1मई 2020,लखनऊ। अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर जरिये मोबाइल कान्फ्रेंस स्मृति सभा का आयोजन किया गया। स्मृति सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक रामकिशोर व मार्क्सवादी मजदूर नेता के के शुक्ला ने संयुक्त रुप से किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वीरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि 1986 में शिकागो की हे मार्केट के मजदूरों ने दिन में 8 घंटे कार्य दिवस करने की मांग उठाई थी, जो धीरे-धीरे पूरी दुनिया के मजदूरों के आंदोलन की मुख्य मांग बन गई। दुनिया भर में सरकारें आंदोलन के दबाव में मालिकों की इच्छाओं के विरुद्ध मजदूरों को कानूनी अधिकार देते हुए 8 घंटे का कार्य दिवस करने पर बाध्य हुई थी। उन्होंने आगे कहा कि कोविड -19 के चलते लॉकडाउन का नाजायज फायदा उठाते हुए केंद्र व राज्य सरकारें पूंजीपतियों/ उद्योगपतियों के मुनाफे को बढ़ाने की खातिर एक पर एक मजदूर विरोधी निर्णय ले रही हैं और कानून व नियम तक बदल रही हैं। कार्य स्थलों पर 8 से 12 घंटे कार्य दिवस करने, वेतन, डीए व डीआर फ्रीज करने, एलटीसी सहित अन्य भत्ते समाप्त करने, नई भर्ती पर रोक लगाने, एक माह में 1 दिन की वेतन पीएम केयर में जमा करने जैसे घोर कर्मचारी विरोधी कदम उठा कर आमदनी घटा व कार्यभार बढ़ाकर मजदूरों – कर्मचारियों का जीवन और भी कठिन बनाने का कार्य ये सरकार कर रही है।तो वही दूसरी तरफ देश-प्रदेश के उद्योगपति इस स्थिति से निबटने के लिए सरकार से भारी भरकम आर्थिक पैकेज देने व यूनियन गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं । बड़े शर्म की बात है कि सरकार भगोड़े व जानबूझ कर कर्ज़ ना चुकाने वाले डिफॉल्टरों के 68 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ करने के लिए उसे बट्टे खाते में डाल चुकी है।
नागरिक परिषद के संयोजक रामकृष्ण ने सरकार से मांग की है कि पूंजीपतियों को किसी भी प्रकार की राहत ना देकर स्थानीय तथा प्रवासी श्रमिक व भवन निर्माण मजदूरों सहित असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को तुरंत 10-10 हजार रुपये नगद आर्थिक सहायता व सूखा राशन दिया जाए। श्रमिकों की नौकरी बचाई जाए, उन्हें लॉकडाउन का पूरा वेतन दिलाया जाए, 12 घंटे कार्य दिवस के आदेश को तुरंत वापस लिया जाए, डीए व डीआर को फ्रीज करने के आदेश रद्द हों और प्रांत में लॉकडाउन के समय का पूरा वेतन सभी मजदूरों को मिले, किसी भी मजदूर की नौकरी ना छूटे ना उसकी छंटनी की जाए । डॉक्टरों सहित पैरामेडिकल स्टाफ व अन्य कर्मचारी जो करोना महामारी में लोगों को बचाने में कार्यरत हैं उन्हें उच्च स्तर की पीपीई, मास्क सहित अन्य तमाम सुविधाएं दी जाएं।
एआईडब्लूसी के अध्यक्ष ओ पी सिन्हा ने कहा कि मई दिवस श्रमिको के संघर्ष, साहस,कुर्बानी की एक जीवित परंपरा है।इसी परंपरा ने हमेशा कठिन वक्त में इस दुनिया को बचाया और आगे बढ़ाया है।महामारी और मंदी की आड में सरकार श्रमिक अधिकारों पर चोट कर रही है।सामाजिक एकता को कमजोर कर रही है।भूखे पेट हजारों मील पैदल यात्रा का साहस करके देश के मजदूर जनता अपनी असली ताकत का परिचय दिया है।इस ताकत को राजनीति का रूप देकर वह हर जुल्म का अंत करने में सक्षम है।यह मई दिवस एक नई दुनिया की लड़ाई के लिए उसका आह्वान कर रहा है।
एआईयूटीयूसी के उ प्र कार्यालय सचिव वालेन्द्र कटियार ने कहा कि दिवस के इस बार अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस ऐसे समय पर आया है जब पूंजीवादी शोषण की चक्की में पिसता हुआ मेहनतकश वर्ग त्राहि – त्राहि कर रहा था। इसी समय कोरोना वायरस के हमले ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि सारी दुनिया जहां की तहाॅ एक झटके में ठहर गई।शोषित- पीड़ित मजदूर वर्ग इस महामारी के हमले को झेलने में पूरी तरह से असमर्थ है। और अगर यह मजदूर वर्ग खत्म हो गया तो मजदूरों के श्रम पर परजीवी की तरह पलने वाली शेष दुनिया भी खत्म हो जाएगी।
वक्त का तकाजा है कि सरकार एवं शासक पूंजीपति वर्ग को मजदूरों को बचाने के लिए अपने तमाम भरे हुए खजाने के दरवाजे खोल देने चाहिए।उन्होंने कहा कि अगर मजदूर रहेगा तो यह समाज और सभ्यता बची रहेगी।यदि मजदूर खत्म हो गया तो यह समाज और सभ्यता स्वत: ही खत्म हो जाएगी।
अमलतास सचिव अजय शर्मा ने कहा कि लॉकडाउन में प्रवासी मज़दूर सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना कर रहे हैं। सरकार को तत्काल इनके लिए व्यापक इंतजाम करना चाहिए और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए। लॉकडाउन में काम-धंधे खत्म हो जाने के चलते मज़दूरों के सामने रोजी-रोटी की समस्या आ गई है, सरकार को राहत का इंतज़ाम करने के साथ ही बिना देरी किये मज़दूरों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए।
राम किशोर ने कहा कि वर्तमान में भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े अनेक अखिल भारतीय मजदूर संगठन हैं । श्रमिकों के हित को संकलित इतने संगठनों के बाद भी मजदूर एक जुट नहीहो पाते। यह मई दिवस की प्रासंगिकता को घेरे में डालता है।90प्रतिशत से ज्यादा मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते है जहाँ उनके हितों में कोई कानून लागू नहीं होता और वे मालिक के रहमो करम पर जीते हैं।अनेकों संघर्षों के बाद संगठित क्षेत्र के मजदूरों को प्राप्त अधिकारों पर भी निरन्तर कुल्हाड़ी चलाई जा रही है और वे असहाय बने अपने संगठनों की तरफ कातर निगाहों से ताक रहे हैं।
केके शुक्ला ने जनविरोधी,मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ उच्च संस्कृति के आधार पर एक दीर्घ स्थायी आन्दोलन की जरुरत को समय की मांग बताया।
उक्त स्मृति सभा में सी बी सिंह,डा. राम प्रताप, डा.नरेश कुमार, ,सी एम शुक्ला,अशोक आर्या,सुरेंद्र कुमार,महेश देवा,बृजेश कुमार, जय प्रकाश, देवेंद्र वर्मा,शिवाजी ने भी अपने विचारों से मई दिवस के अमर शहीदों को याद किया।
भवदीय
वीरेंद्र त्रिपाठी
कार्यक्रम संयोजक
मो: 9454073470