प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नाम श्रमिक संगठनों का खुला पत्र

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सेवा में,
श्री नरेंद्र मोदी
माननीय प्रधान मंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली।

सन्दर्भ : श्रम कानूनों में बेरहम परिवर्तन और राष्ट्रीय संसाधनों और संपत्तियों के निजीकरण को निर्बाध करने के खिलाफ और अन्य मांगों को लेकर 22 मई 2020 को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन।
महोदय,
विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में बेरहम बदलावों के खिलाफ लगभग सभी केंद्रीय श्रम संगठनों और कर्मचारियों के स्वतंत्र राष्ट्रीय महासंघों के संयुक्त मंच द्वारा 22 मई, 2020 को   श्रमिकों के राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के आह्वान की रिपोर्ट आपको अवश्य मिली होगी । लॉक डाऊन की स्थिति में सबसे अधिक पीड़ित,  देश के मेहनतकश लोगों द्वारा की जा रही ,  जरूरतमंद परिवारों को सीधे सार्वभौमिक भोजन सहायता और नकद सहायता उपलब्ध कराने की मांगों की अनदेखी करते हुए,  आपके इशारे पर श्रम कानूनों में किये जा रहे ये परिवर्तन देश में बड़े पैमाने पर निजीकरण के दौर की शुरुआत करेंगें।   सबसे चिंतनीय  मामले उत्तर प्रदेश , गुजरात और मध्य प्रदेश के हैं, जहां लगभग सभी श्रम कानूनों को तीन साल के लिए निलंबित करने की कवायद की जा रही है।  केंद्र सरकार के अनुसरण में और उसके आग्रह पर अन्य राज्यों में भी इस दिशा में कदम उठाए जा रहे है। इस संबंध में और साथ ही तालाबंदी के दौरान श्रमिकों को पूर्ण मजदूरी के भुगतान और उनके रोजगार की सुरक्षा के संबंध में सरकार के स्वयं के निर्देशों / सलाह के बड़े पैमाने पर उल्लंघन के बारे में स्वतंत्र रूप से और एकजुट रूप से ट्रेड यूनियनों ने   कई अभ्यावेदन किए हैं लेकिन हमारे ये प्रयास बेअसर साबित हुए हैं।


लॉकडाउन अवधि से पहले और उसके दौरान किए गए कार्यों के लिए अधिकांश श्रमिकों   को मजदूरी से वंचित कर दिया गया है, लाखों लोगों को रोजगार से बाहर निकाल दिया गया है और आपकी सरकार के निर्देशों का हठधर्मिता पूर्ण उल्लंघन कर उन्हें उनके घरों से बेदखल कर दिया दिया गया है। नियोक्ता वर्ग,  जिनके प्रति आपकी सरकार काफी उदार है, द्वारा निर्देशों के उलंघन को वैध बनाने के उद्देश्य से अब आपकी सरकार ने इन निर्देशों को लागू करवाने के बजाय उन्हें वापस ले लिया है । प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के बारे में प्राप्त हो रही दैनिक रिपोर्ट उनकी हताशा को दर्शाती है। लाखों मज़दूर सड़कों और जंगलों से होकर कई सौ मील तक सड़कों पर, रेलवे की पटरियों पर चलते रहे हैं। भूख, थकावट और दुर्घटनाओं के कारण रास्ते में कई बहुमूल्य जीवन ख़त्म गए हैं। इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा पीड़ित महिलाएं और बच्चे हुए हैं। इस विशाल मानवीय समस्या से निपटने में केंद्र और राज्यों के बीच संवेदनशीलता और समन्वय की कमी है। यह स्थिति आपके द्वारा संसद, राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों और उन लोगों को विश्वास में लिए बिना अचानक निर्णय लेने के कारण उत्पन्न हुई है, जो COVID 19 से लड़ने में महत्वपूर्ण थे।

