प्रेम न हाट बिकाए!
प्रेम संबंधों को लेकर इन दिनों जोरदार बहस चल रही है। कुछ लोग इस कठिन घड़ी में प्रेम कविता लिखे जाने का मजाक उड़ा रहे हैं, तो कुछ लोग समाज की भयावहता से आंख बंद कर निरपेक्ष प्रेम की कल्पना में डूब रहे हैं। प्रेम और संघर्ष का या फिर घृणा और प्रेम का एक दूसरे से गहरा ताल्लुक है। एक के बगैर दूसरे का अस्तित्व ही नहीं हो सकता है, क्योंकि समाज वर्गों में बटा हुआ है और यह तीव्र शोषण और दमन पर आधारित है। जब शोषण और दमन होगा, तो समाज का एक दूसरे से घृणा और प्रेम करने वाले दो परस्पर विरोधी खेमे में बंटना लाजमी है । इसलिए किसी से घृणा किए बगैर दूसरे से गहरे उतरकर प्रेम किया ही नहीं जा सकता है और प्रेम के बगैर मनुष्य ही नहीं प्राणी जगत का अस्तित्व असंभव है।
प्रेम एक सापेक्ष शब्द है। इसकी प्रक्रिया से तय होता है कि यह व्यापार और बाजार के लिए है या मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने के लिए। वर्ग युद्ध के पीछे भी प्रेम होता है । यूं कहिए कि वर्ग घृणा भी जरूरी है वर्ग प्रेम के लिए। लेकिन जब प्रेम में अवसरवाद का समावेश हो जाता है तो यह प्रेम को भी बिकाऊ माल बना देता है। उदारवादी बुद्धिजीवी तथा सुविधा भोगी मध्यवर्ग इस तथ्य को छुपाता है, जबकि अपने विचार जगत में इन सब का मोल-तोल वह खूब करते रहता है। पूंजीवाद लगातार प्रेम को अवसरवादी बनाकर अपने बाजार और मुनाफे के लिए उपयोग कर रहा है।
प्रेम की तरह ही राजनीति में भी अवसरवाद ने गहरी पकड़ बना ली है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पूंजीवाद अपने शासन को चलाने के लिए दुनिया के हर क्षेत्र में अवसरवाद को बढ़ावा दे रहा है, तो आज की लड़ाई पूंजीवाद के इस षड्यंत्र के खिलाफ महत्वपूर्ण हो गया है। यही लड़ाई प्रेम को भी उसकी घेराबंदी और कलुषता से मुक्त करेगी।
नरेंद्र कुमार