
उत्तर प्रदेश हिंदुत्वी फासीवाद का ‘मॉडल’ बन चुका है। आर.एस.एस. के सपनों का भारत कैसा होगा, इसके लिए अब संघी गुजरात की जगह यू.पी. की ओर इशारा करते हैं। मुस्लिमों, दलितों, औरतों आदि को दोयम दर्जे पर धकेलने के लिए योगी सरकार लंबे समय से सक्रिय है। आर्थिक क्षेत्र में भी केंद्र की नीतियों के तहत यू.पी. सरकार सावर्जनिक संस्थाओं का अंत कर इसे निजी हाथों में देने के लिए उतावली है।
बिजली संशोधन बिल 2020 की तर्ज पर जुलाई में यू.पी. सरकार ने अपनी बिजली वितरण कंपनी, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का फ़ैसला लिया है। यह निगम पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिजली पहुँचाने का काम करता है। इसमें दो अहम राजनीतिक शहर – वाराणसी (प्रधानमंत्री मोदी का हलक़ा) और गोरखपुर (मुख्यमंत्री योगी का हलक़ा) भी आते हैं। इस निजीकरण के लिए तर्क या बहाना उत्तर प्रदेश की पाँच बिजली वितरण कंपनियों का मार्च 2020 तक 819 करोड़ के घाटे को बनाया गया।
निजीकरण की इस घोषणा के कुछ समय बाद ही उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों के संगठनों ने सरकार को इस कदम से पीछे हटने के लिए कहना शुरू कर दिया था। सितंबर तक आते-आते सरकार की नीयत को पहचानते हुए सितंबर और अक्टूबर में कर्मचारियों द्वारा कुछ शांतपूर्ण प्रदर्शनों का ऐलान किया गया। इसके तहत मोमबत्ती मार्च, सरकारी अधिकारियों के साथ मीटिंगे आदि भी हुईं, परंतु ये बेनतीजा रहीं। बाकी सभी तरीकों की असफलता के बाद यू.पी. के बिजली कर्मचारियों ने इस वक़्त जनता के सामने मौजूद इकलौते विकल्प यानी संघर्ष का रास्ता चुना। 5 अक्टूबर से उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी यू.पी. विद्युत कर्मचारी संघर्ष कमेटी के नेतृत्व में अनिश्चितकालिन हड़ताल पर बैठ गए। इसमें देश भर के बिजली कर्मचारी यू.पी. के संघर्षरत कर्मचारियों के समर्थन में खड़े रहे। इस पूरे संघर्ष में शामिल हुए बिजली कर्मचारियों की संख्या 15 लाख के करीब बताई जा रही है। यू.पी. में इस हड़ताल के कारण बिजली आपूर्ति काफ़ी प्रभावित हुई, जिसमें लखनऊ में इसका असर सबसे अधिक हुआ। 5 और 6 अक्टूबर – दो दिन की ही हड़ताल से राज्य में पैदा हुई बिजली की कमी को उत्तर प्रदेश का शासक वर्ग और सरकार ना झेल सकी। उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 अक्टूबर को संघर्ष कमेटी से मीटिंग में अपना निजीकरण का फैसला वापिस ले लिया।
हालाँकि योगी सरकार इस फैसले से टली नहीं है, और इसे कुछ वक़्त के लिए स्थगित ही किया है, फिर भी बिजली कर्मचारियों का यह संघर्ष मिसाली है। अपनी एकता व पेशे के कारण व्यवस्थाि पर चोट मारने के अपने सामर्थ्य की वज़ह से यू.पी. और समूचे देश के ही बिजली कर्मचारियों ने फासीवाद की ‘मॉडल’ सरकार को दो दिनों में ही झुका दिया। जो योगी सरकार पूरे राज्य में हर किस्म के सार्वजनिक रोष, जनवादी अधिकारों को वहशी दमन से दबाती है, उसे झुकाने से बिजली कर्मचारियों ने समूची जनता को ही अपनी ताकत में यकीन करने का हौसला दिया है। इस संघर्ष ने इतिहास का यह सबक फिर दुहराया है कि भले ही हुकूमत कितनी भी ज़ालिम क्यों ना हो, जनता के एकजुट संघर्ष के आगे वह आखिरकार काग़ज़ी शेर ही साबित होती है। यह संघर्ष समूचे देश के मेहनतकश जन के लिए एक संदेश है कि यदि फासीवाद के ‘मॉडल’ को झुकाया जा सकता है तो लाज़िमी ही जनता का देशव्यापी उभार फासीवाद को भी मलियामेट कर सकता है।
– नवजोत, पटियाला