- विशद कुमार
मनरेगा आयुक्त के भ्रमण का उद्देश्य यही था कि लेबर इंगेजमेंट के अनुरूप स्थल पर वास्तविक मजदूर का सत्यापन किया जा सके। बताते चलें कि पिछली बार वर्ष 2016 में मनरेगा आयुक्त के पलामू दौरे में पांच रोजगार सेवकों को मनरेगा आयुक्त के कोप का भाजन बनकर बर्खास्त होना पड़ा था। आरोप यह लगाया गया था कि मशीन के इस्तेमाल की संभावना प्रतीत होती है। जबकि मशीन के इस्तेमाल का कोई साक्ष्य नहीं मिला था। प्रायः मनरेगा आयुक्त के क्षेत्र भ्रमण में कम से कम चार-पांच पंचायतों का निरीक्षण किया जाता है, जबकि इस बार एक पंचायत के एक ही योजना का निरीक्षण किया गया।
ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड सरकार के मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने 28 अगस्त 2020 को पत्रांकः-(एन) 989 के आलोक में जिले के उप विकास आयुक्त-सह-जिला कार्यक्रम समन्वयक को पत्र निर्गत कर सूचित किया कि मनरेगा अंतर्गत मजदूरों के काम की मांग को प्राप्त करने हेतु एक नई व्यवस्था लागू की गयी है, जिसके तहत पूरे राज्य में अब तक चार लाख मजदूरों के काम की मांग की सूची प्राप्त हो चुकी है। मनरेगा अधिनियम के अनुसार उक्त सभी मजदूरों को ससमय कार्य उपलब्ध कराया जाना है। मजदूरों द्वारा काम की मांग की स्थिति का आकलन करने हेतु राज्य स्तरीय टीम उसके नाम के सामने अंकित जिला में क्षेत्र भ्रमण हेतु जायेगी। उक्त दल के द्वारा दिनांक 29.08.2020 या दिनांक 30.08.2020 में से कोई एक दिन आबंटित जिला के कुछ गांवो में मजदूरों के कार्य की मांग तथा मांग के अनुरूप कार्य के आबंटन के निरीक्षण हेतु भ्रमण किया जायेगा। अनुरोध है कि दलों के क्षेत्र भ्रमण कार्यक्रम में सहयोग हेतु आवश्यक कार्यवाई करने की कृपा की जाय।
पत्र के आलोक में 29 अगस्त को ही बोकारो/ गिरिडीह/ हजारीबाग/ पलामू का चार अधिकारियों ने क्षेत्र का भ्रमण किया। जिसमें राज्य के विशेष रवि रंजन एवं राज्य समन्वयक, प्लानिंग सेल के शिव शंकर बोकारो, मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी पलामू, मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, आर.थंगा पाण्डियन एवं सहायक नरेंद्र कुमार ने गिरिडीह एवं संयुक्त सचिव, आदित्य रंजन हजारीबाग जिले का क्षेत्र भ्रमण किया।
बतातें चलें कि 28 अगस्त को विडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के माध्यम से मनरेगा कमिश्नर ने जिले के पदाधिकारियों को दस लाख लेवर इंगेजमेंट का लक्ष्य देते हुए, कहा कि मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से कोई फर्क नहीं पड़ा है। सोशल ऑडिट यूनिट वाले अच्छा काम कर रहे हैं, उन्होंने पर्याप्त डिमांड कलेक्ट किया है, हम लोग अगर इस पर काम करेंगे तो दस लाख का लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
इस पर पलामू डीडीसी उखड़ गए, उन्होंने कहा कि इधर जिला से लेकर प्रखंड तक सभी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों का नींद हराम हो गई है, सबका एक-सूत्री कार्यक्रम चल रहा है डिमांड बढ़ाओ, मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से एक भी काम धरातल पर नहीं हो रहा है, मनरेगा कर्मियों के बिना अब मनरेगा में कोई काम संभव नहीं है। सोशल ऑडिट यूनिट वालों ने डिमांड के नाम पर उल-जुलूल लोगों का नाम लिखकर दे दिया है। मृत, अपंग, समृद्ध एवं कार्य के लिए इच्छा नहीं रखने वाले लोगों का नाम भी बेरोजगारी भत्ता का लालच देकर लिखा गया है, जो जिला प्रशासन के लिए सरदर्द बन गया है।
पलामू डीडीसी शेखर जमुआर इस विरोध पर राज्य के सभी डीडीसी ने बोलना शुरू किया, सरायकेला के डीडीसी ने यहां तक कह दिया कि अगर मनरेगा कर्मियों के साथ वार्ता करके जल्द ही हल नहीं निकाला गया तो हम लोग भी हाथ खड़े कर देंगे। जिले के पदाधिकारियों के इस विरोध के बाद ही मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने राज्य के जिलों के क्षेत्र भ्रमण की चिठ्ठी निकाल दी।
