– एल. एस. हरदेनिया
दिनांक 2 जून 2021 के ‘दैनिक भास्कर’ में एक अत्यधिक दिल दहलाने वाली घटना का समाचार प्रकाशित हुआ है। समाचार के अनुसार सात महीने के एक बच्चे की मृत्यु उसका गला फंसने से हो गई। जिस समय यह घटना हुई तब इस बच्चे के माता-पिता काम पर गए हुए थे। वे अपने सात माह के बच्चे को अपने 11 साल के बच्चे की देखभाल में छोड़ गए थे। मंगलवार के दिन 11 साल के बच्चे ने सात माह के बच्चे को झूले में सुला दिया। वह झूले से गिर न जाए इसलिए उसे सेफ्टी बेल्ट में बांध दिया। बांधने के बाद वह स्वयं भी सो गया। नींद खुलने पर उसने देखा कि छोटे बच्चे का गला बेल्ट में फंसा हुआ है। उसके शोर मचाने पर पड़ोसी आए, कुछ समय बाद उसके पिता भी आए और उन्होंने पाया कि बच्चे की मौत हो चुकी है।
यह कटु सत्य है कि जिस परिवार में पति-पत्नि दोनों काम करते हैं वे प्रायः अपने छोटे बच्चों को ऐसे ही असुरक्षा के वातावरण में छोड़ जाते हैं। इस दुःखद स्थिति का अंत करने का एक ही उपाय है कि काम के स्थान पर ही छोटे बच्चों को सुरक्षित रखने का प्रबंध हो। और यह प्रबंध करने की जिम्मेदारी नियोक्ता की हो। ऐसा करना अनिवार्य करने के लिए कानून बनाया जाए। बड़े-बड़े कार्यालयों, कारखानों आदि में इस तरह का इंतजाम थोड़े से प्रयासों से हो सकता है।
इस मामले में खेतिहर मजदूरों की स्थिति और भी गंभीर है। परंतु दुःख की बात है कि इस तरह की समस्याओं पर गहन विचार न तो सरकार के स्तर पर होता है और ना ही विधायिका के स्तर पर। इस संदर्भ में मैं तत्कालीन सोवियत संघ में जो व्यवस्था थी उसका उल्लेख करना चाहूंगा। उस व्यवस्था को मैंने अपने सोवियत संघ प्रवास के दौरान देखा था। सोवियत संघ में समाजवादी व्यवस्था थी। उस व्यवस्था में मां और बच्चों का न केवल काफी सम्मान था वरन् उन्हें पूरी सुरक्षा भी उपलब्ध थी। सोवियत संघ प्रवास के दौरान मुझे बताया गया कि महिला के गर्भवती होते ही उसे पूर्ण अवकाश दे दिया जाता हैं। बच्चे के जन्म के बाद भी उसे लगभग छःह माह तक अवकाश प्रदान किया जाता है। इसके बाद काम पर लौटने पर मां को बच्चे की देखभाल करने हेतु पूरी सुविधा दी जाती है। उसके कार्यस्थल पर ही झूलाघर होता है जहां बच्चे की देखभाल के सभी साधन उपलब्ध होते हैं।
जब सोवियत संघ में समाजवादी व्यवस्था कायम थी उस दरम्यान न्यूयार्क टाईम्स के एक बड़े पत्रकार जेम्स रेस्टोन स्टालिन के निमंत्रण पर सोवियत संघ गए थे। यात्रा के बाद उन्होंने लिखा “कौन कहता है सोवियत संघ में प्रिवलेज्ड (विशेषाधिकार प्राप्त) वर्ग नहीं है। वहां समाजवादी व्यवस्था के बाद भी प्रिवलेज्ड वर्ग है। वह वर्ग है बच्चों का।” कोई भी समाज व देश उस समय ही मजबूत होता है जब उसके बच्चे सुरक्षा और पोषण से भरपूर वातावरण में पलें।
हमारे देश के सत्ताधारियों से अपील है कि ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे दुबारा किसी सात माह के बच्चे की अकाल मृत्यु न हो।