(1). दु:ख :: सुख
” माँ आई
बैठी सामने
मैंने दुख को नहीं देखा
माँ को देखा
पिता आए
गले लगाए
मैंने सुख को नहीं देखा
पिता को देखा
क्षण भर में पिता ने
आगोश से अलग कर दिया
तब जाना सुख क्षणिक है
स्थायी दुख की दवाई बनाती
अब भी माँ वहीं बैठी है
और मैं
दुख को दुख , प्रेम को प्रेम
समझने की यात्रा पर हूँ ”
(2). सहेलियाँ
” कंक्रीट के जंगल में
कई झुट-पुटे एकांत हैं
उन झरोखों से झांकती हैं
झुर्रीदार आँखें
कबूतरों के कृत्रिम घोंसलों-सी
परिसीमा में
कहीं गुम हो गयी हैं
माँ की प्यारी सखियाँ
कभी-कभी खोजने लगती हैं
पापा के साथ आने वाली
दोस्तों के चेहरे में उनको
या कभी मेरे दोस्तों की माँओं में
खोजने लगती हैं पास-पड़ोस की
मुंहबोली चाची, मामी, काकी में
गुम हो गयी अपनी सहेलियों को
जो थी नादानियों के दिनों की
उनकी सबसे अच्छी दोस्त
माँ टकटकी लगाए
झुटपुटों से राह तकती हैं
प्रतीक्षा अंतहीन है
झुर्रियाँ बस दायरा बढ़ाती हैं
स्मृतियाँ ख़ुद को दोहराती हैं
बस नहीं आती हैं वापस
तो माँ की सखियाँ ”
(3). माँ सुनती है
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” देर रात तक पढ़ता था
माँ खुली आँखों से सोती थी
मैं बस रटता रहता था
वह सपने बुनती रहती थी
प्यास मुझे जब लगती थी
वो ग्लास लिए मिल जाती थी
वो सब इतनी खामोशी से करती
मुझे लगता,माँ सुनती नहीं है
मेरे पॉकेट में छेद था
और हाथों में फिसलन भी
लंच वाले डब्बे से
जब भी मन ऊब जाता
उसी दिन डब्बे में
पैसा वो रख देती थी
पर मुझे लगता,माँ सुनती नहीं है
नींद में जब भी ठंड लगी
चादर बन ढक़ लेती थी
पढ़ते-पढ़ते जब नींद लगी
एक चाय की प्याली होती थी
पर मुझे लगता,माँ सुनती नहीं है
सर दर्द को मेरे
मुझसे पहले जान ले जब
मन की सारी उलझन को
मुझसे पहले पहचान ले जब
प्यार जिसे मैं करता हूँ
वो उसको अपना मान ले जब
कहने से पहले ही मेरे वो
जीवन का इनाम दे जब
तब भी मुझे लगता
माँ सुनती नहीं है
आज मैं ढूँढ रहा हूँ
अपनी थाली में
प्याज़ मिर्च और नमक
ढूँढ रहा हूँ माँ को
यह बताने को
कि माँ तुम तो सब सुनती हो……..”
कवि यतीश कुमार का परिचय —
कवि यतीश कुमार पेशे से 1996 बैच के भारतीय रेलवे सेवा के अधिकारी एवं राष्ट्रीय पुरस्कार (2006) से सम्मानित एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं। वर्तमान में, वे ब्रेथवेट एण्ड कम्पनी लिमिटेड (रेल मंत्रालय के अधीन भारत सरकार का उपक्रम) में अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पद पर आसीन हैं।
हिंदी कविता में उनकी रुचि सर्वविदित है। उनकी कविताएँ एवं संस्मरण देश के कई समाचार पत्रों एवं प्रसिद्ध पत्रिकाओं जैसे कि नया ज्ञानोदय, हंस, अहा ज़िंदगी, सन्मार्ग, प्रभात ख़बर, वागार्थ इत्यादि में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। जानकी पुल ब्लॉग में उनकी विशिष्ट शैली में काव्यात्मक समीक्षाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं ।
श्री कुमार की सामाजिक विकास कार्यों में गहरी रुचि रही है। वे बाल भिक्षावृत्ति के खिलाफ कार्य और उक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न गैर सरकारी संगठनों का समर्थन करते हैं।
मो – 87774 88959