बच्चों को सीख देती कविताः कुछ भी बनने से पहले इंसान बनना

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वसंत के इस मौसम में
तुम्हारे स्कूल के प्रांगण में
रंग-बिरंगे फूल खिलने वाले हैं
और स्कूल के बाहर खेतों में
सरसों, आलू और गेहूं के पौधे
वसंती हवाओं के साथ खेल रहे हैं
इनकी हरियाली तुम्हारे लिए ही है
देखो अमलतास और गुलमोहर के फूल भी
कुछ ही दिनों में खिलकर लहलहा उठेंगे
यानी प्रकृति अपने संपूर्ण सौंदर्य के साथ
तुम्हें अपनी बांहों में भरने के लिए तैयार है
लेकिन तुम हमें छोड़कर जा रहे हो
तुम्हारे बिना जब ये फूल खिलेंगे
तो इन फूलों का क्या महत्व होगा
तुम्हारी हंसी और खिले चेहरे के आगे
इनका सौंदर्य तो हमारे लिए फीका ही है।

तुम मिले थे मुझे पतझड़ के मौसम में
जब हवाएं तेज चल रही थीं
और स्कूल के प्रांगण में
अमलतास और गुलमोहर के सूखे पत्ते
झड़कर इधर-उधर बिखरे हुए थे
और हरसिंगार के कुछ सफेद पुष्प
गिरे पड़े थे मेरे रास्ते में
जैसे कि वे मेरा स्वागत कर रहे हों
लेकिन मैं उत्सुक था तुमसे मिलने के लिए
कुछ सीखने और सिखाने के लिए
तुमने भी भरपूर मान-सम्मान के साथ
‘गुड मॉर्निंग सर’ कहते हुए
और चेहरे पर मुस्कराहट का भाव लाते हुए
मेरा स्वागत किया था
इस प्रकार से हमने शुरू की थी
एक-दूसरे को पढ़ने-पढ़ाने की क्रिया
इस बीच मौसमों के कई रूप बदलते रहे
और हम एक-दूसरे को समझते रहे।

मैंने कभी सोचा नहीं था कि
तुम्हारा इस स्कूल से जाना
मेरे अंदर कसक पैदा करेगा
आज सचमुच आंखें भर आई हैं
और दिल की धड़कनें तेज हो गई हैं
मुझे ऐसा लग रहा है कि
जैसे कोई अपना
मुझसे कहीं दूर चला जा रहा है
अब हम न जाने कब मिल पाएंगे
क्या यह सब तुम्हारे साथ भी हो रहा है ?
क्या तुम भी ऐसे ही तड़प रहे हो ?
निश्चित रूप से इस वसंत के मौसम में
जहां युवा दिलों में प्रेम के फूल खिलते हैं
तुम्हें पतझड़ के पत्तों की तरह
बिछड़ते हुए देखना
बड़ा ही दुखदायक है।

आज मुझे वे सारे पल याद आ रहे हैं
जो हमारी स्मृतियों की दुनिया में कैद हैं
बार-बार समझाने के बावजूद भी
तुम्हारी बदमाशियों का कम न होना
मेरे रूठ जाने पर तुम्हारा प्यार से मनाना
किसी गंभीर बात को हंसी में टाल जाना
मेरे पढ़ाने के तरीके की नकल करना
तुम्हारे साथ खेलना-कूदना, खाना-पीना
और किसी बात पर ठहाके लगाकर हंसना
मुझे सब कुछ याद आ रहा है मेरे बच्चों।

मैं उस दिन को कभी भूल नहीं पाऊंगा
जब हमारे स्कूल के एक शिक्षक ने
किसी खास बदमाशी के लिए
एक छात्र को जोरदार थप्पड़ मारा था
उस समय मुझे ऐसा लगा था कि
जैसे किसी ने मुझे ही थप्पड़ मारा हो
मैंने अपने जीवन में उन्हें कभी भी
किसी बच्चे को मारते नहीं देखा था
उनके क्लास से चले जाने के बाद
आप लोगों को समझाने के क्रम में
मेरी आंखें डबडबा आई थीं
और गला भर गया था
आप मुझे आश्चर्य से देखे जा रहे थे
शायद आप सोच रहे होंगे
यह शिक्षक इतना भावुक क्यों है ?
मैं भी तो यही सोच रहा था
मेरी आंखों से ये झरने क्यों फूटे ?
क्या मुझे बचपन की कोई पीड़ा याद आई
और वह आंसुओं के रूप में निकल पड़ी ?
या मेरे क्लास टीचर के उत्तरदायित्व को
किसी चट्टान से गहरी ठेस लगी ?
मैं आज भी इसका सही कारण
नहीं ढूंढ़ पाया हूं
बस, इतना जानता हूं
उसे थप्पड़ लगते ही
मेरे दिल के तार हिल गये
और करुणा का एक आवेग
जोरदार धक्का मारकर बाहर आ गया।

जैसे मौसम आते-जाते रहते हैं
वैसे ही तुम्हारा जाना भी तय था
क्षितिज के पार की दुनिया भी तो
देखनी है तुम्हें अपनी नंगी आंखों से
जाओ और देखो इस निर्मम दुनिया को
जहां कुछ लोग प्रेम की जगह पर
नफ़रत के बीज बो रहे हैं
जहां कुछ लोग वैज्ञानिकता के नाम पर
धार्मिक आडंबरों का जाल बुन रहे हैं
जहां कुछ लोग राष्ट्रवाद के नाम पर
हमारी स्वतंत्रता का हनन कर रहे हैं
और मनुष्यता को पैरों तले रौंद रहे हैं
तुम हमारी उम्मीदों का सहर (सुबह) हो
घर-परिवार से लेकर दुनिया-जहान तक
जिम्मेदारियों का बोझ है तुम्हारे कंधों पर
लेकिन इसे बोझ न समझना
जीवन को भरपूर जीते हुए तुम
अपने कर्तव्य का निर्वाह करना
यह पृथ्वी तुम्हारी मां है
और इस मां को
स्वर्ग से सुंदर बनाना तुम्हारा कर्तव्य
बस, इतना ख्याल रखना कि
कुछ भी बनने से पहले इंसान बनना
हर चीज़ को न्याय के तराजू पर तौलना
किसी भी विषय स्थिति में हार न मानना
और सत्य के लिए किसी से भी भिड़ जाना
मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।

प्रस्तुत कविता के लेखक इंद्रजीत कुमार मज़दूर आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं। मज़दूर वर्ग के साथ समस्त मानवजाति को अलगाव की पीड़ा से मुक्त कराने की मुहिम में लगे इंद्रजीत की भाषा में अमूर्तन के साथ बिंबों के द्वंद्वात्मक संश्लेषण को बखूबी देखा जा सकता है। आनंद लीजिए, सराहिए या जिंदाबाद कहिए आपकी मर्जी।

– इन्द्रजीत कुमार (हिंदी शिक्षक)

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