सात एकड़ बागबानी में आम का एक पौैधा
इस क्रम में बोकारो जिला के पेटरवार प्रखंड के उतासारा पंचायत के टकाहा ग्राम और ओरदाना पंचायत के मदवा जारा ग्राम के क्षेत्र भ्रमण के दौरान राज्य के विशेष रवि रंजन एवं राज्य समन्वयक, प्लानिंग सेल के शिव शंकर ने मनरेगा योजना के तहत 7 एकड़ जमीन पर की गई बिरसा मुंडा आम बागवानी एवं कूप निर्माण का जायजा लेने गए। मौके पर महेश्वर मांझी नाामक एक मजदूर ने कहा कि मनरेगा की मजदूरी 194 रू. बहुत कम है, कम से कम 250 होना चाहिए। इसपर अधिकारियों ने कहा कि मजदूूरी केंद्र सरकार तय करती है। पहले यह 171 था जिसे केंद्र ने 194 किया है। वहां उपस्थित एक महिला से अधिकारियों ने पूछा कि यहां रोजगार दिवस होता है? तो महिला ने कहा रोजगार दिवस क्या होता है हमें नहीं पता। अधिकारियों ने कहा कि हर सप्ताह रोजगार दिवस होता है। मजे की बात तो यह है कि योजना भ्रमण के जिक्र में लेबर इंगेजमेंट का कोई जिक्र नहीं हुआ। दूसरी तरफ यहां 1700-1800 के लेबर डिमांड में किसी भी योजना में एक भी मजदूर नहीं मिला।
बता दें कि 29 अगस्त शनिवार को मनरेगा आयुक्त जब पलामू जिला के हुसैनाबाद प्रखंड के पथरा पंचायत में क्षेत्र भ्रमण दौरे पर पहुंचे, तो लोग अपने-अपने मन में अलग-अलग तरह के ख्याली पुलाव पकाने लगे, लेकिन ग्रामीणों को प्रवचन के अलावा और कुछ भी नसीब नहीं हुआ। इस बात की जानकारी देते हुए मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिरुद्ध पाण्डेय ने कहा कि मनरेगा कमिश्नर द्वारा बयान दिया गया है, कि सबसे अधिक वर्क डिमांड वाले पंचायत में निरीक्षण किया गया। जबकि शनिवार को पथरा पंचायत में 22 योजनाओं में मात्र 140 लेबर का ही वर्क डिमांड चल रहा था। मनरेगा आयुक्त ने केवल एक आम बागवानी का निरीक्षण किया तथा आम बागवानी में कितने मजदूर स्थल पर कार्य कर रहे थे यह भी बताने से परहेज किया गया। जबकि हुसैनाबाद प्रखंड के ही अन्य पंचायतों में 897, 858, 625 तथा 599 मजदूर का डिमांड चल रहा था। वहां योजनाओं का निरीक्षण क्यों नहीं किया गया? यह एक बड़ा प्रश्न है, क्योंकि मनरेगा आयुक्त के भ्रमण का उद्देश्य यही था कि लेबर इंगेजमेंट के अनुरूप स्थल पर वास्तविक मजदूर का सत्यापन किया जा सके। बताते चलें कि पिछली बार वर्ष 2016 में मनरेगा आयुक्त के पलामू दौरे में पांच रोजगार सेवकों को मनरेगा आयुक्त के कोप का भाजन बनकर बर्खास्त होना पड़ा था। आरोप यह लगाया गया था कि मशीन के इस्तेमाल की संभावना प्रतीत होती है। जबकि मशीन के इस्तेमाल का कोई साक्ष्य नहीं मिला था। प्रायः मनरेगा आयुक्त के क्षेत्र भ्रमण में कम से कम चार-पांच पंचायतों का निरीक्षण किया जाता है, जबकि इस बार एक पंचायत के एक ही योजना का निरीक्षण किया गया। बताते चलें कि पंचायत भवन में सखी मंडल की दीदी लोग के साथ बैठक करते समय न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया, नहीं अधिकांश लोगों ने मास्क लगाया था, जबकि कोरोना महामारी का प्रकोप चरम पर है। बैठक में मनरेगा योजना से अधिक मानवीय जीवन के नैतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक प्रवचन ही दिया गया।
बोकारो मनरेगा मजदूर मानव श्रृंखला बनाकर हड़ताल पर मजदूर
ज्ञातव्य हो कि फिलहाल राज्य भर के मनरेगा कर्मचारी हड़ताल पर हैं तथा हड़ताल को प्रभावहीन साबित करने के लिए मनरेगा आयुक्त ने तरह-तरह की युक्तियां लगाई हैं। मजदूरों का डिमांड कलेक्ट करने के लिए राज्य के 35000 स्वयं सहायता समूह की दीदी, जेएसएलपीएस के कर्मचारी तथा सोशल ऑडिट यूनिट के कर्मचारियों को लगाया गया है। ये लोग किसी तरह फर्जी डिमांड तो निकाल दे रहे हैं, लेकिन कार्यस्थल पर मजदूर नदारद हैं, यही कारण है कि अधिकांश मस्टररोल में मजदूरों को अनुपस्थित दिखा दिया जा रहा है। मनरेगा आयुक्त द्वारा माननीय मंत्री महोदय को बार-बार बरगलाया जा रहा है कि मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से मनरेगा कार्यों में कोई अंतर नहीं पड़ा है, लेकिन सत्य यह है कि मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से प्रदेश से लेकर पंचायत तक के सभी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नींद उड़ गई है। इनका एक-सूत्री कार्यक्रम चल रहा है, कि किसी तरह मनरेगा सॉफ्ट में लेबर डिमांड बढ़ाया जाए।
