ध्वनि-प्रतिध्वनि
नाकाम होकर तुम दफ़्न हो जाना चाहते हो
मुझे उबार लिया नाकाम लोगों की नाउम्मीदी ने
जिसमें सामूहिकता का प्रकाश स्तंभ जलता था
हंसने के लिए मुझे रोने का ज़ोर लगाना पड़ता था
मुझे बचा लिया रुदालियों के अभिनयपरक क़िस्सों ने
उनके रुदन में सहराओं की रेत गुनगुनाती थी.
वीरान होकर तुम अंधेरे में तब्दील हो जाना चाहते हो
मुझे रोशन किया नि:शब्दता और अदृश्यपन ने
जहां चुप्पियों का शोर लहू बनकर टपकता था
अंत करने के लिए मुझे शुरुआत करनी पड़ती थी
मुझे संबल दिया मिट जाने की निरर्थकता ने
जो सफलता की मजबूरी का मानमर्दन करती थी.
शमशान होकर तुम ख़ुशी का शोकगीत गाना चाहते हो.
-विजयशंकर चतुर्वेदी