अब छूट गई है माँ!

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नन्हा- मुन्हा राही था मैं
जब छोड़ गई थी माँ
चादर को मैं खींच खींच के
खेल रहा था माँ!

लगा जगोगी, अभी जगोगी
गाड़ी आते घर जाओगी
आखिर कबतक तुम सोओगी
उठ अभी तू मुँह धोओगी
कहाँ पता था वहाँ मुझे
अब नहीं जगोगी माँ!

जुट गए थे कितने लोग
फिर भी तू न जग पाई
कोई फोटो कोई वीडियो
मोबाईल सबने वहाँ दिखाई
कोई नहीं ऐसा निकला
जिसने तुमसे हो बात कराई
तू कितनी प्यारी थी
हर वक्त किसी अपनों से
एकतरफा ही तू बात कराई
पास खड़ी मौसी को देखा
करती क्रंदन करुण रुलाई
तब क्या छोटा #रहमत जाने
अब छूट गई है माँ!

जल्दी ही था तुझको जाना
तो क्यों मुझे बुलाई माँ
तेरे जाने पर मौसा ने
शैतानी मौत बताई माँ!

दिन कटे हैं कैसे गिन गिन
मिलने आये कितने नामचीन
हर कोई कुछ -कुछ देता
कोई कुछ न हमेशा लेता
बस मेरे खेलते फोटो को
जनता में ही बेच करता
कवि हो या हो नेता
स्नेह कभी ना मुझको मिलता
क्यों ऐसा दिन दिखाई माँ!

बस बन गया पात्र बिकाऊ
क्या क्या मैं तुझे बताऊँ
चीर नहीं सकता सीने को
कैसे सब दिखलाऊँ
जो सुख तेरे आँचल से
खेल-खेल मैं पाऊँ
चली गई तू छोड़ मुझे
अब किसके हाथों खाऊँ
तेरे पास मैं आ जाऊं
कोई ऐसी राह दिखाओ माँ!

© डॉ दिनेश पाल
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिन्दी)

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