केशव शरण की कविता ज्योति

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केशव शरण

ज्योति
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बारह सौ किलोमीटर
सायकिल चलाकर आयी है
हरियाणा से दरभंगा
अपने बाप को बिठाकर लायी है
पंद्रह साल की लड़की
ज्योति
वो रही टीवी पर
क्या कमाल की लड़की !

अब वह जायेगी दिल्ली
सरकार के बुलावे पर
सायकिलिंग सीखने
ओलम्पिक के लिए
दृढ़ निश्चयी, साहसी, पराक्रमी
भाग्यवान

सबसे बड़ी ख़ुशी
यह कि
वह ज़िंदा रही
देखने को जहान
मारता
और हारता

जय हो उसकी
और वह जिए
शान से
सही फ़ैसले लेने वाले
श्रमिक को सम्मान देने वाले
नये हिंदुस्तान में !

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