मुझे मुगल – ए- आजम फिल्म के
एक गाने की याद आती है कि प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की
छुप – छुप आहें भरना क्या —
भले ही यह गाना सालों पुराना है लेकिन है आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कल था। कारण है प्रेम को लेकर लोगों की सोच आज भी पिछड़ी हुई है। पहले प्रेमी समाज से लड़ते थे और उम्मीद करते थे कि सरकार उन्हें सुरक्षा प्रदान करेगी।
लेकिन अब प्यार करके डरना पहले से ज्यादा जरूरी बन जाता है ये चोरी से भी बड़ा गुणा बना दिया गया है। क्योंकि प्रेमियों को डराने का काम समाज नहीं कर रहा। बल्कि प्रेमियों को डराने का काम सरकार कर रही है और अपनी तरह से प्यार को परिभाषित कर रही है। कहते है कि समय के साथ सोच बदलती है लेकिन समय के साथ सोच और भी रूढ़िवादी हो जाती है तब यह चिंता की बात बन जाती है। कि हमारा देश 21 वीं सदी में किस मानसिकता की ओर जा रहा है। या यू कहे कि उसे किस ओर ले जाया जा रहा है। लव जिहाद जैसे शब्द का प्रयोग केवल पितृसत्ता को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है। क्योंकि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने भी कहा था कि महिला ही जाति,धर्म से मुक्ती दिला सकती है। क्योंकि महिलाओं के कारण ही जाति, धर्म नामक संस्थाएं चल रही है। इसलिए आदि काल से महिलाओं पर ही पांबदियां लगाई जाती रही है। पहले ही जाति से बाहर शादी करना ही किसी युध्द से कम नहीं है। भारत का संविधान दो बालिग लोगों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है। लेकिन कानून के बाद भी खापपंचायतों के फरमानों की वजह से ना जाने कितने प्रेमियों की जान चली गई। पंचायतों को सुरक्षा भी प्रशासन में बैठे लोग ही देते है। जिनसे प्रेमियों की सुरक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती। जिस राज्य की जड़ ही पितृसत्तामक हो वहां जाति, धर्म खत्म होना नामुकिन लगता है। बजरंग दल, एंटी रोमियों आऐ दिन भारतीय संस्कृती के नाम पर प्रेमियों को परेशान करते रहते है। कहते है न, प्यार तेरे हजार दुश्मन, ये दुश्मन सरकार है जिसने हिन्दूओं की सबसे कमजोर नस पर हाथ रख दिया है। हिन्दूओं को बहन बेटियों की असुरक्षा का डर दिखाया जा रहा है जिससे हिन्दू खतरे में पड़ सकते है इसके लिए तरह – तरह की अफवाह फैलाई जा रही है। कि अगर हिन्दू लड़की मुस्लिम लड़के से प्रेम करती है तो कुछ ही सालों में मुस्लिमों की संख्या हिन्दूओं से ज्यादा हो जाएंगी। वो देश पर कब्जा कर सकते है। ये कोई नहीं बताएंगा कि अगर मुस्लिम लड़की हिन्दू लड़के से शादी करती है तो क्या होगा , क्या इसे भी लव जिहाद माना जाएंगा ? क्या तब मुस्लिम खतरे में नहीं पड़ते। सरकार भी अभी तक लव जिहाद की कोई परिभाषा नहीं दे पाई है तथा यूपी पुलिस ने भी अपनी जांच में कोई भी मामला लव जिहाद का नहीं पाया। जिसमें लड़की को बहलाया फूसलाया गया हो। लव जिहाद को जान कर तूल दी जा रही है। ताकि असल मुद्दों से लोगों का ध्यान हट सके। लड़की के माता – पिता भी ऐसे मामलों में लड़के के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर देते है। ये शिकायत लव जिहाद के खिलाफ कम प्रेम विवाह, दूसरी जाति – धर्म में करने व उनकी सहमती के बिना करने के खिलाफ ज्यादा होती है। भारतीय माता- पिता को बेटी की खुशी से ज्यादा अपनी सामाजिक इज्जत प्यारी होती