मानवता की भलाई का संदेश देने वाले ‘सतगुरु रविदास जी महाराज’
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श्री गुरु रविदास जी महाराज का जन्म 1376 ई.में माघ पूर्णिमा के दिन को काशी, बनारस में हुआ।
जिस समय उनका जन्म हुआ, उस समय हर तरफ वर्ण व्यवस्था हावी था जिसके कारण ऊंच-नीच, जाति पाति भेद भाव का बोलबाला था और उस समय के कानून में जात-पात के नाम पर अत्याचार करना गुनाह नहीं, बल्कि हक और धर्म समझता था। पाखंड, आडम्बरों से भोले-भाले लोगों को भ्रमित कर उन्हें लूटा और अत्याचार किया जाता था । अधिकतर राजा अत्याचारी और विलासी थे।
ऐसे समय में श्री गुरु रविदास जी महाराज ने अपना सम्पूर्ण जीवन इसी में बिताया कि मनुष्य अपने विवेक बुद्धि के अनुसार श्रम करते हुए निर्गुण ब्रह्म की स्तुति करते हुए सदाचार और मान-सम्मान ,प्रेम भरा जीवन बिताए जिससे समता मूलक समाज का निमार्ण हो सके।
उन्होंने उस समय के धर्म की कट्टरता पर बोलते है
“मन्दिर-मस्जिद एक है, इन मँह अनतर नाहिं |
रैदास राम रहमान का, झगड़ऊ कोऊ नाहिं ।।
रैदास हमारा राम जोई, सोई है रहमान
काबा – कासी जानि यहि, दोऊ एक समान ।।
उन्होंने उस समय के अनेक धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक नेताओं को बिना किसी डर से डंके की चोट पर चुनौती देकर मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य पर किए जा रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई और उन्हें गलत काम करने से मना किया चतुर्वरणीय वर्ण व्यवस्था के आधार स्तंभ जातिवाद पर प्रहार किया और बताया जन्म से कोई बड़ा छोटा नही बनता है
रैदास एक ही नूर ते जिमि उपज्यों संसार।
ऊँच-नीच किहि विध भये, ब्राह्मण और चमार ।। ”
रैदास जन्म के कारण, होत न कोई नीच ।
नर को नीच करि डारि, ओछे करम की कीच ।।
इसलिए जाति भेद और वर्ण भेद की यह व्यवस्था व्यवहारिक नहीं, बल्कि निंदनीय है। जो किसी भी व्यक्ति और समाज के लिए दुखदाई है, जिसके विषय में रैदास ने कहा था वर्णव्यवस्था तो थी ही, जाति तो उससे बड़ा पीड़ा है। जब तक इस देश में जाति प्रथा समाप्त नहीं हो जाती तब तक इसमें किसी भी प्रकार के सुधार की बात करना बेबुनियादी है भारत की जाति व्यवस्था इस प्रकार से टिकी हुई है
“जाति-जाति में जाति हैं, जो केलन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।”
जिसके प्रभाव उस समय के शासक वर्ग पर पड़ने लगा जिसके फलस्वरूप कई सारे लोग गुरु श्री रविदास जी की शरण में आ गए।
आगे बताते है की यह जाति वर्ण भेद व्यवस्था भी सदियों सदियों की गुलामी निश्चित कर दी है जिसका प्रभाव आजकल देखा जा सकता है निम्न जाति बताकर किसी को घोड़ी चढ़ने नही दिया जाता है तो किसी को स्कूल में आज भी पनी की मटका छू देने मात्र से अबोध बालक की हत्या कर दी जाती है और किसी के प्रेम की हत्या कर अनार किलिंग का शिकार होना पड़ जा रहा है ।
गुरु रविदास जी ने दबे कुचले लोगों को आगे बढ़ने तथा शिक्षा के लिए प्रेरित किया और अपने अधिकारों के लिए खड़े होकर जालिम से लड़ने के लिए तैयार किया। वो जानते है की इस वर्ण व्यवस्था और इस हिंदू धर्म में मानव का कल्याण नही हो सकता है
“तब उन्होंने अपने पैरोकारों व पूरे समाज को बेगमपुरा बनाने की अपील की। एक ऐसा आदर्श राज्य जहा कोई गम ही न हो ,जहा कोई दोयम दर्जे का आदमी ही न हो जहां संपति पर किसी का निजी मालिकाना नही होगा और न ही छूत अछूत होगा ‘बेगमपुरा’ की परिकल्पना करके संत रैदास ने मध्यकाल के भक्ति परंपरा के महत्वपूर्ण संतो में विशेष स्थान प्राप्त किया।
एक तरफ जहां स्वामी तुलसीदास दास दुबे ने बताया की
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी।
सकल ताड़न के अधिकारी।।
पूजहि विप्र सकल गुण हीना।
शुद्र न पूजहु वेद प्रवीना।।
जे बरनाधम तेलि कुम्हारा।
स्वपच किरात कोल कलवारा।।
सौभागिनीं बिभूषन हीना।
बिधवन्ह के सिंगार नबीना।।
माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो,
लैबोको एक न दैबको दोऊ।।
उपरोक्त बाते तुलसीदास राम के राज्य की परिकल्पना कहते हुए कह रहे है वर्ण व्यवस्था का घोर समर्थन, मनुस्मृति का खुला समर्थन,गैर श्रमजीवी परंपरा मांगकर खाना तो वही दूसरी तरफ रैदास सबके एक समान वाली व्यवस्था स्थापित करने की बात बेगमपुरा में कर रहे है उनके परिकल्पना में सबके लिए अन्ना है तो सबके लिए समानता भी है
ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न’।
बेगम पुरा शहर कौ नांउ, दुखू अंदोह नहीं तिहिं ठांउ। नां तसवीस खिराजु न मालु, खउफु न खता न तरसु जवालु॥ अब मोहि खूद वतन गह पाई, ऊंहा खैरि सदा मेरे भाई। काइमु दाइमु सदा पातसाही, दोम न सेम एक सो आही॥ आबादानु सदा मसहूर, ऊँहा गनी बसहि मामूर। तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै, महरम महल न कौ अटकावै। कहि रैदास खलास चमारा, जो हम सहरी सु मीत हमारा॥
रैदास ,कार्ल माक्स से पहले लोकतंत्र की बात अपनी परिकल्पना के आदर्श राज्य के संबंध में बता रहे है। जो मेरे इस बात से सहमत है की अब दुनिया में सिर्फ प्रेम होना चाहिए और वहां किसी भी तरह की कोई ऊंच नीच और असमानता नही होना चाहिए अपनी जाति चमार बताकर कहते है कि किसी को जाति से होने वाली समस्या नहीं होनी चाहिए जो इस तरह के कुकर्म में विश्वास नहीं करने वाला होगा । जो समता मूलक समाज की स्थापना करने वाला होगा वही मेरा मित्र होगा।
आज के समय में जहां समाज के अंदर तमाम विसंगतियां फैली हुई है लगातार दलितों और हासिए के लोगो का शोषण और शिकार हो रहा है वही आज संत रैदास याद आ रहे है यही कारण है की ऐसे महान संत रैदास आज भी प्रासंगिक बने हुए है
अब आपको तय करना है की निर्गुनिया संत सहित दादू दयाल, घासीदास,कबीरदास साथ है की आप सूरदास और तुलसीदास के साथ खड़े है,अब तय आप को करना है आप किस तरफ खड़े है ???
शोध छात्र, पवन कुमार
गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर