योगी बाबा की महिमा अपरंपार

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गोरखपुर में का बा? यूपी में का बा? इस कड़ी में अगला प्रश्नः इंडिया में का बा? इंडिया में योगी आदित्य नाथ हैं और खबर का फॉलोअप यह है कि वह देश के कर्णधार होने जा रहे हैं।
संसदीय जनतंत्र मनुष्यता की अंतिम मंजिल है या नहीं, इसे लेकर अंतहीन बहस और बकवास जारी है। इसे मानने या इन्कार करने से पहले का सच यह है कि अगले वर्ष यानि कि 2024 में आम चुनाव होने जा रहे हैं और देश का प्रधानमंत्री कौन होगा या किसे होना चाहिए, इस पर बात शुरू हो चुकी है। अब जबकि बात शुरू हो ही चुकी है तो हम भी इस विषयक विमर्श को आगे बढ़ाने के ख्वाहिशमंद हैं।
हमारे सहपाठी रहे बाबू कर्णवीर सिंह का मानना है कि समतामूलक समाज की स्थापना करने के ध्येय को कोई क्षत्रिय कुलोद्भव मनुष्य-श्रेष्ठ ही प्राप्त कर सकता है। योगी आदित्यनाथ जन्मना क्षत्रिय हैं लेकिन संसार-त्यागी संन्यासी के रूप में सर्व-स्वीकार्य भी हैं। वह आगे कहते हैं कि दो मुट्टी चावल और मामूली से अंगवस्त्र की एवज में मनुष्यमात्र बल्कि यूँ कहें कि प्राणीमात्र की अहर्निश सेवा करने वाले योगी आदित्य नाथ को इस देश के मतदाता अगले पीएम के रूप में भला क्यों नहीं देखना चाहेंगे?
माल उत्पादन पर आधारित विश्व-अर्थव्यवस्था में गहराती मंदी की पृष्ठभूमि में रोजगार के घटते अवसरों को लेकर चिंतित युवाओं के प्रतिनिधि तथा उनकी चिंता को स्वर देने वाले छात्र-नेता दिगंत शुक्ल कहते हैं कि कोई सुविधाभोगी-इंद्रियसुख भोगी और मनुष्यद्रोही इंसान बनियों के ऊपर नकेल नहीं कस सकता क्योंकि बनिए ढेर सारी सुविधाएं देकर पालतू बनाने का हुनर जानते हैं। अर्थव्यवस्था में बनियों के ऊपर नकेल कसकर और नौकरशाही को जनता के प्रति जवाबदेह बनाकर जनकल्याण कैसे किया जाता है, इसकी बानगी समसामयिक उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रही है। श्री शुक्ल आगे कहते हैं कि योगीराज में ईमानदार बनियों को भी कोई कष्ट नहीं है, कोई उद्यमी अगर आम जनता के हितों के खिलाफ नहीं जाता है और मानव-जिंदगी के मोल को समझता है तो उसे अर्थव्यवस्था में सकारात्मक योगदान देने से योगी बाबा आगे भी रोकने नहीं जा रहे हैं।
नर्सिंग ग्रेजुएट अंकिता शुक्ला कहती हैं कि असमानता पर आधारित समाज में दाता-संरक्षक बनने की ललक दुर्निवार होती है लेकिन सही मायने में स्त्री-समर्थक राजव्यवस्था उन्हें संरक्षिता की बजाय खुदमुख्तार बनाने के उपाय करती है। अभी तक के ट्रैक-रिकार्ड को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि देश की बागडोर सँभालते ही योगी आदित्य नाथ ऐसी व्यवस्था करेंगे कि सामाजिक जीवन में, राजकाज में और सांस्कृतिक परिदृश्य में स्त्रियों की भागीदारी और मौजूदगी बढ़ती ही चली जाए। अभी तक की शासन-व्यवस्थाएं स्त्रियों को संरक्षिता बनाने पर जोर देती रही हैं लेकिन आने वाले कल में यानि जब देश के कर्णधार योगी बाबा होंगे तो स्त्रियाँ सच्चे अर्थों में मुक्त-निर्भय जीवन जिएंगी क्योंकि वे आर्थिक रूप से स्वावलंबी होंगी और इसकी व्यवस्था करेगी केंद्र सरकार।
मुस्लिम आबादी को लेकर सरोकारी सोच रखने वाले मोहम्मद सत्तार कहते हैं कि मुनाफे की गिरती दर से चिंतित बनियों के दबाव में नागरिकता संशोधन बिल लाया गया था ताकि भारी आबादी को बे-नागरिक बनाकर उन्हें बंदी-गृहों में डाल दिया जाए और सिर्फ भोजन की एवज में उन्हें बाजार के लिए उत्पाद तैयार करने हेतु खटाया जाए। जिस समाज-व्यवस्था के केंद्र में मुनाफा हो, वहाँ पर मानव-अंगों को बेचकर भी माल पीटा जा सकता है। हताश करने वाली इस स्थिति के वैपरीत्य को वर्णित करते हुए सत्तार साहब कहते हैं कि जिस योगी की आरती की थाली सजाने का काम कोई मुस्लिम करता हो, उसका दिल तो समंदर होगा ही और उसके राज में मुस्लिम भी निर्भय होंगे, उनकी भी चतुर्दिक तरक्की होगी।

सत्तार साहब आगे कहते हैं कि मौजूदा केंद्रीय नेतृत्व की सबसे बड़ी खामी यह है कि वह मुनाफे की अंधी हवस के सताए बनियों के हाथ की कठपुतली बना हुआ है, तभी तो कोई भी जन-हितैषी कदम उठाने से पहले उसे सौ बार सोचना पड़ता है। लेकिन, गृह-त्यागी, संसार-त्यागी योगी आदित्य नाथ के केंद्रीय हुकूमत की बागडोर संँभालते ही स्थितियाँ गुणात्मक रूप से बदल जाएंगी।
पशु चिकित्सक डॉ. अश्विनी शुक्ल कहते हैं कि किसानों और पशुपालकों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार की जरूरत और गुंजाइश दोनों ही है। खेती में औद्योगिक इनपुट बढ़ता गया है और किसानों की बाजार पर निर्भरता भी उसी अनुपात में बढ़ती गई है। तकलीफदेह स्थिति यह है कि बाजार पर किसानों का नहीं वरन मुट्ठीभर पूँजीपतियों का कब्जा है और वे भारी किसान आबादी, जिसमें पशुपालक भी शामिल हैं, का खून चूस रहे हैं।
वह कहते हैं कि गाँव-देहात के लोग आस लगाए बैठे हैं कि कब अगला चुनाव हो और कोई निर्मोही सत्तासीन हो, ताकि बनियों पर चाबुक फटकार सके और उनकी मनमानी से आम जनता को राहत दिला सके।खेती-किसानी के जानकार दिलेसर पासी कहते हैं कि पता है सरकार कृषि कानून लाने को क्यों विवश हुई? क्योंकि एक तरफ तो पूँजी का अंबार लगा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ सामान बिक नहीं रहे हैं क्योंकि जनता की क्रयशक्ति छीज चुकी है, इसलिए बनियों को कृषि के क्षेत्र में निवेश के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिए उनकी चेरी मौजूदा सरकार ने कृषि कानून पारित करवाया था।
दिलेसर आगे कहते हैं कि यहाँ भी किसानों और भारी देहाती आबादी को ऐसे पीएम की आस है जो उनकी भी सुने और दुनिया के सबसे मंहगे विमान में सफर करने के लोभ का संवरण करते हुए बनियों की ललकजन्य कुंठाओं पर लगाम लगाए।
आततायी संघियों से आक्रांत उत्कट सनातनी ठाकुर प्रमोद सिंह कहते हैं कि यहूदी ब्राह्मणों के वर्चस्व वाले आरएसएस को अगर परास्त करना है तो सनातन के पक्ष में आवाज बुलंद करनी होगी। फासीवाद के फलसफे से जुड़ी बकवास को इस देश की जनता समझने वाली नहीं। चूँकि भारत में कभी सामंतों की मुंडी काटी ही नहीं गई तो लोकतंत्र यहाँ के मिजाज में ही नहीं है। ऐसे में लड़ना तो हमें बाबा आदम के जमाने के हथियारों-औजारों से ही है और संघी मंसूबे को परास्त करने के लिए जरूरी है कि क्षत्रियों की अगुवाई में सनातन की पुनर्स्थापना की जाए। श्री सिंह कहते हैं कि जनमत का निर्माण करने वाले ब्राह्मणों को अगर दिल से आदर कोई देता है तो वह सिर्फ क्षत्रिय देता है, वर्ना तो बाकी जातियों के लोग इस फिराक में रहते हैं कि पंडित जी उनके आगे कब नतमस्तक हों? सदियों की कुंठा-बदला लेने की दुर्निवार चाहत ने सारे जमाने को अकिंचन ब्राह्मणों का दुश्मन बना रखा है। ऐसे में ब्राह्मणों की भी समझ में आ चुका है कि अगर अपने सम्मान की रक्षा करनी है तो योगी आदित्य नाथ को ही देश की बागडोर सौंपना मुनासिब रहेगा।
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कामता प्रसाद 

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