है। देखा जाए तो, भावनात्मक तौर पर कोर्ट भी माता- पिता की पैरवी करता नजर आता है। इसलिए इसके फैसले माता – पिता की तरफ झुकते नजर आते है अगर प्रेमी जोड़ा हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देता है तब जा कर फैसला प्रेमी जोड़े के पक्ष में आता है ये हम केरल की हदिया- शफीन के मामले में भी देख सकते है। अगर कोर्ट प्रेमी जोड़े की शादी को शून्य घोषित कर देती है तो, उस लड़की की सामाजिक इज्जत तो उसके प्रेम करने भर से मिट्टी में मिल जाती है। अगर वो शादी जैसा कदम उठा कर अपने घर आएं तो ऐसा कम ही होता है कि वह जिंदा बच जांए है अगर बच भी जाती है तो उसके माता- पिता अपनी बची हुई इज्जत बचाने के लिए उसकी शादी किसी से भी कर देते है। ये लव जिहाद भी एक ट्रेड की तरह है जैसे बाकि ट्रेड आते – जाते रहते है कभी गाय तो, कभी राम मंदिर। ये कुछ महीनों में ही अपने घर चले जाते है। ये सभी खतरे मुस्लिमों से ही क्यों ? राम मंदिर बन रहा है, गाय सड़को पर सुरक्षित है बचा था लव जिहाद अब कुछ दिन इसके नाम पर ही देश को उफ्फ हिन्दूओं को बचाया जाएगा। मुजफ्फर नगर के दंगों में भी ‘बेटी बचाओं,बहू लाओ’ के नारे भी खूब लगे थे। मतलब हिन्दू दूसरे धर्म की बहू ला सकते है पर अपनी बेटी नहीं दे सकते। क्योंकि यह प्रकिया उन्हें मुस्लिम धर्म पर अपनी विजय घोषित करती है। लेकिन हिन्दू लड़की मुस्लिमों के घर की बहू बन जाए। ये कैसे हो सकता था। इसलिए इसका नाम पड़ा लव जिहाद। जिसमें सहमती के रिश्ते को ही गलत बना दिया गया। जो समाज जाति के नाम पर प्रेमियों को स्वीकार नहीं करता। वो अलग धर्म के प्रेमियों को कैसे स्वीकार कर सकता है। इसलिए प्रेमी स्पेशल मैरेज एक्ट तहत शादी करते है जिसकी प्रकिया इतनी जटिल है कि कोई दंपति चाहा कर भी इसके तहत शादी नहीं कर सकता। इस एक्ट का प्रयोग कोई दपंति तभी करता है जब लड़की- लड़के के परिवार वाले शादी के लिए नहीं मानते। लेकिन इस एक्ट के तहत लड़की- लड़के के परिवार वालों को मजिस्ट्रेट के यहां से चिट्ठी जाती। अगर किसी को आपत्ती है तो वह बता सकता है। ये सारी प्रकिया बहुत थकाने वाली है। इसकी सारी जड़े पितृसत्ता पोषक है। ऐसे में पांच राज्यों में लव जिहाद का कानून पास होना महिलाओं की बची- कुची आजादी पर पांबदी लगाता है जिनपर पहले से ही पांबदियां लगती रही है। यह कानून धोखा धड़ी, झूठ बोलकर या जबरन धर्म परिवर्तन या शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है। सवाल यह है कि जब इन अपराधों के लिए पहले ही कानून है तो इस कानून की क्या आवश्यता थी? ये कानून बीजेपी शासित राज्यों में ही क्यों लाया जा रहा है? बाकि राज्यों में ऐसे मामले क्यों नहीं आ रहे ? अगर कोई लड़की अपना धर्म परिवर्तन करना चाहती है तो इसमें राज्य का हस्तक्षेप करना कितना सही है। यह उसका निजी फैसला क्यों नहीं हो सकता ? शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने पर राज्य को क्या हानि होगी यह भी समझ से बाहर है जबकि आज भी हमारे देश में एक ही सर नेम न होने पर होटल किराये पर नहीं मिलते। समाज उन्हें हीन नजरों से देखता है। तथा कई सारी सरकारी सुविधाओं से दंपति वंचित रह जाते है। देखना यह है कि प्रेमी इन चुनौतियों का कैसे सामना करते है।
साभारः मशाल
प्रिया गोस्वामी
एम.ए स्त्री अध्ययन
(महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी वर्धा)