश में हैं, जिसे मुझसे भिड़ाकर थाने पर अपने नंबर बढ़ा सकें। ———एक थी नोबल हॉलिडे के तकिया कलाम से इनकी कहानी शुरू होती है और उसी पर खत्म। न उससे पहले इन्होंने चवन्नी देखी थी और न उसके बाद अठन्नी बची है। शाम ढलते-ढलते घीसू-माधव (पढ़ें बाप-बेटा) दोनों को दारू चाहिए, अंग्रेजी न हो तो ठर्रे से काम चला लेंगे। ——-यह किसी मरेले व्यक्ति की कराह नहीं वरन सटीक वैज्ञानिक पूर्वानुमान है। इन महाशय की अगर कहीं लॉटरी नहीं निकली (जिसके दूर-दूर तक कोई आसार नहीं) तो समाज के द्वारा लतियाए जाएंगे और पुरखों की अचल संपदा पर बिजली का गिरना अवश्यंभावी है। —————-कहानी कुछ इस तरह की है कि संयोगवश विदेशियों को बनारस घुमाने वाली एक कंपनी में इनको नौकरी मिल गई। अब जैसा कि जमाने का चलन है, पगलेट आदमी भी मौका मिलने पर कुछ ऊपरी कमाई कर लेता है। तो विदेशियों द्वारा बनारस में झुमका-तरकी खरीदे जाने पर दुकानदार इन्हें कमीशन पहुँचाने लगा। गैर-मुल्कियों को सलाम ठोंकने से जो बख्शीश मिलती सो अलग। ———संयोग से प्राप्त अपनी इस खुशनसीबी को मतिभ्रमवश ई महाशय अपना पुरुषार्थ समझने लगे और नौकरी के दिनों में ही इनका इगो अपने मालिक से टकराने लगा था। हफ्ते में तीन दिन मुझसे कार्पोरेट की नौकरी को लात मारने की बात करने लगे थे। चाह रहे थे कि मैं इन्हें अपना काम सिखा दूँ, गोया मुलायमराज के 10वीं पास को धाकड़ कलमवीर बनाना संभव है। इस आदमी के पास जब अकूत अठन्नी आनी शुरू हुई तो इसने चवन्नी का अतिरिक्त रोग पाल लिया, माने दारू के अतिरिक्त। अब चवन्नी के लिए अलग से आलीशान घर भी चाहिए क्योंकि बाबूजी तो सिर्फ लाइसेंसी को ही शरण देंगे। ————–अब अगर चवन्निया के लिए लिया गया घर ई महोदय बेचकर पटना के कर्जदारों से मुक्ति पाने का उपाय खोजते हैं तो उधर से लात शर्तिया पड़ेगी। —————यह अभी भविष्य के गर्भ में है कि इन महोदय को कहीं से एक ब एक कारूं का खजाना मिलता है या फिर संपत्ति-सम्मान दोनों से हाथ धोता है। ————मेहनत करके इनके लिए भोजन जुटाना तो असंभव है, इनके सभी हमदर्द इस बात को अब जान गए हैं। एनजीओ के दरवाजे इन्हें कउरा (कुत्ते को दिया जाने वाला रेडीमेड भोजन) मिल सकता था लेकिन इसको अपनी औकात में आने में अभी बहुत समय लगेगा। Lenin Raghuvanshi की ड्यौढ़ी पर कभी हाथ बाँधकर खड़ा रहने वाला यह शख्स आज उनसे भी बड़ी तोप खुद को समझता है। पैसा कितने विविध रूप में आदमी को पागल बनाता है, उसका यह आदमी जीता-जागता उदाहरण है। शाम को दारू कहाँ से पिएगा, पचीसों लाख का कर्जा कहाँ से चुकाएगा, इस सवाल का सामना करने की बजाय भड़भूजिन को भड़काने की तरकीब भिड़ा रहा है। ———-आप लोगों का इस सनातनी-आलीशान मूर्ख की बचकानी हरकतों का ब्यौरा देकर मनोरंजन करवाता रहूँगा, आश्वस्त रहें। इस कायर की देह में इतना बल नहीं कि खुद भिड़ सके, इसीलिए भाड़े के गुंडे खोज रहा है, पुलिस के जरिए बदला लेने की तरकीब भिड़ा रहा है। अभीष्ट यह कि मुझे पुलिस से पिटवाए और जेल भिजवाए।
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