वाराणसीः अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर वाराणसी कैंट स्टेशन पर देर रात मेरी रातें मेरी सड़कें कार्यक्रम में गीत गाए और नुक्कड़ नाटक के जरिये नारी विमर्श के मुद्दे को उठाया।
महोदय , कल दिनांक 11 -10 -2023 को रेलवे स्टेशन कैंट वाराणसी पर अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर दख़ल संगठन की ओर से महिलाओं के अनूठे कार्यक्रम ‘ मेरी रातें मेरी सड़कें ‘ का हुआ आयोजन।
बनारस में आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम अपने आप में अनूठे किस्म का है। देर रात बनारस की प्रबुद्ध सामाजिक राजनैतिक सचेत और जागरूक लड़कियाँ और महिलाएं किसी सार्वजनिक स्थान पर जुटती हैं। गीत कविता नुक्कड़ नाटक आदि के जरिये नारी विमर्श के मुद्दे उठाती हैं। इस साल यह आयोजन दख़ल संगठन ने रेलवे स्टेशन कैंट पर आयोजित किया।
कार्यक्रम का उद्देश्य बताते हुए काशी विद्यापीठ छात्रा और संगठन से जुडी शिवांगी ने बताया की आज़ादी मिले हुए 75 साल हो गए। वोट डालने का अधिकार मिला। पढ़ने लिखने, काम करने कमाने का अधिकार मिला। संपत्ति में क़ानूनी हक़ मिला। अपने मर्जी का जीवन साथी चुनने का अधिकार मिला। आधा अधूरा ही सही लेकिन सबसे बड़ी पंचायत ‘ संसद ‘ में हम महिलाओ के लिए आरक्षण की भी बात हो रही है। लेकिन इन क़ानूनी कछुवाचालों के बीच समाज का अपना एक जड़ ढाँचा है। जो सभी अधिकारों पर कुंडली मारकर बैठ जाता है। बाते सिर्फ किताबी रह जाती है। इस दकियानूसी ढांचे में पुरुषों के लिए एक चौबीस घंटा पूरा दिन और रात मिलाकर बनता है। लेकिन हम स्त्रियों के लिए हॉस्टल के गेट हो , माता पिता का घर हो , ससुराल हो या अकेले रहने वाली लड़की का पेइंग गेस्ट हाउस ही क्यों न हो , सभी लड़कियों के लिए रात का मतलब होता है किसी सुरक्षित जगह पर आ जाना। ये एक अनकहा कानून है। इसे हर लड़की को मानना होता है। रात को पुरुष जो हैं वो कंट्रोल में नहीं रह पाते। तो जो कंट्रोल में नहीं रहता उसके लिए सुरक्षित जगह बनाई जानी चाहिए। लोहे की जंजीर हथकड़ी आदि होनी चाहिए। उन्हें न बांधकर उल्टे हम लड़कियों को ही सदियों से घर के अंदर रात को सुरक्षित हो , बताया जाता है। जो की गलत है और हमे स्वीकार नहीं है। हम बनारस की सड़को पर , गंगा घाट पर गीत संगीत कविता कहानीयों के साथ अपने हक़ की , हिस्से की सड़क मांगने के लिए जुटते हैं। आज इन्ही बातो को सोचते समझते हुए हम रेलवे स्टेशन पर जुटे हैं। हम चाहते हैं की बनारस में हो रही ये बात देश विदेश से आने जाने वाले मेहमान भी सुने देखें और बराबरी के लिए किये जाने वाले इस कोशिश में सब जुड़ें।
कल के कार्यक्रम में विद्यापीठ और बीएचयू की छात्राओं द्वारा महिला हिंसा के मुद्दे को उठाते हुए एक नुक्क्ड़ नाटक का भावपूर्ण प्रदर्शन में दिखाया कि किस तरह घर में और सड़क पर लड़किया महिलाएं असुरक्षित हैं । गीत गाए और कविता पाठ किया।
शालिनी के अगुवाई में विद्यापीठ और बीएचयू के छात्राओ ने पिक्चर थियेटर के माध्यम से महिला हिंसा को समाप्त करने में व्यक्ति और समाज बदलाव ला सकते हैं सवाल उठाया।
