तस्वीरों में जितना दिखता है
उससे ज्यादा रह जाता है बाहर
तस्वीरें कहां बताती हैं कि कभी भी
बदल सकती है तस्वीर
शहर में छले गये लाखों लोगों का
पैदल ही चल पड़ पड़ना गांवों की ओर
तस्वीरों में दिखता है
पर कोई भी तस्वीर कहां बताती है
कि इतने सारे पांव चाहें तो एक झटके में
रौंद सकते हैं शाही तख्त को
रात-दिन चलते मजदूरों के
चेहरों पर गहरी थकान
और रास्तों पर जगह-जगह मौत के निशान
तस्वीरों में दिखते हैं
पर कोई भी तस्वीर कहां बताती है
कि सारा दुख गुस्से में बदल जाय
तो दरक सकते हैं बड़े से बड़े किले
तस्वीरें अधूरी रहती हैं हमेशा
जब कैमरे बंद रहते हैं
तब भी सूरज रुकता नहीं
जरा सोचो ! उन तस्वीरों के बारे में
जो अब तक किसी फ्रेम में नहीं आयीं
आयेंगी, कभी तो आयेंगी
छल की छाती पर लाखों पांवों के
समवेत धमक की तस्वीर
समूची तस्वीर बदल
जाने की तस्वीर
सुभाष राय
२३/५/२०२०
![]() |
ReplyForward
|