प्रवासी श्रमिकों को अंतर-राज्यीय सीमाओं से वापस किया जा रहा है। यह देखा गया है कि श्रमिकों को वापस जाने से रोकने और उन्हें उन कारखानों में काम करने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया जा रहा है, जिनसे वे बाहर निकाले गए थे।   इसका अर्थ यह है कि मज़दूरों को पूँजी के हित में किसी भी अधिकार या गारंटी के बिना,  बगैर किसी सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और सभी मानवीय गरिमाओं को दरकिनार कर केवल उन लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए जिनका उद्देश्य श्रमिकों के खून और पसीने की लागत पर केवल अपने लाभ को अधिकतम करना है , बंधुआ मज़दूरी के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह मानव अधिकारों के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
आपकी सरकार द्वारा जारी किये गए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की बहुत चर्चा है, जिसमें   कई अर्थशास्त्रियों के अनुसार, आम लोगों के लिए वास्तविक धनराशि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% है; बाकी सभी केवल वित्त मंत्री द्वारा घोषित विभिन्न क्षेत्रों द्वारा विभिन्न उधारों के लिए गारंटी है। लेकिन हमारी तात्कालिक चिंता यह है कि जिन लोगों के रोजगार / आजीविका को लॉक डाउन के चलते छीन लिया गया है, उनके भोजन और अन्य जरुरी आवश्यकताओं के लिए इसमें कुछ भी ठोस नहीं है।
हमें इस तथ्य पर आपत्ति करने की अनुमति नहीं है कि आपकी सरकार ने “नई संसद परियोजना”, “एनपीआर प्रक्रिया” पर बजटीय व्यय को निरस्त नहीं किया है, लेकिन प्रवासी श्रमिकों को उनके गांवों में वापस लाने के खर्च पर बहस हो रही है, जबकि यह प्राथमिकता होनी चाहिए और सरकार की बाध्यकारी जिम्मेदारी भी!

संक्षेप में, आपके वित्त मंत्री द्वारा पांच किश्तों में की गई की घोषणा, शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों में, कई करोड़ कामकाजी आबादी को कोई राहत देने के बजाय, वास्तविक रूप से विदेशी और घरेलू बड़े कॉर्पोरेट और व्यावसायिक घरानों के स्थायी सशक्तिकरण की योजना है । ये घोषणाएं, गरिमा पूर्ण मानवीय अस्तित्व एवं    काम करने वाले लोगों को बुनियादी मानव अधिकारों से वंचित करती हैं। आपकी सरकार द्वारा योजनागत  और स्वच्छता श्रमिकों,  स्वास्थ्य क्षेत्र, कोरोना के खिलाफ जंग में   फ्रंट लाइन श्रमिकों जैसे सबसे निचले पायदान पर कार्यरत लोगों की निरंतर उपेक्षा की जा रही है।
हम फंसे हुए श्रमिकों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने, सभी को भोजन उपलब्ध कराने, बिना किसी शर्त के राशन वितरण के सार्वभौमिक कवरेज के लिए, पूरे लॉक डाउन अवधि के लिए सभी को मजदूरी सुनिश्चित करने, असंगठित श्रमबल (पंजीकृत या अपंजीकृत या स्वरोजगार) सहित सभी गैर-आयकर कर दाता परिवारों को कम से कम तीन महीने यानी अप्रैल, मई और जून के लिए रु 7500 के नकद हस्तांतरण की व्यवस्था   के रूप में तत्काल राहत की मांग करते हैं। हम केंद्र सरकार और सीपीएसई के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को फ्रीज करने, पेंशनरों को महंगाई राहत फ्रीज करने, स्वीकृत पदों को समाप्त करने, श्रम कानूनों में किसी भी बदलाव / शिथिलता पर पूर्ण रोक लगाने के आदेश देने की मांग करते हैं। हम इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम 1979 को मजबूत बनाने की मांग करते हैं, ताकि दोनों छोर पर सरकारों द्वारा और उन्हें सीधे और ठेकेदारों के माध्यम से नियोजित करने वाले प्रतिष्ठानों द्वारा भी प्रवासी श्रमिकों का अनिवार्य पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके । हम एक मजबूत और जवाबदेह कार्यान्वयन तंत्र के साथ मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, आवास और कल्याण की जरूरतों पर पर्याप्त सुरक्षात्मक प्रावधानों की मांग करते हैं। इस अधिनियम को आपके सरकार द्वारा, जैसी की योजना है,  निरस्त नहीं किया जाना चाहिए।
हम मांग करते हैं कि आप कारपोरेटाइजेशन, आउटसोर्सिंग, पीपीपी, उदारीकृत एफडीआई आदि जैसे बहु-प्रचारित मार्गों   के माध्यम से सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रमों   और सरकारी विभागों के थोक निजीकरण की अपनी नीति को   रोकें, जिन्हें 13 मई से 17 मई 2020 तक वित्तमंत्री द्वारा पैकेज घोषणाओं के दौरान दोहराया गया है और घोषित किया गया था और विशेष रूप से   लॉक डाउन अवधि के दौरान आपने खुद अपने सम्बोधन में कहा है।
सादर,
                            
INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC

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