वाराणसीः एनजीओ-जगत में व्याप्त गलाज़त विषयक पिछले दिनों हमारा मोर्चा की एक रिपोर्टिंग ने शहर के तमाम करेक्टरलेस लोगों-एनजीओ के यहाँ कउरा पाने वालों के बीच गज़ब की एकता कायम करने का काम किया है। विगत शुक्रवार को थाना बड़ागाँव के एक सब-इंस्पेक्टर का गहरपुर में हुआ तफ्तीशी दौरा इस बात का सुबूत है।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली-स्थित एनजीओबाज अनिल चौधरी, जो पीस फाउंडेशन चलाते हैं, के यहाँ कउरा पाने वाला अभिषेक श्रीवास्तव हमारा मोर्चा की रिपोर्टिंग से खफा होकर लूज़ करेक्टर, दलित महिला उत्पीड़क गोकुल मिश्रा उर्फ गोकुल दलित के पाले में बैटिंग कर रहा है। इसके पहले विकास भवन में काम करने वाले संतोष भुँइहार यह काम कर चुके हैं। मादक-द्रव्यों को रखने के मामले में पुलिस कार्रवाई का सामना कर रहा गोकुल मिश्रा का भाई अमित मिश्रा भी अनिल चौधरी के पीस फाउंडेशन से वजीफा पाता है और इस तरह से ये लोग आपस में जुड़े हुए हैं।
विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि गोकुल दलित-ओमप्रकाश मिश्रा को सीओ बड़ागाँव के यहाँ भिड़ाने में इस बार अभिषेक श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई। गौरतलब है कि मिश्रा परिवार को वह जमीन वापस चाहिए, जिसे वह सुमन तिवारी को बेच चुका है और इसके लिए वह सतत रूप से हर प्रकार की नीचता का प्रदर्शन किए जा रहा है। गहरपुर के एक बुजुर्गवार जो इन्हीं लोगों के पटीदार हैं, का कहना है कि जमीन अगर हमारी माँ होती है तो उसे ये कुक्कुर के नाती कितनी बार बेचेंगे। ओमप्रकाश के पिता राजनाथ मिश्रा की शैतानी हरकतों के बारे में इन्हीं बुजुर्गवार का कहना है कि संवेदनहीन और लालची प्रकृति का व्यक्ति रहा है। अपनी ही संतान के साथ हुई त्रासद घटना पर भी इसका रुख ब्लैकमेलिंग करने का रहा है। सनातनी ब्लैकमेलर है और अब अपने छोटे बेटे को भिड़ाकर आप लोगों को ब्लैकमेल करने में लगा हुआ है। इसको उस जमीन का फिर-फिर से पैसा चाहिए जिस जमीन का यह एक बार पूरा पैसा ले चुका है। जमीन को माँ मानकर इन बुजुर्गवार द्वारा की गई तुलना और फिर आगे के शब्दों को लिपिबद्ध करना उचित नहीं है।
ताकि सनद रहे इसलिए दोहरा दे रहा हूँः हमारा मोर्चा के पोल-खोल अभियान से परिचित मानवाधिकार जन-निगरानी समिति (पीवीसीएचआर) के कर्ताधर्ता लेनिन रघुवंशी, जो नवदलित आंदोलन के प्रणेता हैं, अरक्षित दलित-महिला के साथ मार-पीट और उसके दैहिक-मानसिक शोषण की खबर रखते हैं और उससे खफा भी हैं। पर पोल खुलने से बौराया गोकुल मिसिर मुझे बनारस से भगाने के लिए स्टेट मशीनरी की मदद लेना चाहता है। पहले इसने पिंडरा के एसडीएम को सेट करके कच्ची नापी-पक्की नापी का खेल खेलना चाहा, (इस काम में संतोष भुँइहार ने इसकी मदद की थी) मेरे घर के आगे पट्टा लेने की जुगत भिड़ा रहा था और अब अभिषेक श्रीवास्तव के संपर्कों की मार्फत सीओ बड़ागाँव के जरिए बनारस से बाहरी को भगाओ के अपने महा-अभियान को गति देना चाहता है।
सावन के पवित्र महीने में गोकुल मिसिर के यहाँ मुर्गा-भैंसा की दावत हुई जिसमें शहर के अनेक करेक्टरलेस लोगों-एनजीओ के धंधे में लगे हुए बिल-वाउचर से पैसा बनाने वाले लोगों ने स्वादिष्ट पकवानों का जमकर लुत्फ उठाया। बस प्रसंगवश बताते चलें कि गोकुल मिश्रा के अब्बा-हुजूर यानि कि श्री जगदीश मिश्रा वैसे तो सनातनी हिंदू हैं लेकिन बुढ़ापे में आय का अपना कोई स्रोत नहीं होने के कारण लाचार हैं और शराबी-रंडीबाज लौंडे की ज्यादती झेलने को अभिशप्त हैं। गोकुल दलित बहुत चौड़े होकर कहता है कि मैं कमाता हूँ और मैं अपनी माँ से अपनी हर बात मनवा लेता हूँ। फिर वह चाहे सावन के महीने में बीफ खाना ही क्यों न हो?
राजनाथ मिश्रा अपनी आतंक मचाने वाली कार्रवाइयों के जरिए मुझे ब्लैकमेल करना चाह रहा है। गाँव वाले बताते हैं कि यह सनातनी ब्लैकमेलर है और जब इसकी बेटी को उसके ससुरालीजनों ने मार डाला था तो उसने बजाय उन पर कानूनी कार्रवाई करवाने के मोटा पैसा लेकर मांडवली कर ली थी। और उन्हीं पैसों से अपना घर बनवाया था। दूसरा विक्रेता जगदीश मिश्रा और उसका बेटा अरविंद मिश्रा कोरोना काल की परेशानियों से निजात पाने के लिए पहले तो जमीन बेचा और अब उसी जमीन के एक हिस्से को मुझसे जबरी पाने के लिए कभी एसडीएम के यहाँ तो कभी पुलिस प्रशासन में धमाचौकड़ी मचाए हुए है। उल्लेखनीय है कि मामले में अनुचित रूप से एसडीएम द्वारा रुचि लिए जाने की शिकायत शासन-प्रशासन से की जा चुकी है। अरविंद मिश्रा-जगदीश मिश्रा को कोरोना काल में पैसों कि बेतहाशा जरूरत थी, अरविंद मिश्रा को अपनी दलित मित्र का भरण-पोषण भी करना होता है, जो आयुर्वेद के नाम पर स्टेरॉयड मिली अड़भंगी दवाएं बेचती है, इसके पास पैसे नहीं थे तो बाप से जमीन बिकवाई और अब जब पैसे आने शुरू हो गए हैं तो मेरा जीन हराम किए हुए है।