* विशद कुमार
झारखण्ड नरेगा वाच के झारखंड राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज बताते हैं कि ”देश की लगातार गिरती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कठिन दौर में श्रमिकों के लिए मनरेगा संजीवनी बूटी साबित हो रही है। गढ़वा जिला, रंका प्रखण्ड का सिरोई खुर्द गाँव से 147 मजदूरों ने काम माँगा है। लातेहार जिला का मनिका प्रखण्ड अन्तर्गत हेसातू गाँव जहाँ 16 मई को 5 वर्षीय बच्ची की मौत भूख से हो गई थी, उस गाँव से 108 मजदूरों ने काम माँगा है। उन मजदूरों को विभिन्न मनरेगा योजनाओं में काम भी दिया जा चुका है। अकेले पलामू जिले के हुसैनाबाद प्रखण्ड अन्तर्गत पथरा पंचायत से दो ही दिन के अन्दर 720 मजदूरों ने काम माँगा है। इस पंचायत में कुल पंजीकृत परिवारों की संख्या 1304 है। 16 अगस्त से शुरू हुए राज्य व्यापी ‘काम माँगों, काम पाओ’ अभियान में अब तक 18652 मजदूरों ने काम की माँग की है। जिसमें छत्तरपुर से 2094, हुसैनाबाद से सर्वाधिक 2849, उँटारी रोड से 852, पिपरा से 357, बिश्रामपुर से 1153, पाण्डु से 869, पाटन से 1761, पाड़वा मोड़ से 345, मनातू से 655, नावाबाजार से 651, पाँकी से 1518, तरहसी से 1427, लेस्लीगंज से 2248, डालटनगंज सदर से 477, चैनपुर से 300 और सतबरवा से 1006 मजदूरों ने काम माँग किये है। जिले भर से अब तक 283 पंचायतों में से 101 पंचायतों तक अभियान की पहँच हो चुकी है।”
बताते चलें कि कोविड 19 से उत्पन्न महामारी संकट के कारण पिछले 4 महीनों से आर्थिक गतिविधियाँ लगभग ठहर से गई हैं। इससे ग्रामीण मजदूरों और छोटे किसानों की आर्थिक चिन्ताएँ बढ़ गई हैं। खेतों से धान रोपनी के कार्यों से लोग बाहर आ चुके हैं। बड़ी संख्या में वैसे भी मजदूर गाँवों में मौजूद हैं जो आमतौर पर बाहर पलायन करते थे। इसी कठिन दौर में सरकार ने सोशल ऑडिट यूनिट को मनरेगा मजदूरों के काम माँगवाने की जिम्मेवारी सौंपी है। दूसरी तरफ काम माँगने की प्रक्रिया को सरकार ने बेहद सरल कर दी है। जिसका सामाजिक संगठन लगातार लम्बे समय से माँग करते रहे थे। सरकार के हालिया निर्देश के अनुसार अब मजदूरों के कार्य आवेदन ईमेल और वाट्सएप्प के जरिए भी स्वीकार की जाएगी और इसकी पूरी कानूनी मान्यता होगी। अतः गाँवों के मजदूर गण समूहों में कार्य आवेदन तैयार कर उसके फोटो लेकर स्वयं अथवा गाँव में उपलब्ध किसी के स्मार्ट फोन के जरिये भी अपना आवेदन प्रशासन को समर्पित कर रहे हैं।
अभी जिस रफ्तार से मजदूर काम के आवेदन दे रहे हैं और दूसरी तरफ मनरेगाकर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं, ऐसे में सभी काम माँग करने वाले मजदूरों का रिकार्ड संधारित करते हुए काम उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। एक तो सरकार के पास मनरेगा के प्रारंभ से अब तक ऐसा कोई तंत्र विकसित नहीं हुआ है, जिसमें ग्रामवार व पंचायतवार वास्तविक मनरेगा श्रमिकों की संख्या का सही आंकड़ा रिकार्ड हो। मनरेगा मार्गदर्शिका अध्याय 6 के अनुसार प्रत्येक वर्ष 31 मार्च तक वास्तविक माँग के अनुसार प्रत्येक गाँव की योजनाओं के लिए ‘सेल्फ आफ वर्क्स’ तैयार रहनी चाहिए। जब भी मजदूर काम माँगे तो मौसम के अनुसार मजदूरों को तुरन्त काम उपलब्ध कराया जा सकता था। अभी प्रशासन जब मजदूर काम माँग कर रहे हैं, तो योजना स्वीकृति के लिए रिकार्ड तैयार करने के काम में लग रहा है। इन परिस्थितियों में ऐसा ‘घर में आग लगने पर कुआँ खोदने’ के समान है। योजना स्वीकृति हेतु फाईलों को संधारण और 7 रजिस्टर्स का संधारण आज की तारिख में सिर्फ रोजगार सेवक और बीपीओ को ही है। इस दफा सरकार को चाहिए कि जिन भी कर्मियों को मनरेगा कार्यों के संचालन में लगाया गया है उनको सरकार द्वारा समय-समय पर दिये गये दिशा-निर्देशों, कानूनी प्रावधानों और मनरेगा वेबसाईट में संधारित की जानेवाली जारकारियों के बारे अपने मशीनरी के लोगों को नियमित तौर पर प्रशिक्षित करें।