श्री पाण्डेय ने कहा कि सरकार को वास्तविकता स्वीकार कर लेनी चाहिए। मनरेगा का कार्य मनरेगा कर्मी के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द मनरेगा कर्मियों से वार्ता कर मांगों की पूर्ति करने हेतु ठोस पहल करें, ताकी मनरेगा को पूर्व की भांति सुगमता से चलाया जा सके।
इधर मुखिया संघ भी बगावत पर उतर गया है, मुखिया संघ के अध्यक्ष ने कहा है कि यदि यह अनुचित दबाव नहीं रोका गया तो मुखिया संघ भी आंदोलन करेगा।
मनरेगा कर्मचारी संघ के महासचिव मु. इम्तेयाज बताते हैं कि झारखण्ड में मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने के कारण mis (management information system) प्रबंधन सूचना प्रणाली में मानव दिवस सृजन में भारी गिरावट दर्ज की गई है। मनरेगा कर्मी 27 जुलाई से हड़ताल पर हैं। आंकड़े बताते हैं कि हड़ताल पर जाते वक्त जुलाई 2020 में mis में दर्ज कुल मानव दिवस 94,67,352 था, जो वर्तमान में गिर कर अगस्त 2020 में मात्र 34,28,017 रह गया । यदि आंकड़ों पर गौर करें तो मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने के बाद मानव दिवस सृजन में मात्र 1/3 ही रह गया। जबकि डिमांड बढ़ाने के लिए विभाग का पूरा तंत्र एड़ी चोटी एक कर दिया।
मनरेगा mis में इतनी भारी गिरावट के बाद भी मनरेगा आयुक्त झूठ का आंकड़ा पेश करने में थक नहीं रहे हैं। वे कहते हैं कि मनरेगा कर्मियों के हड़ताल से कोई असर नहीं पड़ा, तो सवाल है कि मांग में इतनी गिरावट क्यों है।
इम्तेयाज कहते हैं कि चतरा जिला में जिस 40 योजना में घोटाले के नाम पर वहां के 14 संविदा मनरेगा कर्मियों को बर्खास्त किया गया है, जबकि सच्चाई यह है कि इतनी योजना स्वीकृत ही नहीं हुई, योजना 22 थी 18 में काम हुआ 4 रदद् तो फिर बिना काम के पैसे की निकासी का सवाल कहां है।
इसी तरह गिरिडीह में बर्खास्त मनरेगा कर्मियों में से वैसे भी मनरेगा कर्मी को बर्खास्त किया गया है, जिसके योजना में सूचना पट्ट की चोरी हो गई। हद तो तब हो गई जब एक हाथ से दिव्यांग मनरेगा कर्मी मनोज कुमार को बर्खास्त कर दिया जिसके पास अभी आजीविका का कोई साधन भी नहीं है।
इम्तेयाज कहते हैं कि मनरेगा आयुक्त का झूठ और फर्जी काम का सिलसिला यहीं नहीं रुका, पाकुड़ प्रखंड में 2009-10, 2010-11 की 10 वर्ष पुरानी योजना में विलम्बित भुगतान के लिए दोषी लेखा सहायक को मान कर मुकदमा दर्ज किया गया है, जबकि योजना की स्वीकृति mis और क्रियान्वयन के 6 माह बाद लेखा सहायक की पोस्टिंग पाकुड़ में हुई। इसमें आरोपी पर न कोई अवैध निकासी न कोई अनियमितता और न ही वित्तीय शक्ति सम्पन्न होकर कार्य करने की पुष्टि है फिर भी केस दर्ज हो गया। दोष सिर्फ इतना है कि आरोपी द्वारा मनरेगा आयुक्त के तानाशाही के कारण मृत मनरेगा कर्मियों के परिजनों के कल्यणार्थ आवाज उठाया जाता रहा है, इसलिए करवाई की गई।
संघ के महासचिव कहते हैं कि मनरेगा में सारे ऑडिट को रोक कर मनरेगा कमिश्नर के 6 वर्षो के कार्यकाल का विशेष ऑडिट जरूरी है। यदि यह निष्पक्ष हुआ तो मनरेगा कमिश्नर पर मनरेगा कर्मियों को आत्म हत्या के लिए प्रेरित करने, झूठा आंकड़ा प्रस्तुत करने, ग्राम सभा की हत्या मनरेगा अधिनियम का उलंघन, मनरेगा में एनजीओ को हावी करने, आकस्मिकता मद घोटाला पौधा खाद आपूर्ति घोटाला जैसे कई आरोप स्वत सिद्ध हो जाएंगे।