छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार होश में आओ!
साथियो,
आज जब हम सब अपनों को स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझते और मरते हुये देख रहे हैं तो हमें सरकार की नाकामियों और देश की व्यवस्था पर गुस्सा आ रहा है। लेकिन पिछले कई सालों से जो आदिवासियों का साम्राज्यवादी पूंजी और भारत के बड़े दलाल पूंजीपतियों की लूट के लिये भारतीय सेना द्वारा दमन किया जा रहा है उसपर हमें गुस्सा नहीं आ रहा है। इसका सीधा मतलब है कि हमारी संवेदना कुछ खास वर्गों तक ही सीमित है। जो कि खुद के लिए और पूरे समाज के लिये खतरनाक है। अभी कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ द्वारा आदिवासी इलाकों में एक नया कैंप लगाये जाने का आदिवासी विरोध कर रहे थे तो उन पर सीआरपीएफ व छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा गोली मारकर तीन आदिवासियों की हत्या कर दी गयी। इस गोलीकांड में 18 आदिवासी घायल हुए और 8 आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उल्टे सेना के अधिकारी उनपर आरोप लगाने लगे कि ये आदिवासी हथियार लेकर सेना को मारने आये थे।
इस घटना के बाद एक बड़ी पढ़ी-लिखी आबादी जो स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कोरोना से मरने वालों के लिये दुःख जाहिर कर रही है। वह आदिवासियों के मरने पर एकदम चुप है और अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी दमन का समर्थन कर रही है।
आदिवासियों के इलाके में सीआरपीएफ के कैंप का विरोध क्यों होता है? इसका उत्तर तलाशेंगे तो यही मिलेगा कि पहाड़ों,जंगलों व नदियों में जो अपार व बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा छिपा हुआ है उसे लूटने के लिए और उससे तत्काल मुनाफा बनाने के लिए बड़े-बड़े कॉर्पोरेट केंद्र व राज्य सरकार से सैकड़ों अनुबंध करके बैठे हैं। लेकिन आदिवासी उनके लूट के रास्ते में रुकावट बने हुए हैं, जो वहां कई सदियों से रह रहे हैं और प्रकृति को संजोये हुए हैं। उन्हें वहाँ से जबरन हटाने के लिये सरकार अपनी सेना भेजती है। जो वहाँ जाकर कैंप लगाते हैं और कैंप लगाने के बाद सेना आदिवासियों से जमीन खाली कराने के लिये उन्हें मारती-पीटती है, उनके गांवों को उजाड़ती है। महिलाओं के साथ बलात्कार करती है तथा उनका जनसंहार करती है। इसी कारण आदिवासी आबादी हमेशा सेना व सीआरपीएफ द्वारा अपने इलाके में कैम्प लगाने का विरोध करती है। और उनसे अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिये संघर्ष करती है।
इंकलाबी छात्र मोर्चा, साम्राज्यवाद व कॉरपोरेट परस्त सरकारों द्वारा छत्तीसगढ़ में सेना व सीआरपीएफ के कैम्प लगाने और सैन्यबलों का इस्तेमाल कर आदिवासियों की हत्या व दमन करने का कड़े शब्दों में निंदा करता है तथा सरकार से यह माँग करता है कि वह-
1- सेना के उन अधिकारियों पर कार्यवाई करो जिन्होंने आदिवासियों पर गोली चलाने का आदेश दिये। मारे गए आदिवासियों को उचित मुआवजा दिया जाए और घायलों का समुचित इलाज़ हो।
2- केंद्र व राज्य की सरकारें प्राकृतिक संपदा की लूट के लिए कॉरपोरेटों के साथ किये गए सभी समझौतों को रद्द करें।
3- आदिवासी इलाकों से सेना को तुरंत वापस बुलाया जाए। आदिवासी इलाकों में लगाये गए सेना के सारे कैम्प हटाये जाएं।
सोनू निश्चय
अध्यक्ष
इंक़लाबी छात्र मोर्चा, इलाहाबाद