‘आधुनिक प्रयोग के लिए हमें आधुनिक रूपक गढ़ने होंगे’

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वाराणसीः विश्वविश्रुत विद्वान् भरत गुप्त का ‘नाट्यशास्त्र के आधुनिक अनुप्रयोग’ विषयक विशिष्ट व्याख्यान, भारत अध्ययन केन्द्र, का.हि.वि.वि. में आयोजित हुआ प्रो. भरत गुप्त ने कहा कि देश में भारत अध्ययन जैसे केन्द्रों का खुलना चिरकाल की आकांक्षा का पूरा होना है। नाट्यशास्त्र के प्रयोग सम्बन्धी प्राचीन नाट्यगृह का आधुनिककाल में अभाव है जबकि विश्व की हर संस्कृति के प्राचीन नाट्यगृह पाये जाते हैं। इस कमी को दूर करने के लिए हमें अपनी परम्परा को पुनर्जीवित करना होगा। नाट्यशास्त्र में वर्णित बहुतेरे प्रयोग आज भारतनाट्यम्, कुचिपुड़ी में मिल जाते हैं। नाट्य का प्रमुख कार्य देवता को प्रसन्न करना है। अभिनेता देवता का स्वरूप अपने विग्रह में स्थापित कर अभिनय द्वारा प्रदर्शित करता है।
प्रो. गुप्त ने कहा नाट्य विद्या के आधुनिक प्रयोग के लिए हमें आधुनिक रूपक गढ़ने होंगे, तभी शास्त्र पुनर्जीवित होगा। शास्त्र में उस विद्या की क्रियाएँ लिखी जाती हैं, जिनके सिद्धान्त सार्वभौम हैं। यहीं रामायण तथा महाभारत सीरियल की जनस्वीकार्यता अद्भुत थी।

स्वागत भाषण प्रो. सदाशिव कु. द्विवेदी तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्ञानेन्द्र नारायण राय ने किया। भारत अध्ययन केन्द्र का सभागार सहृदय श्रोताओं से भरा था जिनमें मुख्य रूप से प्रो. रेवती साकलकर, डॉ. अर्पिता चटर्जी, आई.जी.एन.सी.ए. के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अभिजित दीक्षित, डॉ. अनूपपति तिवारी, डॉ. अमित कुमार पाण्डेय, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. इन्द्राणी राम प्रसाद, हिन्दू स्टडीज तथा एन.एस.डी., वाराणसी के छात्र-छात्राओं के साथ ही विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के भारी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।

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