रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
कल जब पूरा विश्व वैश्विक महामारी कोरोना के कारण सरकारों द्वारा किये गये लाॅकडाउन में अपने-अपने तरीके से अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मना रहा था। हमारे देश में तेलंगाना से एक ट्रेन तड़के सुबह प्रवासी मजदूरों को लेकर झारखंड के लिए रवाना हो चुकी थी। कुछ लोग सोशल साइट्स पर कविता पाठ, तो कुछ लोग मजदूर दिवस का इतिहास बताने की तैयारी कर रहे होंगे, तो कुछ लोग मजदूरों से संबंधित पोस्टर तैयार कर रहे होंगे, कुछ लोग ट्वीटर स्टाॅर्म की तैयारी कर रहे होंगे, ठीक उसी समय साइकिल से दिल्ली से खगड़िया (बिहार) स्थित अपने घर पहुंचने की जद्दोजहद में एक मजदूर धर्मवीर शर्मा ने बीच रास्ते में दम तोड़ दिया।
खबर के मुताबिक, लॉकडाउन से रोजी रोटी छिन जाने के बाद भी 34 दिन जैसे तैसे गुजार लिए, लेकिन जब लगा कि ये संकट काल एक अंधेरी सुरंग सरीखा है तो दिल्ली से बिहार तक 1300 किमी लंबे सफर पर सात मजदूर टोली बनाकर निकल पड़े।
बिहार के खगड़िया जिले के थाना चौथम क्षेत्र के गांव खैरता निवासी धर्मवीर शर्मा छह अन्य साथी खगड़िया जिले के ही चौथम थाना क्षेत्र के खैरता गांव निवासी सुशील, बिहार के सहरसा जिले के महुआनगर थाना क्षेत्र के मुकुंदनगर निवासी सुलेंद्र शर्मा, इसी थाना क्षेत्र के रंजीत शर्मा, खगड़िया जिले थाना बेलदौर क्षेत्र के गवास गांव निवासी छोटू उर्फ रामनिवास शर्मा, बिहार के सहरसा जिले के सोनवर्षा थाना क्षेत्र के दुहनिया गांव निवासी भैसर शर्मा, बिहार के मधेपुरा जिले के हापुर थाना क्षेत्र के आलमनगर निवासी करन कुमार के साथ पुरानी दिल्ली के शकूरबस्ती में रहकर अलग-अलग फैक्ट्रियों में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्रियां बंद हो गई। 27 अप्रैल को ये लोग साइकिल से ही घर जाने के लिए निकल पड़े थे। 30 अप्रैल की देर रात करीब दो बजे सभी लोग शाहजहांपुर के बरेली मोड़ स्थित पुराने टोल प्लाजा के पास पहुंचे तो बारिश होने लगी। सभी लोग वहीं सो गए। 1 मई को करीब आठ बजे धर्मवीर की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। उसके शरीर में काफी दर्द हो रहा था। कुछ देर बाद वह बेहोश गया। साथियों ने अजीजगंज चौकी पहुंचकर जानकारी दी। पुलिस 108 एंबुलेंस से सभी को मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंची, जहाँ धर्मवीर को मृत घोषित कर दिया गया।
घर के लिए प्रारंभ हुआ उनका सफर अभी तो एक तिहाई ही पूरा हो पाया था, लेकिन वे ऐसे सफर पर चले गये, जहाँ से वे कभी वापस नहीं आ सकते। उनके साथियों का कहना है कि मृतक अभी तो 28 साल का था। उसे कोई बीमारी भी नहीं थी। फिलहाल, प्रशासन ने मृतक का सैंपल जांच के लिए भेज दिया है। वहीं, उसके साथियों को क्वारैंटाइन कर दिया है।
दिहाड़ी मजदूर था मृतक धर्मवीर
बिहार के खगड़िया जिले के खरैता गांव का रहने वाला मृतक धर्मवीर शर्मा अपने जिले के रहने वाले अन्य मजदूरों के साथ ही दिल्ली में रहकर दिहाड़ी मजदूरी करता था। कभी रिक्शा चलाता था तो कभी राजगीर का काम कर लेता था। लेकिन लॉकडाउन के बाद इनका रोजगार छिन गया। कुछ पैसे जोड़े थे तो उससे राशन खरीद लिया। यह राशन करीब 10 दिन चला। इसके बाद आसपड़ोस से मांगकर पेट भरा गया।
कई दिनों मांगकर खाना खाया, भूखे भी रहे
मृतक के साथी मजदूर रामनिवास उर्फ छोटू ने बताया कि दिल्ली सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली। कई दिनों तक बिस्कुट खाकर पेट भरा। लेकिन जब लगा कि ये दिन कैसे गुजरेंगे? इससे बेहतर है कि अपनों के बीच चला जाए। यहां रहे तो बीमारी से मरे या न मरे भूख से जरूर मर जाएंगे। मजबूरन 27 अप्रैल को धर्मवीर के साथ हम छह लोग साइकिल से अपने घर के लिए निकल पड़े। भूखे प्यासे चार दिन साइकिल चलाकर 30 अप्रैल की रात शाहजहांपुर पहुंचे थे।
हालांकि, धर्मवीर की मौत का कारण क्या है? यह बात किसी को समझ नहीं आ रही है। उसके साथियों ने बताया कि उसे कोई बीमारी नहीं थी। दिल्ली से आए मजदूर की मौत की सूचना पर प्रशासन के अधिकारी मेडिकल कॉलेज पहुंचे। मृतक के बारे में साथियों से जानकारी ली। उसका शव पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल अभय कुमार ने बताया कि शव से सैंपल लेकर जांच के लिए भेज दिया गया है। साथी मजदूरों को क्वारैंटाइन किया गया है।
धर्मवीर शर्मा मर गया, लेकिन अपने पीछे वे कई सवाल छोड़ गये। उनकी मौत की जिम्मेदारी से ना तो केन्द्र सरकार बच सकती है, और ना ही दिल्ली, यूपी व बिहार सरकार। धर्मवीर की मौत के लिए ये तमाम सरकारें जिम्मेदार है, जिन्होंने वक्त रहते करोड़ों प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी के लिए कुछ नहीं किया है।
(तस्वीर 7 में से छ: जिन्दा बचे मजदूरों की)