प्रख्यात आंदोलनकारी समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर भी महिलाओं के इस अनूठे कार्यक्रम में जुड़ी। उन्होंने कमला भसीन जी का गीत सुना के नारीवादी विमर्श के विषय पर अपनी बात रखी बिना महिलाओं के हर लड़ाई और बदलाव अधूरा है और बनारस में आयोजित*मेरी रातें मेरी सड़कें* कार्यक्रम और दख़ल संगठन को ढेरों बधाईयां दी।
सभा के दौरान बीएचयू में समाजशास्त्र शिक्षिका डॉ प्रतिमा गोंड ने कहा कि भारत की स्त्री के हृदय में महासागर जैसा धीरज है। उसने खुद के साथ हुई बेईमानी की शिकायत नहीं की और सिर्फ अपने फायदे के बारे में कभी नहीं सोचा। उसने नदियों की तरह सब की भलाई के लिए काम किया है और मुश्किल वक्त में हिमालय की तरह अडिग रही । लेकिन मेरा स्पष्ट मानना है की महिलाओं के साथ भेदभाव और अन्याय आज भी है और कंही अधिक संगठित और संस्थागत है।
मुंबई से आई युवा सामाजिक कार्यकृत्री रीता ने कहा कि स्त्री की मेहनत, स्त्री की गरिमा और स्त्री के त्याग की पहचान करके ही हम लोग मनुष्यता की परीक्षा में पास हो सकते हैं। आजादी की लड़ाई और नए भारत के निर्माण के हर मोर्चे पर स्त्री, पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है। वह उम्मीदों, आकांक्षा, तकलीफों और घर गृहस्ती के बोझ के नीचे नहीं दबी।कस्तूरबा ,सरोजिनी नायडू, दुर्गा भाभी , सावित्री बाई फुले , सुचेता कृपलानी, अरुणा आसफ अली, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर और उनके साथ तमाम लाखों लाखों महिलाओं से लेकर आज की तारीख तक स्त्री ने कठिन समय में हर बार महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, ज्योतिबा फुले , सरदार पटेल, बाबा साहब अंबेडकर और मौलाना आजाद के सपनों को जमीन पर उतार कर दिखाया है।
आज़ादी के 75 वर्ष बाद आज जब हम चाँद पर जा पहुंचे हैं तो ये हमारी जिम्मेदारी है के ज़मीन पर संघर्ष कर रही महिला नेतृत्व को नीति निर्माण के मेज पर बराबर की हिस्सेदारी मिलें। सड़कों पर सरपट दौड़तीं गाड़ियों से लेकर खचाखच भरे सिनेमा हॉल तक। बड़ी बड़ी फैक्टरियों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक स्त्रियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। ऐसी ही गैरबराबरी संसद, न्यायपालिका तक में देखने को मिलती है जिसमे स्त्रियों की संख्या नगण्य है। इसलिए जरूरी है के महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
प्रेरणा कला मंच के साथियों द्वारा मुद्दे आधारित जागरूकता गीत गया इसके बाद नारीवाद के मुद्दे को उठाते हुए प्लेकार्ड्स लेकर लड़किया औरते स्टेशन रोड पर मार्च निकाली।
कार्यक्रम का संचालन मैत्री ने किया । सभा और मार्च में मुख्य रूप से शिवांगी, दीक्षा, पीहू, नीति, गुड्डी, शालिनी, शबनम, काजल, मृदुला, रागिनी, रणधीर, अबीर, धनंजय, साहिल, ज्योति,रैनी, इंदु विजेता,सपना, अंजली, स्नेहा, अनुज, टीया, अश्विनी, अनन्या, अस्मिता संस्था, प्रेरणा कला मंच आदि शामिल रहीं।
प्रेषक
दख़ल
79855 23018