स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 7 बार काशी की यात्रा की थी

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वाराणसीः आज भारत अध्ययन केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में आयोजित ‘वेदव्याख्यापद्धति को स्वामी दयानन्द सरस्वती की देन’ विषयक व्याख्यान में मुख्य वक्ता डॉ. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, प्रख्यात वैदिक विद्वान्, अमेठी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी को उद्धृत करते हुए कहा कि यदि हिन्दू सचेत नहीं हुए तो 2300 ई. तक हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के पुनरूत्थान हेतु चार विद्वानों 1. महामना मालवीय, 2. स्वामी श्रद्धानन्द, 3. लाला लालजपत राय, 4. स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विचारों एवं शिक्षाओं का पालन करना होगा। स्वामी दयानन्द सरस्वती और काशी के सन्दर्भ को याद करते हुए उन्होंने बताया कि स्वामी दयानन्द जी ने 7 बार काशी की यात्रा की। पं. शिव कुमार शास्त्री ने दयानन्द सरस्वती जी द्वारा स्थापित वेद विद्यालय में शिक्षा प्रदान की, वेद समस्त सत्य विद्याओं, ज्ञानराशि का मूल स्रोत है, वेद परक ज्ञान और वेदाचरण से ही सम्पूर्ण विश्व में शांति प्रतिष्ठित हो सकती है।

मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. विजय शंकर शुक्ल, वरिष्ठ सलाहकार, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, वाराणसी ने कहा कि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने वेदों की वैज्ञानिकता के साथ शोधपरक व्याख्या प्रस्तुत की, पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय ज्ञानपरम्परा को नष्ट करने का पूर्ण प्रयत्न किया, अल्पज्ञान हमेशा ही हानिकारक सिद्ध होता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कलासंकाय प्रमुख प्रो. श्रीकिशोर मिश्र ने कहा कि पूजनीयों का आदर एवं उनके बताये हुए मार्ग का अनुसरण ही आज की पीढ़ी की उन्नति एवं सफलता प्रदान करेगा, दयानन्द सरस्वती जी ने पाणिनि के सूत्रों का विस्तार अपने भाष्य में की।
अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम के संयोजक डॉ. अभिमन्यु, संचालन डॉ. अमित कुमार पाण्डेय तथा धन्यवादज्ञापन डॉ. अनूपपति तिवारी ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अनेक संकायों एवं विभागों के वरिष्ठ प्राध्यापक एवं छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे।

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